बीजेपी के पास राजनीतिक चाणक्यों की कमी नहीं है और माना जाता है कि उनकी प्लानिंग विरोधियों से हमेशा दो कदम आगे ही रहती है. लेकिन इन्हें पछाड़ते हुए अखिलेश यादव ने ऐसा दांव खेला कि बीजेपी के बड़े-बड़े दिग्गज देखते रह गए. बनारस में समाजवादी पार्टी ने मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में निर्दलीय उतरे तेज बहादुर यादव को नामांकन के आखिरी वक्त पर अचानक अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया है जिससे बनारस में जीत का अंतर बढ़ा रही बीजेपी अब घबराई दिख रही है.
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नेताजी के नक्शेकदम पर अखिलेश !
मुलायम सिंह के बारे में कहा जाता है कि राजनीतिक दांव की सूझबूझ में नेताजी जैसा पॉलिटिशियन देश में कम ही है. अभी तक तो यही लग रहा था कि 2017 में अखिलेश यादव को सिर्फ मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत ही मिली है. लेकिन जिस तरह से अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में एक के बाद एक चुनावी पासा फेंक रहे हैं, उससे साफ हो चुका है कि अखिलेश भी सियासी दांवपेंच में नेताजी के नक्शेकदम पर आगे बढ़ रहे हैं.
अखिलेश ने बनारस में मोदी के खिलाफ नामांकन के आखिरी घंटे में ऐसी पॉलिटिकल बॉल फेंकी कि पूरी बीजेपी बौखला गई. बनारस में मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की चर्चा खूब जोर पकड़ रही थी. लेकिन प्रियंका के मैदान में नहीं उतरने के बाद बनारस का चुनावी माहौल नीरस सा हो गया था. समाजवादी पार्टी ने यहां से शालिनी यादव को उम्मीदवार बनाया तो कांग्रेस ने पांच बार के विधायक रहे अजय राय को मैदान में उतारा है.
बनारसी चर्चा की बात करें तो लोगों को ऐसा लगता है कि बनारस में मोदी की जीत में अब कोई शक नहीं रहा और मोदी की लड़ाई सिर्फ मोदी से है. मतलब कि वो 2014 की तुलना में इस बार जीत का अंतर कितना बढ़ा पाते हैं. यही उनका चैलेंज है इस बार और इसके लिए टीम मोदी लगी हुई है.
शालिनी को सामने रख टीम मोदी को किया ‘कन्फ्यूज’
कांग्रेस और एसपी के पत्ते खोलने के पहले बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव नामांकन कर चुके थे और चुनावी मैदान में डटे थे. जो शुरुआती दिनों में अखबार की सुर्खियां तो बटोर पाए थे लेकिन जैसे ही बड़े नेताओं ने एंट्री ली, तेज बहादुर यादव खबरों से गायब हो गए.
लेकिन राजनीति में कब-कौन किसके लिए ‘अन्ना’ बन जाए, ये कहा कहा नहीं जा सकता. बीएसएफ का बर्खास्त जवान जो चंदे के भरोसे चुनाव लड़ रहे थे. केजरीवाल से लेकर एसपी, कांग्रेस समेत प्रमुख पार्टियों से समर्थन की अपील कर रहे थे. इस बीच अखिलेश यादव ने प्रत्याशी के तौर पर सामने तो शालिनी यादव को रखा लेकिन अंदर ही अंदर उनकी बातचीत तेज बहादुर यादव से चल रही थी. लेकिन पेंच फंसा था एसपी के सिंबल को लेकर.
अखिलेश चाहते थे कि तेज बहादुर यादव एसपी के सिंबल पर चुनाव लड़ लेकिन वो मान नहीं रहे थे. हालांकि, बाद में तेज बहादुर यादव साइकिल पर सवार होने को राजी हो गए. तेज बहादुर को चुनावी मैदान में उतारने से पहले अखिलेश यादव ने 27 अप्रैल को वाराणसी के सभी प्रमुख समाजवादी पार्टी के नेताओं को लखनऊ बुलाया और अपना आदेश सुनाया. हालांकि एसपी सुप्रीमो को इस बात का डर था कि तेज बहादुर के ऊपर सेना से जुड़े तमाम आरोप है, ऐसे में कहीं उनका पर्चा खारिज ना हो जाए.
गोरखपुर में भी बिगाड़ चुके हैं बीजेपी का खेल !
बनारस की तरह गोरखपुर में भी अखिलेश यादव बीजेपी की चाल बिगाड़ चुके हैं. गोरखपुर में तो अखिलेश के दांव के बाद बीजेपी अभी तक खड़ी नहीं हो पाई है. योगी आदित्यनाथ निषाद पार्टी को अपने पाले में लाए तो अखिलेश यादव ने तुरंत रामभुवाल निषाद को टिकट देकर बीजेपी के मंसूबे पर पानी फेर दिया. आखिरकार बीजेपी को मजबूरी में भोजपुरी फिल्म स्टार रविकिशन को मैदान में उतारना पड़ा, जिसे लेकर चर्चा है कि बाहर का प्रत्याशी क्यों?
तेज बहादुर यादव के एसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने से बनारस में नरेंद्र मोदी की सियासी चाल बिगड़ सकती है. बीजेपी अभी तक राष्ट्रवाद और सैनिकों के सम्मान के नाम पर चुनावी मैदान में थी. इन दोनों ही मुद्दों के आधार ही वह विरोधियों को घेर रही थी लेकिन बनारस में बीजेपी का यह दांव उल्टा पड़ रहा है. यहां पर पार्टी के सामने एक पूर्व सैनिक ही सरकार की पोल खोल रहा है. तेज बहादुर यादव को अब सेना के पूर्व जवानों के अलावा सामाजिक संगठनों के साथ अब एसपी-बीएसपी गठबंधन का मजबूत साथ है. माना जा रहा है कि मोदी से नाराज वर्ग तेज बहादुर यादव को हाथों हाथ ले सकते हैं, वैसे ही जैसे 2014 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल को लिया था.
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