लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी और एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला, वहीं इन नतीजों ने कुछ पार्टियों के वजूद पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी भी इसी लिस्ट में शामिल है. दिल्ली में अपने दम पर लड़ने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी दूसरा नंबर भी हासिल नहीं कर पाई. हालात ये हैं कि यहां की 7 सीटों में से तीन पर AAP उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
दिलीप पांडे नहीं बचा पाए जमानत
आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडे को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से टिकट मिला था. यहां पहले से ही कांग्रेस और बीजेपी ने अपने दिग्गज उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया था. कांग्रेस ने जहां अपनी प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित को मैदान में उतारा था, वहीं बीजेपी ने भी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को उम्मीदवार बनाया. तिवारी ने यहां से साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों के साथ जीत दर्ज की. दूसरे नंबर पर शीला दीक्षित रहीं और दिलीप पांडे की जमानत जब्त हो गई.
दिल्ली की 7 सीटों में से कांग्रेस के भी एक उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई है. साउथ दिल्ली से स्टार बॉक्सर विजेंदर सिंह की जमानत जब्त हो गई. यहां से रमेश बिधूड़ी करीब साढ़े तीन लाख वोटों से जीते, वहीं दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा रहे
ब्रजेश गोयल की करारी हार
नई दिल्ली लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी ने व्यापारी नेता ब्रजेश गोयल को टिकट दिया. लेकिन इस हॉट सीट पर जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं था. यही वजह रही कि गोयल को करारी हार झेलनी पड़ी और जमानत तक नहीं बचा पाए. मीनाक्षी लेखी ने यहां से करीब ढ़ाई लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की. दूसरे नंबर पर कांग्रेस नेता अजय माकन रहे.
चांदनी चौक से पंकज गुप्ता
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की चांदनी चौक सीट से पंकज गुप्ता को मैदान में उतारा था. लेकिन उन्हें भी यहां जोरदार पटखनी मिली. इस सीट पर बीजेपी ने हर्ष वर्धन को उतारा और उन्होंने दो लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार जय प्रकाश अग्रवाल को हराया. तीसरे नंबर पर रहे पंकज गुप्ता को करारी हार झेलनी पड़ी.
चुनाव में उस उम्मीदवार की जमानत जब्त मानी जाती है जो कुल पड़े वोट का छठा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाता है. आम आदमी पार्टी के तीन उम्मीदवारों और कांग्रेस के एक उम्मीदवार को भी कुल वोट का छठा हिस्सा भी नहीं मिल पाया
विधानसभा चुनाव के लिए खतरा
दिल्ली में लोकसभा चुनाव के ठीक बाद अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में आम चुनावों के नतीजे आम आदमी पार्टी के लिए एक खतरा साबित हो सकते हैं. जो पार्टी दिल्ली की सत्ता में है, उसे लोकसभा चुनाव में दूसरा नंबर भी न मिलना खतरे की घंटी ही माना जाएगा. विधानसभा चुनाव में भी इसका खासा असर दिख सकता है. एक जमाने में कांग्रेस से गठबंधन न करने की कसमें खाने वाले केजरीवाल ने इस बार गठबंधन के लिए कांग्रेस की खूब जी हुजूरी की. हालांकि लाख कोशिशों के बाद भी गठबंधन नहीं हुआ. केजरीवाल कहीं न कहीं जानते थे कि अगर वो दिल्ली में अकेले लड़ते हैं तो भारी नुकसान होगा. नतीजों से पहले भी केजरीवाल ने मान लिया था कि अंतिम समय में उनके वोट कांग्रेस को चले गए.
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