"बिहार के इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि विपक्ष ने एजेंडा सेट किया है और वो एजेंडा है बेरोजगारी. सब उस एजेंडे पर चल पड़े हैं. सबका घोषणापत्र देख लीजिए, सब रोजगार पर बात करने लगे हैं." पटना के सीनियर पत्रकार रवि उपाध्याय की ये बात बिहार की नई कहानी बता रही है.
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज की वोटिंग 28 अक्टूबर को है. बिहार में आधी से ज्यादा आबादी युवा है, ऐसे में बिहार में रोजगार पर चर्चा जोरों पर हैं. जिस बिहार में नौकरी की सुखाड़ थी वहां अलग-अलग पार्टियां नौकरी की बारिश की बात कर रही हैं. ऐसे में सबसे अहम सवाल ये है कि बिहार के युवाओं का मेनिफ्सेटो क्या होना चाहिए?
चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में 18 से 40 साल की उम्र के 4 करोड़ से भी ज्यादा वोटर हैं. मतलब आधे से ज्यादा वोटर. ऐसे में जो भी पार्टी इन युवाओं को अपने पक्ष में ले आती है उसका चुनाव जीतना तय है.
युवाओं के मेनिफेस्टो में क्या-क्या
1. प्राइवेट स्कूल के टक्कर का हो सरकारी स्कूल
युवाओं के मेनिफेस्टो में भले ही नौकरी सबसे बड़ा मुद्दा हो लेकिन नौकरी पाने के लिए जिस शिक्षा व्यवस्था पर काम होना चाहिए उसमें बिहार बहुत पीछे है. स्कूल और बच्चों पर काम करने वाले फवाद गजाली बताते हैं कि स्कूल में शिक्षकों की कमी तो है ही लेकिन उसके साथ-साथ क्वालीफाइड टीचर की कमी है. ऐसा टीचर चाहिए जिसे डिजिटल दुनिया की जानकारी हो, जो बच्चों को नई दुनिया से रूबरू करा सके. जब नए और युवा टीचर पढ़ाने आएंगे तो बेसिक एजुकेशन सुधरेगा. स्कूल में बैठने को बेंच-डेस्क नहीं है. बिहार में बच्चे 10वीं तक कंप्यूटर नहीं देख पाते हैं, सोचिए वो कैसे देश के बाकी बच्चों से कॉम्पेटीशन करेंगे. स्कूल को स्मार्ट स्कूल बनाना होगा.
हालांकि आरजेडी ने सरकार बनने पर बजट का 22 फीसदी शिक्षा क्षेत्र में खर्च करने की बात कही है. वहीं बीजेपी ने भी आईटी पार्क और डिजिटल लिट्रेसी पर फोकस को अपना एजेंडा बनाया है.
2. शिक्षकों की बहाली
बिहार नियोजित शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदार पांडे बताते हैं, "बिहार में शिक्षकों की कमी है, छात्रों के अनुपात में शिक्षक बहुत कम हैं. फिलहाल 4 लाख के करीब टीचर हैं बिहार में. जिसमें ढाई लाख शिखकों की और जरूरत है. ऊपर से शिक्षकों की सैलरी जो मिलनी चाहिए वो उससे बहुत कम मिल रहा है. शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए. स्कूल की नीव टीचर होता है, अच्छे टीचर तब ही आएंगे जब यहां वो माहौल दिया जाए. सैलरी अच्छी होगी, संसाधन होगा तो बिहार की तरफ युवा लौटेंगे. स्कूल की तरफ बच्चों को लाने के लिए मिड डे मील ही नहीं बल्की बेहतर सुवीधा भी देनी होगी."
3. कॉलेज की कमी हो दूर
बिहार में पलायन का एक बड़ा कारण कॉलेजों की कमी भी है. यहां बच्चों को बेहतर शिक्षा के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता है. साथ ही जो कॉलेज हैं उनका हाल भी बहुत बुरा है. शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले और जेडीयू के पूर्व प्रदेश सचिव इंजीनियर आनंद पुष्कर कहते हैं, "यहां के बच्चों को बाहर पढ़ने के लिए जाना पड़ता है. न यहां इंजीनियर बनते हैं और न ही यहां इंजिनियरिंग वालों के लिए नौकरी निकलती है. जो लोग रिटायर हो गए हैं उनके पद खाली हो रहे हैं. ऐसे में सरकार को ज्यादा से ज्यादा अच्छे कॉलेज खोलने चाहिए और जो कॉलेज हैं उन्हें बेहतर बनाने की जरूरत है.
4. सरकारी के साथ-साथ प्राइवेट नौकरी मिले
आनंद पुष्कर आगे कहते हैं कि सरकारी नौकरी सबको नहीं मिल सकती है ये सच है लेकिन अगर बिहार में बड़ी प्राइवेट कंपनियों को लाया जाए, उन्हें वो मौका दिया जाए तो इंफोसिस, विप्रो जैसी सॉफ्टवेयर कंपनियां यहां आएंगी, फिर यहां के बच्चों को प्राइवेट क्षेत्र में भी नौकरियां मिलेंगी, तब हम देश के बाकी राज्यों के सामने नजर मिला पाएंगे.
सीनियर पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि बिहार में जो युवा वोटर है वो नीतीश के 15 साल बनाम लालू के 15 साल से कनेक्ट नहीं करता है. क्योंकि जो बच्चे लालू यादव के दौर में छोटे थे वो अब बड़े हो गए हैं, तो उन्हें मतलब नहीं है कि 15 साल पहले क्या था. उनके लिए अब अहम है शिक्षा, रोजगार. उन्हें पढ़ने के लिए नौकरी के लिए बाहर जाना पड़ता है. इसी वजह से सभी पार्टियों ने अब अपने प्रचार का तरीका बदल कर रोजगार को मुद्दा बनाया है.
5. इंडस्ट्री
बिहार में पिछले 30 सालों में चीनी मिल, जूट मिल और राइस मिल जैसी सैकड़ों बड़ी इंडस्ट्री बंद हुई है. क्विंट ने भी अपनी चुनावी यात्रा के दौरान ऐसी ही बंद पड़ी इंडस्ट्री की कहानी समझने की कोशिश की. सरकारी लापरवाही की वजह से हजारों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा. समस्तीपुर शूगर मिल के पूर्व कर्मचारी नागेश्वर बताते हैं कि अगर मिल शूरू होता है तो मिल में तो लोगों को नौकरी मिलेगी ही लेकिन साथ ही मिल की वजह से किसान, ट्रैक्टर, दिहाड़ी मजदूर सबको रोजगार मिलता है. और अगर बिहार में बंद पड़ी मिलों को ही दोबारा से शुरू कर दिया गया तो एक-दो लाख लोगों के रोजगार तो आसानी से मिल जाएगा.
6. सरकारी नौकरी में बहाली
बिहार में बीपीएससी से लेकर दरोगा बहाली में एग्जाम की तारीख और ज्वाइनिंग लेटर के इंतजार में हजारों छात्र बेबस हैं. सहरसा के वैभव बताते हैं कि वो 3 साल से दरोगा की तैयारी कर रहे हैं लकिन कभी एग्जाम में धांधली की वजह से तो कभी किसी और वजह से एग्जाम रद्द कर दिया जाता है. एग्जाम से पहले ही प्रशन पत्र लीक हो गया था. बिहार में कॉलेज में प्रोफेसर, नर्स, डॉक्टर, टीचर, दरोगा ऐसे दर्जनों विभाग हैं जहां 30-40 फीसदी पद खाली हैं, ऐसे में युवाओं के मेनिफेस्टो में सरकारी नौकरी में खाली पड़े पदों की मांग भी अहम है.
7. खेल के फील्ड में नए रास्ते
युवाओं के मेनिफेस्टो में खेल भी एक अहम मुद्दा है. सहरसा के फिजिकल ट्रेनर रनजन बताते हैं कि कई सालों से फिजिकल टीचर की वैकेंसी नहीं आई थी. 2008 में वैकेंसी के बाद 2019 में वैकेंसी आई. 8000 में से 4500 लोगों का स्लेकशन हुआ. लेकिन एक साल से ज्वाइनिंग नहीं हुआ. अब खबर आई की फिजिकल टीचर की मासिक वेतन 8 हजार रुपए होगी. मनरेगा मजदूर से भी कम सैलरी. बता दें कि खेल के मामले में बिहार काफी पिछड़ा है, इंटरनेशनल लेवल के स्टेडियम की कमी तो है ही लेकिन इसके अलावा बिहार के बच्चे न ही क्रिकेट में नाम कमा पा रहे हैं न ही किसी और स्पोर्टस में मुकाम हासिल कर पा रहे हैं. वजह है, स्पोर्टस की तरफ सरकार की बेरुखी.
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