चंडीगढ़ (Chandigarh) एक ऐसा खास शहर है जो पंजाब (Punjab) , हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का एक मिश्रण है. चंडीगढ़ इन तीनों राज्यों के राजनीतिक ट्रेंड का असर खुद की राजनीतिक सरगर्मी में दिखाता है. यही कारण है कि चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव 2021(Chandigarh Municipal Corporation elections) के नतीजों को समझने की कुंजी उत्तर पश्चिमी भारत के व्यापक राजनीतिक रुझानों को एक साथ देखने में निहित है.
फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि चंडीगढ़ एक ऐसी लोकसभा सीट है जो राष्ट्रीय ट्रेंड को पढ़ने की कूवत रखता है. चंडीगढ़ ने पिछले चार लगातार लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल से ही एक सांसद चुना है. परंपरागत रूप से यह सीट कांग्रेस और बीजेपी के बीच घूमती रही है. लेकिन नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने से पुराने समीकरण बदल गए हैं.
आखिर समीकरण इतनी तेजी से क्यों बदल गया है? यह जानने के लिए हम नवंबर 2021 की शुरुआत में वापस आते हैं. तब हिमाचल प्रदेश में बीजेपी उपचुनाव हार गई थी और पंजाब -हरियाणा में किसानों का विरोध अभी भी उफान था.
महंगाई के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल ने विपक्षी कांग्रेस को भुनाने के लिए एकदम सही जमीन प्रदान की. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में तो बाजी मार ली लेकिन पंजाब में अंदरूनी लड़ाई में उलझ गई.
पंजाब में राजनीतिक लड़ाई
AAP ने इस ब्रेक का इस्तेमाल पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी छवि और कैडर निर्माण के लिए किया. इसी का नतीजा था कि दिसंबर 2021 के सी-वोटर पंजाब ट्रैकर के अनुसार AAP और कांग्रेस को क्रमशः 39% और 34% वोट मिलने का अनुमान लगाया है.
वोट शेयर में इस बढ़त के बावजूद वोटर-बेस के क्षेत्रीय वितरण के कारण AAP शायद 117 सीटों पंजाब विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर सकती है. साथ ही कांग्रेस राज्य में पहला दलित सीएम बनाकर दलित वोटरों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है.
यही दिखा चंडीगढ़ के चुनावों में क्योंकि AAP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने में तो सक्षम रही लेकिन स्पष्ट बहुमत के आंकड़े से दूर. यह हमें इस सीमित निष्कर्ष पर लाता है कि यह बिना लहर वाली राजनीति है.
यदि यह स्थिति एक और महीने तक बनी रहती है, तो हम पंजाब में बिना बहुमत वाला विधानसभा देख सकते हैं, जिसमें AAP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर रही है और कांग्रेस दो नंबर पर.
फिर से सक्रिय और बदले राजनीतिक रुख के बावजूद AAP की तुलना में कांग्रेस को अधिक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.
साथ ही विरोध प्रदर्शनों के बाद किसानों का अकाली दल या कांग्रेस पर पूरी तरह से भरोसा करने की संभावना नहीं है. इन दोनों पार्टियों का जाट किसानों से तनातनी है, जो पंजाब में ग्रामीण राजनीति पर हावी हैं. इसी तरह के रुझान हरियाणा के जाट क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं.
चंडीगढ़ से किस पार्टी को मिला क्या संदेश?
वापस आते हैं चंडीगढ़ पर. यहां के नगर निगम चुनाव नतीजों में विभिन्न दलों के लिए संदेश स्पष्ट हैं और इनमे से जो पहल करेगा वो अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करेगा.
बीजेपी
बीजेपी के लिए, पार्टी का प्रमुख वरिष्ठ नेतृत्व ही चुनाव हार गया और इसमें चंडीगढ़ के वर्तमान और पूर्व मेयर शामिल हैं. कांग्रेस और AAP के बीच सत्ता-विरोधी वोटों के बंटवारे से बीजेपी का सूपड़ा साफ होने से बच गया.
बुनियादी ढांचे और नागरिक सेवाओं पर उचित जोर देने के बावजूद, चंडीगढ़ में पार्टी को खारिज कर दिया गया है. इससे पहले चंडीगढ़ ने पंजाब की राजनीतिक लहर से स्वतंत्र होकर वोट डाला है. हालांकि इस बार पंजाब का खुमार शहर को प्रभावित कर रहा है. केवल विकास के नारे पर निर्भर रहने की रणनीति अभी कुछ खास फल नहीं दे रही है.
AAP
AAP ने यहां बीजेपी-कांग्रेस के एकाधिकार को चुनौती देकर खुद को बदलाव की पार्टी के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया है. धार्मिक स्थिति और भ्रष्टाचार के आरोपों से रहित इस पार्टी ने शहरी मध्यम वर्ग और मजबूत ग्रामीण जड़ों वाले मतदाताओं को आकर्षित किया. यह अब चंडीगढ़ में बीजेपी के लिए प्रमुख चुनौती है.
AAP के उभरने से संभावना है कि बीजेपी का विरोध करने वाले सभी भविष्य में AAP के साथ जुड़ जाएंगे. AAP के पास कांग्रेस के विपरीत कैडर बेस बनाने की एक बड़ी ताकत है, जबी कांग्रेस काफी हद तक चंडीगढ़ में मजबूत स्थानीय नेताओं पर निर्भर है. इन नेताओं को अपने पाले में करना असंभव नहीं हैं.
कांग्रेस
कांग्रेस एक और ऐसे चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने में विफल रही है जहां सत्ता विरोधी लहर चल रही थी. पार्टी को स्थानीय दिग्गजों के प्रदर्शन ने बचाया, जिन्होंने अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को अपने दम पर जीता.
चंडीगढ़ में प्रदर्शन का पंजाब इकाई के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है, जो पहले से ही अंदरूनी लड़ाई और बंटवारे में उलझी है. साथ ही कांग्रेस को गोवा और उत्तराखंड में अपनी रणनीतियों का भी फिर से मूल्यांकन करना चाहिए क्योंकि AAP के इन दोनों राज्यों में पहले से बेहतर प्रदर्शन की संभावना है.
2021 का चंडीगढ़ 2013-15 की दिल्ली जैसा है. यहां भी कांग्रेस एक घटती हुई ताकत है, बीजेपी अपने कोर वोट बैंक पर टिकी है, लेकिन व्यापक मतदाताओं का आकर्षण खो रही है, और AAP आगे बढ़ रही है.
चंडीगढ़ में भविष्य में कांग्रेस और AAP का गठबंधन मजबूत होगा. कांग्रेस को जमीनी हकीकत को स्वीकार कर इस केंद्र शासित प्रदेश में जूनियर पार्टनर बनना पड़ सकता है.
AAP को भी यह महसूस करना चाहिए कि उसे भले ही महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ है, लेकिन उसे अभी भी एक प्रमुख पार्टी बनना है. बीजेपी को स्पष्ट रूप से उत्तर पश्चिम भारत में अपनी स्थिति में सुधार करने की आवश्यकता है, और चंडीगढ़ उत्तर पश्चिमी चुनावी ट्रेंड का योग है. वर्तमान में बीजेपी विपक्षी फूट का फायदा ले रही, लेकिन यह भविष्य के लिए एक स्थायी राजनीतिक रणनीति नहीं हो सकती है.
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