राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Elections) की तारीखों का ऐलान हो चुका है. राजनीतिक पार्टियां अपने साथ नए-नए चेहरे जोड़ने और समीकरण बनाने में जुटी हैं. 17 अक्टूबर को बीजेपी ने महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह और करनी सेना के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत लोकेंद्र सिंह कालवी के बेटे भवानी सिंह कालवी को बीजेपी में शामिल करवाया है.
इन नेताओं के कद का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब दोनों को पार्टी में शामिल कराया गया तब केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, प्रभारी अरुण सिंह और सांसद दीया कुमारी इस मौके पर मौजूद रहीं.
राजघरानों से आने वाले बड़े राजपूत चेहरों को बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले क्यों चुना? मेवाड़ और मारवाड़ पर इससे क्या प्रभाव पड़ेगा? और वसुंधरा राजे सिंधिया के होते हुए बीजेपी राजघरानों से आने वाले दूसरे चेहरों पर क्यों जोर लगा रही है? सब समझने की कोशिश करते हैं.
विश्वराज सिंह ने पार्टी में शामिल होने के बाद कहा कि उनके पूर्वजों ने हमेशा सर्वसमाज की रक्षा और भलाई के लिए सोचा है और इसी सोच के साथ वह बीजेपी से जुड़े हैं. भवानी सिंह कालवी ने बीजेपी और पीएम मोदी की तारीफ की और कहा कि उन्हें पार्टी की तरफ से जो हुक्म दिया जाएगा, उसका पूरा पालन करेंगे.
राजपूत वोटों को साधने की कोशिश
कांग्रेस के हाथों 2018 के विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवाने के बाद से बीजेपी राजस्थान में नए राजपूत नेतृत्व की तलाश कर रही है. भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में बीजेपी के लिए बड़ा राजपूत चेहरा हुआ करते थे, लेकिन बाद में वसुंधरा राजे सिंधिया हावी हो गईं. लेकिन अब वसुंधरा और बीजेपी के बीच रिश्ते में दूरी की खबरें आती रहती हैं. इसलिए अब जब इस करवाहट के बीच नए राजपूत चेहरों को पार्टी में शामिल किया जा रहा है तो कई सवाल भी उठेंगे.
उदयपुर राजघराने से आने वाले विश्वराज सिंह 16वीं सदी के राजपूत शासक महाराणा प्रताप के वंशज हैं. वे भगवत सिंह मेवाड़ के पोते हैं, जो 1955 से 1971 तक पूर्ववर्ती उदयपुर रियासत के शासक थे. भवानी सिंह कालवी प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी रहे हैं. वे दिवंगत लोकेंद्र सिंह कालवी के पुत्र हैं. लोकेंद्र सिंह करनी सेना के पूर्व अध्यक्ष थे. उन्हें करनी सेना का संरक्षक माना जाता था.
अनुमान के मुताबिक, राजस्थान में राजपूतों की आबादी 10 प्रतिशत के करीब है और ये 30 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं. इनमें से ज्यादातर सीटें मेवाड़ और मारवाड़ क्षेत्र में आती हैं. राजपूत पारंपरिक रूप से बीजेपी के वोटर माने जाते थे, लेकिन 2018 के चुनावों में वो कुछ हद तक पार्टी से दूर चले गए. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजपूतों को 26 सीटें दीं जिसमें सिर्फ 10 पर जीत मिली. कांग्रेस ने राजपूतों को 15 सीटें दीं और उनमें से सात पर जीत मिली.
पार्टी लगातार दीया कुमारी के कद में भी बढ़ोतरी कर रही है. इसके 2 कारण माने जा रहे हैं. पहला, वसुंधरा के बराबर कोई चेहरा खड़ा करना. दूसरा, राजपूत वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करना.
दीया कुमारी भारत में ब्रिटिश राज के दौरान जयपुर रियासत के अंतिम शासक महाराजा मान सिंह द्वितीय की पोती हैं. बीजेपी ने दीया कुमारी को जयपुर की विद्याधर नगर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. ये वरिष्ठ नेता और पांच बार के विधायक नरपत सिंह राजवी की सीट थी. राजवी खुद पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के दामाद हैं.
वसुंधरा राजे सिंधिया को साइड कर रही बीजेपी?
कहा जाता है कि बीजेपी लगातार वसुंधरा राजे सिंधिया की जगह राजघराने से कोई बड़ा चेहरा खड़ा करने की कोशिश कर रही है और ये चेहरा कोई और नहीं बल्कि राजसमंद सीट से लोकसभा सांसद दीया कुमारी हैं. वसुंधरा और बीजेपी के रिश्तों में लंबे समय से खटास देखी जा रही है.
हाल ही में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जयपुर में थे तो दीया को मंच प्रबंधन की जिम्मेदारी मिली. पीएम मोदी की उपस्थिति में उन्हें बोलने का मौका मिला. दीया ने उस महिला प्रतिनिधिमंडल का भी नेतृत्व किया जो नारी वंदन विधेयक पारित करने के लिए धन्यवाद देते हुए पीएम के काफिले के आगे चल रहा था.
इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मौजूद रहीं लेकिन उन्हें इतनी तवज्जो नहीं मिलती दिखी. इन सब के अलावा बीजेपी दीया को सुरक्षित सीट से चुनाव लड़वा रही है. जानकारों के अनुसार, यदि बीजेपी दीया को मुख्यमंत्री चेहरा बना दे तो कोई हैरानी नहीं होगी.
बीजेपी ने इसी चुनाव में राजे के करीबी माने जाने वाले कई विधायकों के टिकट काट दिए हैं. मंत्रिमंडल में मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत को टिकट नहीं दिया गया है. इसी तरह, भरतपुर की नगर सीट से पूर्व विधायक अनिता सिंह और उनके एक अन्य वफादार अजमेर से विकास चौधरी के टिकट भी काट दिए गए.
इन सब के बावजूद वसुंधरा खुल कर कुछ बोल नहीं रही हैं और दूसरी तरफ पार्टी शाही परिवारों से नए चेहरों को मौका दे रही है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी को नए राजपूत नेताओं का फायदा हो सकता है, लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया को किनारे लगाने का नुकसान भी हो सकता है. अब असल में क्या होता है ये तो 3 दिसंबर को पता चलेगा जब चुनावों के नतीजे आएंगे.
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