उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के 75 जिलों में से एक बिजनौर (Bijnor) में 8 विधानसभा सीटें हैं. जहां यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कांटे की टक्कर देखने को मिली. बीजेपी (BJP) और समाजवादी पार्टी (SP) ने इस जिले में 4-4 सीटों पर कब्जा किया है. गंगा और मालन नदी के बीच बसे इस जिले की राजनीति काफी दिलचस्प रही है. एक वक्त में ये जिला बीएसपी (BSP) का गढ़ था. परिसीमन से पहले जब 2007 में जिले में 7 सीटें हुआ करती थीं तब मायावती की पार्टी ने क्लीन स्वीप किया था.
प्रदेश के साथ-साथ बिजनौर का भी वक्त बदल चुका है. इस बार बीएसपी के हाथ यहां एक भी सीट नहीं लगी जबकि इस जिले की दोनों लोकसभा सीटों पर बीएसपी का कब्जा है. बावजूद इसके बीजेपी और एसपी ने 4-4 सीटों पर जीत दर्ज की. इससे पहले कि हम इन नतीजों के कारण खोजें ये जान लेते हैं कि जिले की किस सीट पर कौन जीता है.
4 सीटों पर जीती एसपी
चांदपुर-
एसपी प्रत्याशी स्वामी ओमवेश इस सीट पर जीते हैं. उन्होंने बीजेपी कैंडिडेट कमलेश सैनी को 234 वोटों से हराया. है. बीएसपी के शकील अहमद और कांग्रेस के उदय त्यागी की यहां हार हुई है. 2017 के चुनाव में बीजेपी की कमलेश सैनी यहां से जीती थीं.
नगीना-
यहां से एसपी के मनोज कुमार जीते हैं. उन्होंने 26 हजार से ज्यादा वोटों से बीजेपी प्रत्याशी डॉक्टर यशंवत सिंह को हराया. कांग्रेस की हैनरीटा और बीएसपी के ब्रजपाल की शिकस्त हुई. 2017 के चुनाव में भी यहां से मनोज कुमार पारस ने ही जीत दर्ज की थी.
नजीबाबाद-
एसपी के तसलीम अहमद यहां से भारी वोटों से जीते हैं. उन्होंने 23 हजार 770 वोटों से बीजेपी के राजा भारतेंद्र सिंह को मात दी. बीएसपी के शहनवाज आलम और कांग्रेस के मोहम्मद सलीम की यहां हार हुई है. चुनाव 2017 में भी SP के तसलीम अहमद ही यहां से जीते थे.
नूरपुर-
एसपी के राम अवतार सिंह यहां 6065 वोटों से जीते हैं. उन्होंने बीजेपी के चंद्र प्रकाश को हराया. बीएसपी के जियाउद्दीन और कांग्रेस की बाला को भी नूरपुर में हार का मुंह देखना पड़ा.
इन 4 सीटों पर बीजेपी की जीत
बढ़ापुर-
बीजेपी के कुंवर सुशांत सिंह जीते हैं. उन्होंने 14,345 वोटों से एसपी के कपिल कुमार को हराया है. बीएसपी के मोहम्मद गाजी और कांग्रेस के एहसान अली की भी हार हुई. यहां से 2017 के चुनाव में भी बीजेपी के सुशांत कुमार जीते थे.
बिजनौर-
यहां से बीजेपी की सुचि जीती हैं. उन्होंने 1445 वोटों से आरएलडी के नीरज चौधरी को हरा दिया है. बीएसपी की रुचि वीरा की भी हार हुई. यहां से 2017 के चुनाव में भी बीजेपी की सुचि जीती थीं.
धामपुर-
इस सीट पर बीजेपी के अशोक कुमार राणा जीते हैं. एसपी के नईम उल हसन को उन्होंने 203 वोटों से हराया. बीएसपी के ठाकुर मूलचंद चौहान और कांग्रेस के हुसैन अहमद की हार हुई है. 2017 में बीजेपी के टिकट पर अशोक कुमार राणा ही यहां से जीते थे.
नहटौर-
यहां से बीजेपी के ओमकुमार जीते हैं. उन्होंने महज 258 वोटों के अंतर से आरएलडी प्रत्याशी मुंशीराम को हराया. बीएसपी की प्रिया सिंह और कांग्रेस की मिनाक्षी की करारी शिकस्त हुई है. बीजेपी के ओमकुमार ने 2017 के चुनाव में भी यहां से जीत दर्ज की थी.
किसान आंदोलन का असर
बिजनौर कृषि प्रधान जिला है और यहां गन्ने की खेती बड़ी संख्या में किसान करते हैं. बिजनौर में मुस्लिम और जाट किसानों की बड़ी संख्या है. किसान आंदोलन के वक्त ये जिला काफी सक्रिय रहा और यहां से लगातार किसान गाजीपुर बॉर्डर पर धरने में हिस्सा लेते रहे. जिसका असर चुनाव परिणामों में भी दिखा बीजेपी ने 2017 में इस जाट-मुस्लिम दबदबे वाले जिले में 8 में से 6 सीटें जीती थीं. और इस बार बीजेपी को इनमें से 2 सीटें गंवानी पड़ी.
बिजनौर जिले में 9 शुगर मिल हैं जिनमें से धामपुर शुगर मिल को एशिया की सबसे बड़ी मिल माना जाता है.
CAA-NRC प्रदर्शन ने भी बदले समीकरण
बिजनौर में दलितों के बाद सबसे बड़ी संख्या मुसलमानों की है और उसके बाद जाट-चौहानों की संख्या भी अच्छी खासी है. मायावती यहां मुस्लिम-दलित समीकरण साधकर ही 2012 में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही थीं. बिजनौर में 45 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और 55 प्रतिशत हिंदू. लेकिन इनमें से 22 फीसदी दलित आबादी है.
किसान आंदोलन के अलावा 2019 में हुए सीएए-एनआरसी आंदोलन का असर भी इस चुनाव में देखने को मिला. इस आंदोलन के दौरान यहां हिंसा हुई और पुलिस ने बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक नौजवानों को गिरफ्तार किया और कई पर रासुका लगा दी. इस दौरान दो युवाओं की पुलिस फायरिंग में मौत भी हो गई. जिस पर काफी बवाल हुआ और खूब सियासत भी हुई.
बिजनौर के लिए खून-खराबा नई बात नहीं
बिजनौर कई बार हिंसा झेल चुका है. 2016 में एक लड़की से छेड़छाड़ को लेकर काफी सांप्रदायिक बवाल हुआ, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय से तीन लोगों की मौत हुई. इसके बाद शहर में कर्फ्यू सा लग गया. इस केस में एश्वर्य मौसम चौधरी गिरफ्तार किया था. कुछ वक्त बाद जब 2017 में चुनाव हुए तो बीजेपी ने मौसम की पत्नी शुचिशुचि को टिकट दिया और वो विधायक बन गईं. करीब 18 महीने जेल में रहने के बाद मौसम चौधरी बाहर आ गए और उनके कुछ केस भी वापस ले लिए गए.
कुल मिलाकर यहां एसपी को आरएलडी से गठबंधन से फायदा हुआ और मुस्लिमों के एकमुश्त वोट और जाटों के साथ ने एसपी को लाभ पहुंचाया और उसने बीजेपी से 2 सीटें छीन लीं.
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