नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए बिहार चुनाव के नतीजों में जीत की तरफ बढ़ता दिख रहा है. ये तस्वीर लगभग सभी एग्जिट पोल के खिलाफ जा रही है क्योंकि इनमें तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन की जीत का अनुमान लगाया गया था. बीजेपी के लिए एग्जिट पोल में भी अनुमान लगाया गया था कि पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन JDU ने भी सभी पोल पंडितों को चौंका दिया है.
फिर भी JDU की सीटें 2015 के विधानसभा चुनाव की तुलना में लगभग 25 कम होती दिख रही हैं और पहली बार वो अपनी सहयोगी बीजेपी से पिछड़ी है.
हालांकि, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि JDU के ऐसे प्रदर्शन की बिलकुल उम्मीद ही नहीं थी क्योंकि नीतीश कुमार के खिलाफ 15 सालों की एंटी-इंकम्बेंसी थी और चिराग पासवान के नेतृत्व में LJP ने JDU के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे.
आखिर में, शायद 'साइलेंट वोटर्स' ने नीतीश कुमार को शर्मसार होने से बचा लिया है. ये आर्टिकल दो सवालों का जवाब देने की कोशिश करेगा:
- नीतीश कुमार के साइलेंट वोटर कौन हैं?
- क्या चुनाव प्रचार के आखिर में की गई उनकी अपील का प्रभाव हुआ?
नीतीश कुमार के साइलेंट वोटर कौन हैं?
इसका जवाब नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग में मिलता है. कुमार का मुख्य समर्थन बेस 'नॉन-डोमिनेंट' जातियों में है, जिनका वर्चस्व बीजेपी के अपर कास्ट समर्थक या RJD के यादव समर्थकों से कम है.
- OBC कुर्मी जाति से आने और समुदाय से समर्थन मिलने के बावजूद, नीतीश कुमार उस तरह के कुर्मी नेता नहीं हैं, जिस तरह लालू यादव को यादव नेता और राम विलास पासवान को दुसाध दलितों का नेता देखा जाता था.
- 15 सालों के सीएम कार्यकाल के दौरान नीतीश ने अति पिछड़ा वर्ग और महादलितों में अपना समर्थन बेस बनाया है. कुमार ने इन वर्गों को OBC और SC से अलग पहचान दिलाई है.
कर्पूरी ठाकुर की विरासत
- राजनीतिक विश्लेषक सज्जन कुमार के मुताबिक, नीतीश ने पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर का आरक्षण का फॉर्मूला अपनाया है. ठाकुर ने मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात कही थी. OBC की नाई जाति से आने वाले ठाकुर OBC फ्रेमवर्क में सब-कैटेगोराइजेशन के लिए खड़े हुए थे, ताकि सारा फायदा ज्यादा प्रभावशाली यादव जाति को न मिले.
- दूसरा मॉडल बीपी मंडल आयोग ने सामने रखा था और लालू यादव उसके चैंपियन बने थे. इसमें OBC का आगे सब-डिवीजन नहीं था.
- इसी तरह नीतीश कुमार ने महादलितों को SC कोटे में सब-कोटा दिलाया, जिससे उन्हें ज्यादा प्रभावशाली SC समूह-दुसाध और पासी समुदाय के खिलाफ फायदा मिला.
महिला वोटर
- साइलेंट वोटर का एक और वर्ग महिलाओं का है. नीतीश की कई स्कीम जैसे कि शराबबंदी से महिलाओं में उनकी पैठ बनी है. पिछले विधानसभा चुनावों में भी नीतीश को महिला वोटरों से मदद मिली है.
- इस चुनाव में वोटर टर्नआउट पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा देखा गया. शायद इससे नीतीश को फायदा हुआ है.
- हालांकि, ऐसा हो सकता है कि एग्जिट पोल ने इन महिलाओं के वोट की गिनती नहीं हुई हो. इंडिया टुडे-माई एक्सिस सर्वे में सिर्फ 31 फीसदी महिलाओं का सैंपल था.
क्या नीतीश की अपील का असर हुआ?
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन नीतीश कुमार ने जनता से भावुक अपील करते हुए कहा कि ये उनका आखिरी चुनाव है और वो उन्हें वोट दें. क्या इस अपील का प्रभाव हुआ?
मुमकिन है कि कुछ हद तक प्रभाव हुआ हो, कम से कम उन वोटरों में जिन्होंने पारंपरिक रूप से नीतीश को सपोर्ट किया है लेकिन वोटिंग को लेकर उत्साहित नहीं थे. उन्होंने शायद वोट देने का फैसला किया हो.
रूझान दिखाते हैं कि JDU ने कोसी क्षेत्र में अच्छा किया है. यहां चुनाव के आखिरी चरण में वोटिंग हुई थी.
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