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सिनेमा में लड़कियों पर दबाव,हीरो ही होते हैं असली नायक: जूही चावला

Juhi Chawla को लगता है अब भी नायक-प्रधान हैं भारतीय फिल्में

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बॉलीवुड की सदाबहार अदाकारा जूही चावला का मानना है कि आज लड़कियों पर काफी दवाब है और वह यह देखकर हैरान हैं कि लड़कियों का छोटे कपड़े पहनना और 'जीरो साइज' दिखना 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' हैं.

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फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ी है महिलाओं की भागीदारी

एपिक चैनल के टीवी शो 'शरणम' की टीम में नैरेटर के रूप में शामिल हुईं जूही इस बात को नहीं समझती कि महिलाओं पर समानता साबित करने के लिए दवाब क्यों है. जूही ने एक इंटरव्यू में कहा, "मुझे यकीन नहीं है कि अभी दुनिया में लिंग और समानता पर बहस क्यों है. कुछ चीजें बेहतर हुई हैं और कुछ चीजें बदल गई हैं. मुझे यकीन नहीं है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जैसे, 15 साल  पहले एक फिल्म के सेट पर 100 लोगों के साथ एक या दो महिलाएं होती थीं.आज, एक फिल्म यूनिट में 35 महिलाएं और 65 पुरुष होंगे, जो बेहतरीन है."

जूही चावला का कहना कि उन्हें यह नहीं पता कि महिलाओं को ही क्यों समानता साबित करनी होती है. उन्हें लगता है कि महिलायें कहीं बेहतर हैं, यानी कि महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं और अन्य आधों को बनाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है, इसलिए वे ही खुद को साबित क्यों करें?

अभिनेत्रियों पर दवाब बढ़ रहा है

जूही का मानना है कि गुजरते वक्त के साथ एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए भले ही काफी बदलाव आया है, और आजकल महिलाओं के लिए बाहर जाने और काम करने की आजादी है, लेकिन कुछ चीजें पहले जैसी हैं, जैसे कि फिल्में अब भी नायक केंद्रित ही हैं, और भारत में बनने वाली ज्यादातर फिल्मों में हीरो ही नायक हैं.

मुझे लगता है कि पर्दे पर लड़कियों के लिए ज्यादा दवाब है, उन्हें छोटे कपड़े पहनने, जीरो-साइज दिखने, लिव-इन रिलेशनशिप के साथ सहज और शांत दिखना होता है. महिलाओं पर दवाब क्यों है? क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? यह सही है ना?”
जूही चावला  

अपने काम के बारे में जूही का कहना है कि, "जब तक मैं कर सकती हूं, तब तक अभिनय करुंगी- चाहे बड़ा पर्दा हो या टेलीविजन, मैं इसे जारी रखूंगी. लेकिन पहले की तुलना में फिलहाल थोड़ा कम हो सकता है।"

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