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EVM अंडर रडार...ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब मिलने चाहिए

क्या EVM और VVPAT से छेड़छाड़ हो सकती है?

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चुनाव
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पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों से पहले एक बार फिर से EVM सवालों के घेरे में है. मिर्जापुर, बरेली से लेकर वाराणसी में अचानक ईवीएम को लेकर हंगामे हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए कहा है कि वाराणसी में EVM की गाड़ी पकड़ी गई है तो कहीं ओपी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रवक्ता प्रशासन पर अवैध रूप से EVM के मूवमेंट का आरोप लगा रहे हैं.

हालांकि ये पहली बार नहीं है जब ईवीएम को लेकर हंगामे हो रहे हैं, बीजेपी से लेकर कांग्रेस और दूसरी पार्टियां इस पर सवाल उठाती रही हैं.

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बता दें कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे, इस चुनाव में बीजेपी की हार हुई थी. इसी के बाद ईवीएम में खामियों को लेकर बीजेपी के तत्कालीन प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक किताब 'डेमोक्रेसी ऐट रिस्कः कैन वी ट्रस्ट आवर ईवीएम मशीन?' लिखी थी, जिसकी प्रस्तावना बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी. किताब में ईवीएम मशीन के खिलाफ कई सारे सवाल उठाए गए हैं.

हालांकि, सिर्फ बीजेपी ही नहीं कांग्रेस से लेकर आरजेडी, बीएसपी, टीएमसी ईवीएम की मशीन की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया है.

आइए आपको ईवीएम पर उठते ऐसे ही कुछ अहम सवालों से मिलवाते हैं.

क्या EVM और VVPAT मैन्यूपुलेट हो सकता है?

साल 2013 में Voter Verifiable Paper Trail यानी VVPAT मशीन को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2013 में चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया था. वीवीपैट ईवीएम मशीन के साथ प्रिंटर की तरह अटैच किया जाता है. ईवीएम में बटन दबाने के कुछ सेकेंड के बाद वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है. इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया है, उसका नाम और चुनाव चिन्ह होता है. पर्ची कुछ सेकेंड तक दिखती है फिर मशीन में लगे बॉक्स में चली जाती है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वोटर को ये पता चल सके कि उसने जिस उम्मीदवार को वोट दिया है वीवीपैट में भी वही बात दर्ज हुई है या नहीं.

लेकिन इसे लेकर भी सवाल उठ चुके हैं. दरअसल, वीवीपैट को लेकर साल 2019 में चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, फारूक अब्दुल्ला समेत 21 नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसके बाद एक विधानसभा से 1 की बजाय 5 ईवीएम के नतीजों को VVPAT की पर्चियों से मिलाने का निर्देश जारी हुआ था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अब एक नई याचिका दायर की गई है जिसमें हर विधानसभा से 5 की जगह 25 या उससे ज्यादा ईवीएम मशीनों के VVPAT से मिलान की अर्जी दी गई थी.

2. ईवीएम और वीवीपैट के वर्किंग पर भी सवाल

बता दें कि साल 2019 लोकसभा चुनाव के बाद भी ईवीएम के कामकाज पर सवाल उठे थे. दरअसल, वोटिंग के दौरान VVPAT, EVM के ठीक बगल में होती है, जिसमें बटन दबाकर आप वोट डालते हैं. ईवीएम दो यूनिट से जुड़ा होता है, एक बैलेट यूनिट और दूसरा कंट्रोल यूनिट. अब मान लीजिये कि EVM एक कम्प्यूटर है इसके बैलट यूनिट की-बोर्ड की तरह काम करते हैं और इसका कंट्रोल यूनिट कम्प्यूटर का हार्ड ड्राइव है. मान लीजिये कि VVPAT मशीन कम्प्यूटर से लगा प्रिंटर है. जब भी बैलट यूनिट में वोट दर्ज किया जाता है तो इसे EVM के कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में स्टोर हो जाना चाहिए. इसके बाद VVPAT मशीन से निकलने वाला प्रिंटआउट तय करता है कि वोटर ने EVM में जिस बटन को दबाया, वही वोट दर्ज हुआ है. ये जानकारी बैलट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में और फिर VVPAT मशीन में जानी चाहिए.

लेकिन साल 2019 में क्विंट ने पाया था कि EVM और VVPAT मशीन को जिस प्रकार जोड़ा गया है, उसमें ऐसा नहीं हो रहा है. मौजूदा प्रोसेस में बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच में VVPAT मशीन है. ऐसे में बैलट यूनिट सबसे पहले वोट को VVPAT मशीन में भेजता है, जहां से वोट का प्रिंटआउट निकलता है और फिर वो इंफॉर्मेशन इलेक्ट्रॉनिक तरीके से कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में दर्ज होती है.

अब आप पूछ सकते हैं कि इसमें गौर करने लायक क्या बात है? इसमें समझने वाली बात ये है कि जब VVPAT मशीन को चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया था तो EVM सिर्फ बैलट यूनिट का बटन दबाने से मिलने वाली इंफॉर्मेशन को दर्ज करता था. तब EVM को मालूम नहीं होता था कि ये बटन किस पार्टी का है लेकिन VVPAT के आने के बाद ये मुमकिन हो गया है. उसे बताना पड़ता है कि बैलट यूनिट का हर बटन किस पार्टी और किस उम्मीदवार का है. VVPAT मशीनों में पार्टी का चुनाव चिह्न और उम्मीदवारों के नाम लैपटॉप से दर्ज किये जाते हैं. ये काम चुनाव की तारीख से दो हफ्ते पहले BEL और ECIL जैसी EVM बनाने वाली कम्पनियों के इंजीनियर करते हैं.

अब, अगर कोई चुनाव के नतीजों को मैन्यूपुलेट करना चाहे तो वो बाहरी डिवाइस में मालवेयर डाल सकता है. इसका मतलब है कि लैपटॉप, VVPAT मशीनों में संवेदनशील जानकारियां डालते वक्त मालवेयर डाल सकता है. बता दें कि जब ये सवाल उठे थे तब हमने पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन से बात की, जो 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनाव अधिकारी थे, जिन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है. उन्होंने हमें विस्तार से बताया कि मालवेयर किस तरह EVM के वोटों को मैन्यूपुलेट कर सकता है

“सबसे बड़ी खामी VVPAT मशीनों की जगह है जो बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच में है. इस हालत में VVPAT एक बाहरी उपकरण के साथ जुड़ा हुआ है. मान लीजिए कि इसमें मालवेयर जा सकता है. आप बैलट यूनिट में जो बटन दबा रहे हैं, वो VVPAT में भी दिखता है. वोटर इसे देखकर खुश हो जाता है कि उसने जिस चुनाव चिह्न और उम्मीदवार के बटन को दबाया है. उसका वोट वहीं पड़ा है लेकिन उसे ये नहीं मालूम होता है कि VVPAT और कंट्रोल यूनिट के बीच क्या गुल खिल रहा है. मान लिया जाए कि मालवेयर में कंट्रोल यूनिट को कोई दूसरी जानकारी भेजने की क्षमता है, इस हालत में वोटर अगर नंबर 1 या नंबर 2 उम्मीदवार का बटन दबाता है फिर भी VVPAT इस मालवेयर के जरिये कंट्रोल यूनिट में कुछ और सूचना भेजता है. मान लिया जाए कि वोटर ने उम्मीदवार 1 का बटन दबाया है और VVPAT उम्मीदवार 1 का प्रिंटआउट निकालता है लेकिन कंट्रोल यूनिट में उम्मीदवार 2 की सूचना भेजता है. इस प्रकार से चतुराई के साथ मैन्यूपुलेट करना मुमकिन है. वोटर के पास ये जानने का कोई रास्ता नहीं है कि कंट्रोल यूनिट में क्या दर्ज हुआ है.”
कन्नन गोपीनाथ, पूर्व IAS अधिकारी

सीधे शब्दों में कहा जाए तो कन्नन गोपीनाथ के मुताबिक अगर VVPAT मशीन में कोई मालवेयर है तो VVPAT, EVM की कंट्रोल यूनिट में वही सूचना भेजेगा जो उसे मालवेयर बताएगा. इस सूचना का वोटर के बैलट यूनिट में दबाए गए बटन से कोई लेना-देना नहीं होगा.

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3. EVM की देखरेख में लगे प्राइवेट इंजीनियर

बता दें कि ईवीएम को भारत में दो कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने डिजायन किया है. लेकिन आरोप लगा कि EVM की देखरेख के लिए चुनाव आयोग को प्राइवेट इंजीनियर देने वाली कंपनी M/s T&M Services Consulting Private Limited....ECIL से मान्यता प्राप्त वेंडर नहीं है.

अगस्त, 2019 में क्विंट ने खुलासा किया था कि चुनाव आयोग के लिए EVM बनाने वाली कंपनी THE Electronics Corporation of India Limited यानी ECIL ने चुनावों के दौरान EVM और VVPAT की देखरेख के लिए मंबई की एक फर्म M/s T&M Services Consulting Private Limited से कन्सल्टिंग इंजीनियर लिए. हालांकि चुनाव आयोग ने बताया है कि ECIL ने किसी PRIVATE consultant engineer की सेवा नहीं ली.

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4. 2019 लोकसभा चुनाव में कई सीटों के वोट काउंट में अंतर पाए गए थे

ईवीएम से हुए चुनाव में वोटों की गिनती को लेकर भी सवाल उठे हैं. द क्विंट ने भी साल 2019 में अपनी पड़ताल में पाया था कि वोटों की गिनती के बाद कई सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए थे. हालांकि चुनाव आयोग का कहना था कि "ये सभी आंकड़े प्रोविजनल हैं, डेटा अनुमानित हैं और इसमें बदलाव हो सकते हैं." लेकिन चार महीने बाद भी ऐसा नहीं हो सका था.

दरअसल, चुनावों में कितने वोट पड़े और कितने गिने गए इसकी जानकारी चुनाव आयोग को अपनी वेबसाइट पर देनी होती है, आम तौर पर चुनाव परिणाम के अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग इलेक्शन डेटा की री-चेकिंग की कठिन प्रक्रिया पूरी करके ये सुनिश्चित कर लेता है कि अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं है, तब वो इलेक्शन के डेटा को अपनी वेबसाइट पर प्रमाणित घोषित करता है. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा नहीं हो सका था.

बता दें कि इलेक्शन कमीशन ने 1 जून, 2019 को एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया था कि हर लोकसभा क्षेत्र के लिए एक 'इंडेक्स कार्ड' होता है. जो 'फाइनल वोट ब्रेकअप' बताता है, ये इंडेक्स कार्ड चुनाव अधिकारी बनाते हैं चुनाव अधिकारियों की ओर से चुनाव आयोग को भेजने के बाद इंडेक्स कार्ड जमा कर दिए जाते हैं. फिर इनकी जांच होती है और फिर चुनाव के फाइनल प्रमाणित डेटा सार्वजनिक किए जाते हैं. लेकिन चार महीने बीतने के बाद भी चुनाव आयोग ने फाइनल डेटा जारी नहीं किया था.

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