वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
मेंस्ट्रुएशन की तकलीफों से जूझती महिलाओं की कहानी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘पीरियड् एंड ऑफ सेंटेंस’ उस समय पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई, जब इसे ऑस्कर ऑवार्ड से नवाजा गया. इस डाक्यूमेंट्री ने समाज के सामने महिलाओं से जुड़ा महावारी जैसा गंभीर मुद्दा रखा जिस पर लोग बात करने से भी हिचकिचाते हैें, लेकिन इस फिल्म में दिखने वालीं स्नेहा और सुमन के लिए ये फेम मुसीबत बन गया है और इन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, फैक्टरी और गांव को पहचान दिलाने वाली ये लड़कियां अब आर्थिक तंगी से गुजर रहीं है. स्नेहा और सुमन दोनों 'फ्लाई' फैक्ट्री में काम करती थी, जहां महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड बनाए जाते हैं. अब फैक्ट्री का मालिक स्नेहा और सुमन से उन पेसौं की मांग कर रहा है, जो उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने बतौर आर्थिक मदद दिए थे.
दरअसल, इस डॉक्यूमेंट्री को उत्तर प्रदेश के काठीखेड़ा की सैनेटरी पैड बनाने वाली फैक्टरी में फिल्माया गया था, जहां ये दोनों लड़कियां काम करती थी. और इस डाक्यूमेंट्री में काम करने के लिए दोनों लड़कियों को अखिलेश यादव ने 1 लाख रुपये और राम नाईक ने 50,000 रुपये की आर्थिक मदद दी थी. फैक्टरी मालिक का कहना है कि क्योंकि ये डॉक्यूमेंट्री कंपनी की सुविधाओं को दिखाती है, तो वो पैसे उसके हुए.
‘मेरे पति एक एटीएम में गार्ड का काम करते हैं. हमारे परिवार का गुजारा इस सैलरी में मुश्किल है. मुझे तीन महीनों से सैलरी नहीं मिली थी. जब मैंने इसके लिए पूछा तो उन्होंने मना कर दिया. पूछने पर बताया गया कि 1 लाख रुपये मुझे पहले ही दे दिए गए हैं और अब मुझे पैसों की जरूरत नहीं. बाद में उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया.’फैक्टरी के मालिकों के बरताव पर सुमन ने बताया
वहीं स्नेहा बताती हैं कि वो पुलिस की नौकरी करना चाहती है. इसके लिए वो कोचिंग भी लेती थीं, लेकिन सैलरी नहीं मिलने के कारण उन्होंने कोचिंग छोड़ दी है. स्नेहा के पास कोचिंग की फीस जमा करने के भी पैसे नहीं थे.
दूसरी ओर, अधिकारियों का इस बारे में कुछ और ही कहना है. एक्शन इंडिया हापुड़ के प्रोजेक्ट मैनेजर, देवेंद्र कुमार ने स्नेहा और सुमन के आरोपों को गलत बताया है. उनका कहना है, ‘ऑस्कर अवॉर्ड से लौटने के बाद से दोनों ने काम पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया है और दो महीनों तक उन्होंने सिर्फ अपनी जीत का जश्न मनाया.’
यह भी पढ़ें: मेंस्ट्रुएशन एक ऐसा गंभीर मुद्दा, जिससे सभ्य समाज भी कतराता है
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)