ADVERTISEMENTREMOVE AD

महागठबंधन को किसने किया सत्ता से दूर? कुछ ‘अपने’ भी जिम्मेदार

चुनाव से पहले महागठबंधन का साथ छोड़ने वाले दलों ने किया कई सीटों का नुकसान

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार में फिर एक बार एनडीए की सरकार बनने जा रही है और नीतीश कुमार ही राज्य के सीएम होंगे. तमाम एग्जिट पोल के नतीजों को झूठा साबित करते हुए बिहार की जनता ने बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को ही चुना. वहीं अगर महागठबंधन की बात करें तो सत्ता हाथ में आते-आते छिटक सी गई. क्योंकि एनडीए और महागठबंधन में सिर्फ 15 सीटों का ही फासला रहा. इसके लिए कांग्रेस समेत तमाम अपने ही जिम्मेदार रहे. वो अपने जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हाथ छोड़ दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार चुनाव के लिए वोटिंग खत्म होते ही एग्जिट पोल सामने आए, तमाम बड़े एग्जिट पोल ने बताया कि तेजस्वी यादव इस बार बिहार की सत्ता पर बैठने जा रहे हैं. इसे लेकर आरजेडी के नेता और तेजस्वी यादव भी उत्साहित नजर आए, परदे के पीछे जीत की तैयारियां भी शुरू हो चुकी थीं. लेकिन नतीजों के रुझानों ने बता दिया कि मामला उतना आसान नहीं है, जितना दिखाया गया था. आखिरकार महागठबंधन को 110 सीटों के साथ विपक्ष में ही बैठने का मौका दिया गया.

कांग्रेस के स्ट्राइक रेट ने तोड़ा सपना

अब हम आपको ये बताते है कि कौन से वो फैक्टर हैं, जिन्होंने महागठबंधन के हाथों में आती दिख रही सत्ता की चाबी को छीन लिया. इस लिस्ट में पहले तेजस्वी के अपनों से शुरुआत करते हैं.

महागठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, जिनमें से सिर्फ 19 सीटों पर ही पार्टी के उम्मीदवार जीते हैं. कांग्रेस का वोट शेयर कुल 9.48% रहा. पार्टी के इस स्ट्राइक रेट की उम्मीद तेजस्वी तो क्या खुद कांग्रेस को भी नहीं रही होगी.

ये वही पार्टी है जिसने पिछले चुनावों में यानी 2015 में जेडीयू और आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन तब कांग्रेस को 70 नहीं बल्कि सिर्फ 41 सीटें लड़ने के लिए मिली थीं. इस चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट पिछले सभी चुनावों से बेहतर रहा था.

अब तमाम चुनावी जानकार तेजस्वी के कांग्रेस को इस चुनाव में 70 सीटें देने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं. तो कुल मिलाकर कांग्रेस के बुरे स्ट्राइक रेट ने महागठबंधन की हार में एक बड़ा रोल अदा किया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ओवैसी का मास्टर स्ट्रोक

अब कांग्रेस के बाद ऐसे भी कुछ दल थे, जिन्होंने महागठबंधन से अलग चुनाव लड़ा. असदुद्दीन ओवैसी पार्टी एआईएमआईएम और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) मिलकर एक गठबंधन के तहत बिहार में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. इस गठबंधन का नाम संयुक्त जनतांत्रिक सेक्यूलर गठबंधन (यूडीएसए) रखा गया. एआईएमआईएम ने कुल 24 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से ज्यादातर सीटें सीमांचल क्षेत्र में थीं. इस मुस्मिल बहुल इलाके से ओवैसी की पार्टी को जमकर समर्थन मिला और पार्टी ने 5 सीटें अपने नाम कर दीं.

ओवैसी फैक्टर ने भी महागठबंधन को बड़ी चोट पहुंचाने का काम किया. पार्टी ने कुल 1.24% वोट शेयर अपने नाम किया. साथ ही एआईएमआईएम को 5 लाख 23 हजार से भी ज्यादा वोट मिले.

अगर इन सीटों पर ओवैसी की पार्टी चुनाव नहीं लड़ती तो ये वोट सीधे महागठबंधन के खाते में जाते, लेकिन ओवैसी ने महागठबंधन के लाखों वोटों और कई सीटों का नुकसान किया. इसीलिए कांग्रेस ने ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताया है और कहा है कि उनकी पार्टी वोट काटू पार्टी है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीआईपी और HAM फैक्टर

अब महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, अलग चुनाव लड़ने वाली एआईएमआईएम के बाद चुनाव से ठीक पहले बागी हुए छोटे दलों ने भी महागठबंधन को पीछे धकेलने का काम किया. विकास साहनी की पार्टी विकासशील इंसां पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की. चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हाथ छोड़कर वीआईपी एनडीए में शामिल हुई थी. जिसका खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ा.

  1. अलीनगर विधानसभा सीट से वीआईपी के मिश्री लाल यादव ने आरजेडी के बिनोद मिश्रा को करीब 3 हजार वोटों से हराया
  2. बोचहा सीट पर वीआईपी के मुसफिर पासवान ने आरजेडी के रमई राम को करीब 11 हजार वोटों से हराया
  3. गौरा बौराम से वीआईपी के उम्मीदवार स्वर्ण सिंह ने आरजेडी के अफजल अली खान को 7 हजार वोटों से हराया
  4. साहेबगंज विधानसभा सीट से वीआईपी के राजू कुमार ने आरजेडी के रामविचार राय को करीब 15 हजार वोटों से हराया
ADVERTISEMENTREMOVE AD

HAM ने भी जीतीं 4 सीटें

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) से भी महागठबंधन के रिश्ते बिगड़े और उन्होंने भी चुनाव से पहले ऐलान कर दिया कि वो इस कांग्रेस-जेडीयू के गठबंधन से अलग हो रहे हैं. इसके बाद मांझी ने नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही. जिसके बाद पार्टी ने बिहार में 4 सीटों पर कब्जा किया. जो महागठबंधन के लिए भारी पड़ीं.

  1. इमामगंज सीट से खुद पार्टी प्रमुख जीतन राम मांझी ने चुनाव लड़ा और आरजेडी के उदय नारायण चौधरी को 16 हजार से ज्यादा वोटों से हराया
  2. बाराचट्टी सीट से HAM उम्मीदवार ज्योति देवी ने आरजेडी की उम्मीदवार समता देवी को करीब 6 हजार वोटों से हराया
  3. सिकंदरा सीट से HAM के प्रफुल कुमार मांझी ने कांग्रेस उम्मीदवार सुधीर कुमार को करीब 5 हजार वोटों से मात दी
  4. टिकरी से HAM के उम्मीदवार अनिल कुमार ने कांग्रेस के सुमंत कुमार को 2 हजार से ज्यादा वोटों से हराया
ADVERTISEMENTREMOVE AD

तो कुल मिलाकर अपनों ने ही महागठबंधन को सत्ता से दूर धकेलने का काम किया. जहां कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने सीटें कम कर दीं, वहीं बागी हुए दलों और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बाकी का काम पूरा कर दिया. अगर जोड़कर देखें तो इन सभी दलों की कुल सीटें लगभग उतनी ही हैं, जितना एनडीए और महागठबंधन की जीत-हार में अंतर है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×