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बिहार के पूर्व DGP गुप्तेश्वर पांडे कौन हैं, पहले भी दिया इस्तीफा

गुप्तेशवर पांडे ने बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) से ठीक पहले वीआरएस ले लिया है. 

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"रॉबिनहुड बिहार के" नाम से एक गाना रिलीज हो रहा है. बिग बॉस फेम सिंगर दीपक ठाकुर ने गाया है, जिसमें कोई भोजपुरी या बॉलीवुड एक्टर नहीं है बल्कि बिहार के सबसे चर्चित आईपीएस हैं. नाम है गुप्तेश्वर पांडे. वही गुप्तेश्वर पांडे (गुप्तेश्वर पांडे) जो कल तक बिहार के पुलिसिया तंत्र के सबसे बड़े अधिकारी थे, डीजीपी थे और अब 'विधायक इन वेटिंग' हैं.

1987 बैच के आईपीएस ऑफिसर गुप्तेशवर पांडे ने बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) से ठीक पहले अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया और वीआरएस ले लिया है. वो भी रिटायरमेंट से सिर्फ 5 महीने पहले.

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माना जा रहा है कि बिहार चुनाव में पांडे बक्सर या भोजपुर से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से उम्मीदवार हो सकते हैं.

चलिए आपको नेता बनने से पहले वाले गुप्तेश्वर पांडे की प्रोफाइल से रूबरू कराते हैं.

कौन हैं गुप्तेश्वर पांडे?

"बिहार के मुख्यमंत्री पर कमेंट करने की औकात रिया चक्रवर्ती की नहीं है". बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने CBI जांच की मंजूरी दी थी, जिसके तुरंत बाद गुप्तेश्वर पांडे ये बयान देकर देशभर में सुर्खियों में आ गए थे. यही नहीं सुशांत सिंह की मौत के मामले में भी पांडे मुंबई पुलिस पर सहयोग न करने का आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन इससे पहले कई घटनाएं हैं जिसे लेकर गुप्तेश्वर पांडे चर्चा में रहे हैं.

ग्रेजुएशन से लेकर UPSC तक संस्कृत का साथ

2019 लोकसभा चुनाव से पहले गुप्तेश्वर पांडे को नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार का डीजीपी बनाया था. इससे पहले उनके पास डीजी ट्रेनिंग और डीजी पुलिस अकेडमी की जिम्मेदारी थी. बक्सर के गेरुआबंध गांव के रहने वाले पांडे ने पटना यूनिवर्सिटी से संस्कृत में ग्रैजुएशन किया और यूपीएससी की परीक्षा में भी संस्कृत को ही अपना विषय चुना था.

गुप्तेश्वर पांडे ने पहले ही अटेम्पट में यूपीएससी क्वॉलीफाई किया और इनकम टैक्स अधिकारी के तौर पर पहली पोस्टिंग हुई. लेकिन उन्हें IPS बनना था, जिसके लिए उन्होंने दोबारा UPSC दिया और दूसरी कोशिश में आईपीएस बन गए.

क्राइम पर कंट्रोल, नक्सल और गुंडई पर लगाम

द लल्लनटॉप वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में पांडे ने अपनी नौकरी में रहते हुए अपराध को कैसे लगाम में रखा उसके बारे में बताया है. पांडे नक्सल प्रभावित जहानाबाद, बेगूसराय और नालंदा के एसपी रहे.

उन्होंने बताया कि बेगुसराय में उनकी टीम ने 42 मुठभेड़ किए और 400 से ज्यादा अपराधियों को जेल भेज दिया. उस दौर में बेगुसराय में माफिया अशोक सम्राट का दबदबा था, लेकिन उन सबको कंट्रोल किया.

इसके बाद पांडे मुंगेर और मुजफ्फरपुर के डीआईजी बने. फिर मुजफ्फरपुर जोन के आईजी डीजीपी बनने से पहले बिहार पुलिस (ट्रेनिंग) के डीजी. लेकिन विवादों के साथ नाम जुड़ता गया.

नवरुणा अपहरण और हत्या केस में नाम

बिहार के मुजफ्फरपुर में 18-19 सितंबर 2012 को 12 साल की एक बच्ची नवरुणा का अपहरण उसके घर से हुआ था. अपहरण के बाद 26 नवंबर 2012 को घर से सटे नाले से उसकी हड्डियां बरामद हुई थीं. मामले ने पुलिसिया कामकाज पर सवाल उठाए. इस दौरान पांडे मुजफ्फरपुर के आईजी थे और केस की जांच करने वाले अधिकारियों में शामिल भी.

मामला बढ़ा तो नवरुणा अपहरण केस स्थानीय पुलिस से सीआईडी को दिया गया फिर फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच को अपने हाथ में लिया.

नवंबर 2018 में सीबीआई ने नवरुणा केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय बढ़ाने की मांग की थी. सीबीआई के एप्लीकेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए आखिरी 6 महीने का वक्त दिया है. सीबीआई ने जिस एप्लीकेशन के आधार पर वक्त मांगा है, उसमें इस केस से जुड़े कुछ अफसरों की जांच का जिक्र किया गया है. उन अफसरों में गुप्तेश्वर पांडेय का नाम भी शामिल है. फिलहाल इस मामले में सीबीआई ने अबतक क्लोजर रिपोर्ट नहीं सौंपी है.
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पहले भी चुनाव लड़ने के लिए छोड़ी थी नौकरी!

ये पहली बार नहीं है जब पांडे ने वीआरएस नहीं लिया हो. आईजी रहते गुप्तेश्वर पांडेय ने साल 2009 में वीआरएस लिया था. उस वक्त राज्य सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया था. तब उनके बक्सर सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा थी. हालांकि बाद में वे किसी भी दल से चुनावी मैदान में नहीं उतरे. तब गुप्तेश्वर पांडेय ने इस्तीफे के 9 महीने बाद बिहार सरकार से कहा कि वो अपना इस्तीफा वापस लेना चाहते हैं. नीतीश कुमार की सरकार ने उनका इस्तीफा वापस कर दिया और फिर गुप्तेश्वर पांडेय नौकरी में वापस आ गए. हालांकि इसपर भी बहस चलती है कि किस आधार पर उन्हें नौकरी पर वापस रखा गया था.

फिलहाल पांडे 'विधायक इन वेटिंग' से विधायक का चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंच पाते हैं या नहीं ये देखना होगा.

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