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दो सीटों से लड़ रहे हैं राहुल,जीत के बाद अमेठी छोड़ेंगे या वायनाड

वायनाड से लड़ कर क्या दक्षिण को अपनी राजनीति का केंद्र बनाएंगे राहुल गांधी 

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राहुल गांधी इस बार दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. यूपी में अमेठी उनकी अपनी सीट है लेकिन इस बार वह केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ेंगे. गुरुवार को वह यहां से पर्चा दाखिल करने के बाद पूरी तरह चुनावी जंग में उतर जाएंगे. राहुल के वायनाड सीट से चुनाव लड़ने को लेकर तो चर्चा है ही उससे भी दिलचस्प सवाल यह उठाया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष अगर दोनों सीटों से चुनाव जीत गए तो कौन सी छोड़ेंगे?

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अमेठी में राहुल के खिलाफ चुनाव लड़ कर हार चुकी स्मृति ईरानी मैदान में होंगी. वहीं वायनाड में उनके खिलाफ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के घटक सीपीआई केपीपी सुनीर होंगे. बीजेपी ने ये सीट बीडीजेएस को दी दी है.

राहुल का वायनाड से लड़ना लेफ्ट को नागवार क्यों गुजरा

लेफ्ट को राहुल का वायनाड से चुनाव लड़ना नागवार गुजरा है. लेफ्ट ने राहुल गांधी की उम्मीदवारी के एलान पर कहा कि हम उन्हें वायनाड से हराएंगे.सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात ने कहा, ''वायनाड से राहुल गांधी को मैदान में उतारने का कांग्रेस का फैसला अब केरल में वामपंथ के खिलाफ लड़ने की उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है. यह बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के खिलाफ है.’

लेफ्ट के खिलाफ राहुल गांधी जैसा उम्मीदवार लेने का मतलब है कि कांग्रेस केरल में लेफ्ट को निशाना बनाने जा रही है. करात ने कहा कि यह ऐसी चीज है जिसका हम पुरजोर विरोध करेंगे और इस चुनाव में हम वायनाड में राहुल गांधी की हार पक्की करने के लिए काम करेंगे.

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कांग्रेस के लिए बचकाना सवाल लेकिन लोगों की दिलचस्पी बरकरार

जब अमेठी में राहुल से 2014 के चुनाव में में हार चुकी स्मृति ईरानी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष यहां से डर कर भाग रहे हैं तो कांग्रेस प्रवक्ता सुरेजवाला का सवाल था यह पूछना कि राहुल जीते तो कौन सी सीट छोड़ेंगे बचकाना है. स्मृति ईरानी के हमले को लेकर पूछे गए सवाल पर सुरजेवाला ने कहा, ''मोदी जी गुजरात छोड़कर वाराणसी से चुनाव क्यों लड़े? क्या वो गुजरात को लेकर आश्वस्त नहीं थे? ये बहुत अपरिपक्व और बचकानी बातें हैं. लेकिन सुरजेवाला के इस बयान के बाद भी जीतने के बाद राहुल का कोई एक सीट छोड़ने के सवाल पर दिलचस्पी बनी हुआ है.

दरअसल दक्षिण के पांच राज्यों, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना और पुडुचेरी को मिलाकर लोकसभा की 130 सीटें हैं और कांग्रेस यहां अपने हालात मजबूत करना चाहती है. दक्षिण से किसी पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का संदेश यही जाएगा कि देश का यह हिस्सा उसकी रणनीति के केंद्र में हैं.
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वायनाड सीट क्यों रखना चाहेंगे राहुल ?

मौजूदा हालात में अगर राहुल गांधी वायनाड और अमेठी सीट दोनों से जीतते हैं तो शायद वह वायनाड सीट रखना चाहेंगे. हालांकि इससे पहले इंदिरा गांधी रायबरेली में चुनाव हारने के बाद मेडक (अब तेलंगाना मेें) सीट से लड़ कर जीत चुकी थीं. सोनिया गांधी अमेठी समेत कर्नाटक की ही बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ी थीं और जीत हासिल की थी. हालांकि दोनों ही बाद में दक्षिण को अपनी राजनीति का केंद्र नहीं बना सकीं. लेकिन क्या राहुल गांधी दक्षिण को अपनी आगे की राजनीति का केंद्र बनाएंगे. ऐसा हो सकता है क्योंकि यहां बीजेपी कर्नाटक को छोड़ कर कहीं मजबूत नहीं है. कांग्रेस यहां खुद को मजबूत बनाना चाहेगी.

तमिलनाडु में डीएमके और अन्नाद्रमुक की लड़ाई और आंध्र, केरल और तेलंगाना में सत्ताधारी पार्टियों के खिलाफ असंतोष कांग्रेस को दक्षिण फायदा पहुंचा सकता है. राहुल की फौरी रणनीति ये है कि उनके वायनाड से चुनाव लड़ना दक्षिण में कांग्रेस के कमजोर हो चुके संगठन को चाक-चौबंद करेगा और इसका उन्हें आगे फायदा मिल सकता है. कुछ सीटें भी आ सकती हैं.

प्रियंका संभालेंगी उत्तर और राहुल दक्षिण?

एक थ्योरी ये ही भी प्रियंका गांधी अब यूपी में कांग्रेस के रिवाइवल का काम देखेंगी. और राहुल दक्षिण के राज्यों पर ध्यान देंगे. इस लिहाज से राहुल के वायनाड सीट को बरकरार रखने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि राहुल अमेठी को किसी और हवाले छोड़ेंगे.

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दो सीटें जीत कर एक सीट रखने वाले नेता

इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी, लालकृष्ण आडवाणी और मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गज दो सीटें से चुनाव लड़ने के बाद एक सीट छोड़ चुके हैं. एक नजर इनकी सीटों पर-

  • इंदिरा गांधी - रायबरेली और मेडक ( 1980) - रायबरेली सीट रखी
  • अटल बिहारी वाजपेयी - विदिशा और लखनऊ (1991) - लखनऊ सीट रखी
  • लालकृष्ण आडवाणी - नई दिल्ली, गांधीनगर (1991) गांधीनगर सीट रखी
  • नरेंद्र मोदी - वाराणसी, वडोदरा ( 2014) -वाराणसी सीट रखी
  • सोनिया गांधी- बेल्लारी और अमेठी (1999)- अमेठी सीट रखी
  • मुलायम सिंह यादव - आजमगढ़ और मैनपुरी (2014) -मैनपुर सीट रखी
  • लालू प्रसाद यादव - सारण और पाटलिपुत्र (2009)- सारण सीट रखी

अटल बिहारी वाजपेयी ने तो अपना पहला ही चुनाव 1952 में उत्तर प्रदेश की दो सीटों मथुरा और लखनऊ से लड़ा था. दोनों सीटों पर उनकी जमानत जब्त हो गई थी. 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी मथुरा, बलरामपुर और लखनऊ से एक साथ तीन सीटों पर चुनाव लड़े थे. बलरामपुर से वह जीते थे, लखनऊ में वह दूसरे नंबर पर आए थे और मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई थी.

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