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बिहार से पलायन रोकना है तो इन तालों को खोलना होगा  

बिहार में पहले चरण का मतदान और समझिए क्यों नहीं निकलता पलायन का समाधान

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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

बिहार में पिछले कई दशकों से इंडस्ट्री का लॉकडाउन लगा हुआ है. चीनी मिल, पेपर मिल, जूट मिल सब पर एक के बाद एक ताला लग गया जिसकी वजह से यहां के लोग जीविका के लिए पलायन करने को मजबूर हैं. क्विंट ने बिहार के कुछ ऐसे ही इलाके में जाकर वहां के लोगों से बात की और जानना चाहा कि इस इंडस्ट्री लॉकडाउन से उनके जीवन पर कितना असर पड़ा.

लोहट शुगर मिल के आसपास सब कुछ जंगल में बदल चुका है. करीब 23 साल से मिल बंद पड़ा हुआ है.

1997 में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने शुगर मिल से हो रहे घाटे के बाद सभी मिल को बंद करने का आदेश दिया. जिसके बाद से सब बंद है.
मोती रहमान, पूर्व मिल कर्मचारी, लोहाट  

वो बताते हैं कि मिल में काम कर रहे 12-13 सौ वर्करों का पैसा बाकी है. अभी तक किसी का पेमेंट नहीं हुआ है.

बर्बाद इंडस्ट्री की कहानियां सिर्फ लोहट तक ही सिमटी नहीं हैं..ये और भी हैं. समस्तीपुर के शुगर मिल के भी वही हालात हैं. चीनी मिल पानी में डूब चुका है.

फैक्ट्री अब नहीं चलाना है तो मान कर चलिए कि जब बागबां उजर जाता है और उस समय जो लोगों का हाल होता है कि अब हम कहीं के नहीं हैं, कहां जाएंगे. किसी की उम्र अब ऐसी नहीं है कि कहीं और नौकरी करे. यहां के मजदूर रोड पर ठेला और रिक्शा चलाए हैं.
नागेश्वर कुमार, पूर्व मिल कर्मचारी, समस्तीपुर  

वैसे ही जितवारपुर का ठाकुर पेपर मिल भी बंद पड़ा हुआ है. लोग बताते हैं कि कबाड़ी वाले प्लांट काट कर ले गए. हजारों लोग बेरोजगार हो गए और वो पलायन कर दिल्ली, पंजाब चले गए. इस बार के चुनाव से क्या बदलेगी इनकी किस्मत?

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