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उत्तर प्रदेश में क्यों खिसकी SP की जमीन? ये हैं बड़ी वजह

पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले एसपी का वोट शेयर काफी घटा है 

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लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (एसपी) को महज पांच सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव में भी उसे पांच सीटें ही मिली थीं, मगर तब वह अकेले चुनाव लड़ी थी. जबकि इस बार एसपी का दो पार्टियों- बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के साथ गठबंधन था.

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गठबंधन होने के बावजूद सैफई परिवार के तीन सदस्य (डिंपल यादव, अक्षय यादव और धर्मेंद्र यादव) चुनाव हार गए. मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर 2014 के मुकाबले केवल एक-चौथाई रह गया. यूपी में एसपी का वोट शेयर पिछले लोकसभा चुनाव के 22.35 फीसदी से घटकर इस बार 17.96 फीसदी पर पहुंच गया.

सवाल इस बात का है कि बीएसपी इस चुनाव में जीरो से 10 सीटों पर पहुंच गई, मगर एसपी को गठबंधन का वो फायदा क्यों नहीं मिला, जो बीएसपी को मिला. 

इस सवाल के दो जवाब हैं. पहला जवाब है- एसपी की पारिवारिक कलह. शिवपाल यादव अगर अलग से चुनाव ना लड़ते तो शायद सैफई परिवार के सदस्यों की हार ना होती. यहां कहा जा सकता है कि अखिलेश ने बीएसपी, आरएलडी से तो गठबंधन तो लिया, लेकिन परिवार के सदस्य को वह जोड़ कर नहीं रख पाए.

दूसरा जवाब यह है कि सीट बंटवारे में मायावती ने वो सारी सीटें ले लीं, जहां जातीय गणित के लिहाज से जीत का भरोसा था. एसपी को ऐसी कई सारी सीटें दे दी गईं, जहां एसपी-बीएसपी का संयुक्त वोट किसी उम्मीदवार को जिताने लायक नहीं था. वाराणसी, लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद ऐसी ही सीटें थीं. इन सीटों पर पहले ही माना जा रहा था कि गठबंधन का प्रत्याशी नहीं जीत पाएगा.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजेन्द्र सिंह ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया “गठबंधन के सीट बंटवारे में मायावती ने मन मुताबिक सीटें ले लीं. वोटों के आदान-प्रदान के लहजे से देखें तो जिन 10 सीटों पर बीएसपी ने जीत दर्ज की है, वहां एसपी 2014 में दूसरे नंबर पर थी. नगीना, बिजनौर, श्रावस्ती, गाजीपुर सीटों पर एसपी के पक्ष में समीकरण थे. दूसरा कारण गठबंधन की केमिस्ट्री जमीन तक नहीं पहुंची. सभाओं में भीड़ देखकर इन्हें लगा कि हमारे वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.”

सिंह ने कहा, "शिवपाल का असर यादव बेल्ट में खासा पड़ा. मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद जैसे गढ़ से एसपी को नुकसान उठाना पड़ा. शिवपाल की एसपी कार्यकर्ताओं के बीच अच्छी पैठ है. इसका खमियाजा एसपी को इस चुनाव में उठाना पड़ा."

गौरतलब है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाकर शिवपाल फिरोजाबाद सीट पर अपने भतीजे अक्षय यादव के सामने चुनावी मैदान में उतरे थे. इस सीट पर अक्षय अपने बीजेपी प्रतिद्वंद्वी से 28,781 वोटों से हार गए. यहां शिवपाल को 91,651 वोट हासिल हुए. शिवपाल अलग से चुनाव ना लड़ते तो शायद अक्षय चुनाव जीत जाते. इसके अलावा दूसरी कई सीटों पर भी शिवपाल की पार्टी ने एसपी के ही वोट काटे. शिवपाल की विधानसभा सीट जसवंतनगर क्षेत्र से भी एसपी को नुकसान हुआ है.

मायावती को मालूम था कि मुस्लिम वोटरों पर मुलायम की वजह से एसपी की अच्छी पकड़ है. उन्होंने इसका फायदा भी उठाया और ऐसी सीटें अपने खाते में ले लीं, जहां के समीकरण साफ जीत दिखा रहे थे.

कई सीटें ऐसी हैं, जहां बीएसपी उम्मीदवार बहुत मामूली अंतर से हारे हैं. इनमें मेरठ और मछली शहर शामिल हैं. राजेन्द्र सिंह के मुताबिक, "चुनाव में एसपी-बीएसपी के नेताओं ने तो गठबंधन कर लिया था, लेकिन यह जिला और ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं को नहीं भाया. आधी सीटें दूसरे दल को देने से उस क्षेत्र विशेष में उस दल के जिला या ब्लॉक स्तरीय नेताओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था."

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