वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ क्या वाकई प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने जा रही हैं ? या फिर ये महज चुनावी चर्चा है. पिछले एक महीने से ये बहस यूपी के राजनीतिक गलियारे में चल रही है. कभी खुद प्रियंका अपने बयानों से इस बहस को हवा देती हैं, कभी उनके पति रॉबर्ट वाड्रा तो कभी राहुल गांधी.
प्रियंका के चुनाव लड़ने, न लड़ने और सस्पेंस की कहानी को विश्लेषक कांग्रेस की एक बड़ी स्ट्रेटजी बता रहे हैं. ऐसा दिख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की रणनीति के तहत कांग्रेस ने जानबूझकर पूरे देश में प्रियंका के चुनाव लड़ने को लेकर माहौल बनाया है.
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कहानी क्या है इसे समझते हैं-
- वाराणसी में पीएम को घेरने की तैयारी, लेकिन बिना किसी चूक के
- 'सियासी शहादत' भी मिली तो एक तीर से कई निशाने
प्रियंका के चुनाव लड़ने पर सस्पेंस के पीछे की कहानी
माना जा रहा है कि अगले एक दो दिनों में प्रियंका गांधी को लेकर कांग्रेस अपने पत्ते खोल देगी. नरेंद्र मोदी से मुकाबले के पहले कांग्रेस होमवर्क पूरा कर लेना चाहती है. कोशिश ये है कि चूक की कहीं गुंजाइश ना हो.आपको ध्यान होगा कि जब पत्रकारों ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या आपकी बहन, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी में उम्मीदवार बनने जा रही हैं? तो राहुल का जवाब था कि- ‘मैं आपको संदेह में छोड़ दूंगा. सस्पेंस हमेशा एक बुरी चीज नहीं है! आगे राहुल गांधी ने जवाब दिया कि प्रियंका के वाराणसी से चुनाव लड़ने के खबर की ना मैं पुष्टि कर रहा हूं ना ही खंडन कर रहा हूं.’
प्रियंका को लेकर राहुल गांधी का बयान बेहद सोच समझकर दिया गया है. रणनीति के तहत कांग्रेस को इंतजार पीएम नरेंद्र मोदी के नॉमिनेशन का है. 23 अप्रैल को छठे चरण का नामांकन खत्म गया है. पीएम मोदी 26 अप्रैल को वाराणसी से अपना नॉमिनेशन फाइल करेंगे और जबकि सातवें चरण में नामांकन अंतिम तारीख 29 अप्रैल है.
कांग्रेस नहीं चाहती है अगर प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ती है तो, मोदी कहीं और से ना नामांकन करें. कुल मिलाकर कांग्रेस की कोशिश है कि मोदी को वाराणसी के अलावा किसी दूसरी सेफ सीट पर जाने से रोका जाए. हालांकि आज की तारीख में नरेंद्र मोदी की ये हैसियत है कि वो देश के किसी भी कोने से लड़े, उन्हें हरा पाना आसान नहीं होगा.
घेरने के लिए बयान पहले से तैयार है!
लेकिन अगर पीएम वाराणसी के अलावा किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस को ये कहने का मौका मिल जाएगा कि प्रियंका के डर से मोदी वाराणसी से भाग गए. वैसे ही जैसे. राहुल गांधी के अमेठी के अलावा वायनाड से चुनाव लड़ने पर बीजेपी के नेता ताने मार रहे थे. वैसे भी प्रियंका अगर बनारस से चुनाव लड़ती हैं तो लड़ाई काफी कांटे की हो सकती है. बनारस भले ही मूड और मिजाज से भाजपाई हो लेकिन ऐसा नहीं है कि उसे यहां शिकस्त नहीं मिली है. साल 2004 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने चार बार के सांसद रहे शंकर प्रसाद जायसवाल को हराया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी बाहुबली मुख्तार अंसारी के खिलाफ बमुश्किल जीत पाए थे.
हार में भी छिपी होगी जीत, कारण कई हैं
प्रियंका के सहारे कांग्रेस एक तीर से कई निशाने कर रही है. वाराणसी के सियासी अखाड़े में अगर प्रियंका गांधी चुनाव हार भी जाती है तो इस हार में उनकी जीत होगी. एक तरह से उन्हें ‘सियासी शहादत’ का दर्जा मिलेगा. प्रियंका के चुनावी मैदान में आने से चौथे, पांचवें, छठवें और सातवें चरण की वोटिंग पर सीधा असर पड़ेगा. इन चरणों में अमेठी से राहुल गांधी, रायबरेली से सोनिया गांधी, पडरौना से आरपीएन सिंह समेत कांग्रेस के कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर लगी है. कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा जो पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जरूरी भी है. क्योंकि किसी भी चुनाव को जीतने के लिए जरूरी है कि माहौल बनाया जाए. मोदी के मुकाबले चुनाव लड़ने से प्रियंका भारतीय राजनीति में एक सशक्त चेहरा बनकर उभरेगीं. जिस मोदी का सामना करने में एसपी-बीएसपी गठबंधन पीछे हट गया.
अगर वैसे दिग्गज के खिलाफ प्रियंका खुद मैदान में उतरती हैं तो ये आत्मघाती कदम नहीं बल्कि दिलेरी कही जाएगी. दूसरे कहें तो अपने इस कदम से प्रियंका काफी हद तक देश में विपक्ष की धुरी बन सकती हैं. सिर्फ चुनाव ही नहीं बल्कि चुनाव के बाद होने वाले गठबंधन में उनका कद बढ़ेगा और नेतृत्व क्षमता निखरकर आएगी. हालांकि प्रियंका के चुनाव लड़ने पर कांग्रेस में सहमति नहीं दिख रही है. कांग्रेस के एक बड़े धड़े को लगता है कि अगर प्रियंका का कद बढ़ेगा तो इसका सीधा असर राहुल गांधी पर पड़ेगा. उन्हें इस बात का डर है कि कहीं प्रियंका के ‘औरे’ के आगे राहुल गांधी दब ना जाए. इसीलिए प्रियंका के ख्वाहिश जाहिर करने के बाद भी कांग्रेस आलाकमान खासतौर से सोनिया गांधी पसोपेश में हैं.
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