तीन चरणों के चुनाव हो चुके हैं. और हर चरण में एक ही कहानी दिखी- इस बार उतनी वोटिंग नहीं हो रही जितनी 2014 के चुनाव में हुई थी. तीनों चरणों को मिला दें, तो बड़ी हेडलाइंस कुछ इस तरह से हैं-
ADVERTISEMENTREMOVE AD
- गुजरात में वोटर टर्नआउट उतना नहीं हुआ जितना 2014 के आम चुनाव में हुआ था. क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि मोदी लहर में कमी हो रही है या फिर एफिशिएंट बीजेपी मशीनरी ने अपने मतदाताओं को बूथ पर पहुंचा दिया लेकिन बाकी पार्टियां चूक गईं?
- महाराष्ट्र दूसरा ऐसा राज्य है जहां जोश काफी कम दिखा. शुरुआती आंकड़े के हिसाब से तीसरे चरण में वहां वोटरों का ठंडा रिस्पॉन्स ही रहा. क्या ये माना जाए कि एफिशिएंट बीजेपी मशीनरी यहां भी करामत करने से चूक गई?
- यूपी का हाल मिस्ट्री जैसा ही है. यहां पहले दो चरणों में 16 में से 10 सीटों में टर्नआउट में कमी आई. इससे किसी लहर का संकेत तो कतई नहीं मिलता है.
- आंध्र प्रदेश में लोगों ने भर-भर कर वोट किए. वहां टर्नआउट पिछली बार की तुलना में करीब 9 परसेंटेज प्वाइंट बढ़ी है. ये चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी के लिए खतरे की घंटी है? माना जाता है कि काफी ज्यादा टर्नआउट मतलब रूलिंग पार्टी के लिए खतरे की घंटी.
- इसके उलट ओडिशा में वोटर टर्नआउट काफी कम रहा है. माना जाए कि नवीन पटनायक की गद्दी सेफ है? बीजेपी इस राज्य में काफी मंसूबे बनाए बैठी है. वोटर टर्नआउट से संकेत मिल रहा है कि वो मंसूबे शायद पूरे ना हों.
- इसी तरह पश्चिम बंगाल में वोटर टर्नआउट में कोई बदलाव नहीं है, मतलब वहां भी यथास्थिति?
माना जाता है कि ज्यादा टर्नआउट मतलब सत्तापक्ष के लिए खतरे की घंटी. फिर कम टर्नआउट से कैसे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि मोदी लहर में कमी आ रही है. इसको समझने के लिए 2014 और उसके बाद के नतीजों को समझना पड़ेगा.
उसकी बड़ी बातें कुछ इस तरह से हैं-
- 2014 में बीजेपी के वोट शेयर में 8 परसेंटेज प्वाइंट की ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई थी और इतनी ही उस चुनाव में टर्नआउट में बढ़ोतरी हुई थी. इससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि नए वोटरों पर मोदी लहर छाया हुआ था. अब चूंकि टर्नआउट कम हो रहा है, इसके दो ही मतलब निकालाे जा सकता हैं—या तो बीजेपी 2014 के वोट शेयर के स्तर पर रहेगी या फिर वो अपने ऐतिहासिक औसत की तरफ वापस आएगी. दोनों ही बीजेपी के लिए अच्छी खबर तो बिल्कुल नहीं है.
- 2014 में जिन राज्यों में बीजेपी की लहर चली थी और जहां पार्टी ने 90 परसेंट से ज्यादा सीटें जीती थीं. उन सारे राज्यों में वोटर टर्नआउट में 10 परसेंटेज प्वाइंट या उससे ज्यादा की बढ़ोतरी हुई थी. जिन राज्यों में बीजेपी का जादू नहीं चला वहां वोटरों का जोश ठंडा ही रहा था. इस बार ठंडे जोश का क्या मतलब निकाला जाए.
ध्यान रहे कि 2018 में यूपी और बिहार में लोकसभा के तीन उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी. इसमें गोरखपुर, फूलपुर और अररिया शामिल है. इन तीनों सीटों पर वोटिंग कम हुई थी. तब कहा गया कि बीजेपी के वोटरों नें कम मतदान किया जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ. तो क्या इस लोकसभा चुनाव में मतदान में कमी को उसी रूप में देखा जा सकता है?
2004 के चुनाव में भी 1999 की तुलना में कम वोटिंग हुई थी. इसका बीजेपी को नुकसान हुआ था. इस बार की कम वोटिंग एक्शन रिप्ले है क्या? सही जवाब के लिए 1 महीना इंतजार करना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)