'लार्जर देन लाइफ' फिल्मों के लिए मशहूर बॉलीवुड में एक समय ऐसा भी रहा है, जब फिल्मों ने आम आदमी की समस्याओं को बड़े पर्दे पर उकेरा. रोजी-रोटी से लेकर पारिवारिक परेशानियों को इन फिल्मों ने बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया है. इस मजदूर दिवस, एक नजर मजदूरों पर बनी इन फिल्मों पर, जिन्होंने हमें ऐसे शानदार किरदार दिए.
नमक हराम (1973)
एक आम आदमी की समस्या को बड़े पर्दे पर दिखाने की कला ऋषिकेश मुखर्जी को बखूबी आती थी. मुखर्जी ने मिडिल क्लास की समस्याओं को दिखाया, जो आगे चलकर हिंदी फिल्मों का एक जॉनर बन गया. नमक हराम दो दोस्तों की कहानी है, विकी (अमिताभ बच्चन) और सोमू (राजेश खन्ना). विकी जहां अमीर परिवार से आता है, वहीं सोमू के पास उतनी धन-दौलत नहीं है. इस अंतर के बावजूद दोनों की दोस्ती अच्छी चल रही होती है.
विकी की उसके फैक्ट्री के यूनियन लीडर से बहस हो जाती है और वो सोमू की मदद लेकर उससे बदला लेना चाहता है. सोमू उसकी फैक्ट्री में बतौर मजदूर काम करने लग जाता है और सभी मजदूरों का विश्वास जीतकर उनका यूनियन लीडर बन जाता है.
इस सफर में वो मजदूरों के दुख को समझता है और उनके आदर्शों पर यकीन करने लग जाता है. इससे विकी के साथ उसकी दोस्ती में दरार आ जाती है.
फिल्म उस समय बनाई गई थी जब मुंबई में टेक्सटाइल मिल्स फलफूल रही थीं.
मजदूर (1983)
इस फिल्म में नजीर हुसैन ने मिस्टर सिन्हा का किरदार निभाया था. सिन्हा एक मिल मालिक होते हैं, जो हमेशा अपनी प्रॉफिट को अपनी कर्मचारियों के बीच बांटते हैं. जब मिस्टर सिन्हा का देहांत हो जाता है तो उनका बेटा मिल की जिम्मेदारी संभालता है. इसके बाद मिस्टर सिन्हा का बेटा सब कुछ बदल देता है, जिससे उसकी कमाई बढ़ सके. ऐसे में मिल का एक वर्कर (दिलीप कुमार) बगावत कर देता है और अपना मिल शुरू कर देता है. उसका एक इंजीनियर दोस्त एक कंपनी खड़ी करने में उसकी मदद करता है. देखते ही देखते ये दोनों कारोबार को सफलता की नई सीढ़ियों तक पहुंचा देते हैं.
काला पत्थर (1979)
ये फिल्म यश चोपड़ा की सबसे अंडररेटेड फिल्म है. फिल्म चासनाला खदान दुर्घटना पर आधारित है, जहां विजय (अमिताभ बच्चन), एक पूर्व मर्चेंट नेवी अफसर, कोयला खदान में काम करता है. फिल्म में कई डायलॉग ऐसे हैं, जो मजदूरों की पीड़ा को दिखाते हैं. जैसे एक डायलॉग में विजय कहता है, 'दर्द मेरी किस्मत बन चुका है डॉक्टर.' ये फिल्म कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के दर्द को दिखाती है.
दीवार (1973)
हम सभी को दीवार शशि कपूर के शानदार डायलॉग- 'मेरे पास मां है' के लिए याद है, लेकिन फिल्म में इसके अलावा भी बहुत कुछ था. एंग्री यंग मैन विजय (अमिताभ बच्चन) अपने पिता की तरह ही ठग बन जाता है, वहीं उसका भाई रवि (शशि कपूर) एक साफ छवि वाला पुलिस अफसर बनता है. एक-दूसरे से अलग दोनों की दुनिया कैसे उनके रिश्ते में दूरियां लाती है, फिल्म में इसे अच्छे से दिखाया गया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)