ADVERTISEMENTREMOVE AD

हिंदी मीडियम: अंग्रेजी का लोचा समझने का इससे अच्छा मीडियम नहीं

‘हिंदी मीडियम’ ने अंग्रेजी भाषा को लेकर हमारी सनक और शिक्षा के जरिए चल रहे धंधे पर कई वाजिब सवाल उठाए हैं  

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

एक समय था जब अमिताभ बच्चन ने हमें बताया था कि “ इंग्लिश इज अ वेरी फनी लैंग्वेज” यानि अंग्रेजी एक बहुत ही फनी भाषा है. ‘हिंदी मीडियम’ अमिताभ बच्चन की उस बात को एक कदम आगे लेकर जाती है और बताती है कि ये सिर्फ भाषा की बात नहीं बल्कि आम लोगों का अंग्रेजी के प्रति जो रवैया है वो इसे फनी और बेहूदा दोनों बनाता है.

राज, चांदनी चौक का एक दुकानदार अपनी जिंदगी में खुश है. वो एक अच्छा पिता है, लविंग हस्बैंड है और टॉप-डिजाइनर लहंगों की फर्स्ट कॉपी बेचते हुए खुद को एक बिजनेसमैन कहता है.

सिर्फ एक चीज जो उसकी जिंदगी में नहीं है वो है इंग्लिश भाषा. वो भाषा जो उसे हाई सोसायटी में एंट्री दिलवाने में एक वीजा का काम करेगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जैसा कि उसकी पत्नी मीता खुद कहती है, “ इस देश में अंग्रेजी जबान नहीं है, क्लास है”...और राज अपनी बीवी की खुशी और बेटी के अच्छे भविष्य के लिए “talk engliss, walk engliss and laugh Engliss” करने को हमेशा तैयार रहता है.

मीता रोज परेशान रहती है कि अगर उसकी बेटी का अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में एडमिशन नहीं हुआ तो उसका भविष्य खराब हो जाएगा.

‘हिंदी मीडियम’ ने अंग्रेजी भाषा को लेकर हमारी सनक और शिक्षा के जरिए चल रहे धंधे पर कई वाजिब सवाल उठाए हैं

प्यार के साइड इफैक्ट्स और शादी के साइड इफैक्ट्स जैसी मजेदार फिल्में बना चुके डायरेक्टर साकेत चौधरी ने इंग्लिश-हिंदी भाषा के जरिए लोगों में आ रही दूरियों के साइड इफेक्ट बताने की कोशिश की है.

आखिर क्यों हम गलत हिंदी बोलने पर कुछ नहीं बोलते लेकिन कोई अगर गलत इंग्लिश बोल दे उसका मजाक उड़ाते हैं? फिल्म के अंदर कुछ बहुत अच्छे सीन हैं जो कड़वे सच को बाहर लेकर आता है. पाकिस्तानी एक्ट्रेस सबा कमर जो फिल्म में इरफान खान की पत्नी बनी हैं, उन्होंने बहुत अच्छा रोल निभाया है.

दीपक डोबरियाल ने भी फिल्म में कमाल का काम किया है. फिल्म में उनकी एंट्री बिल्कुल सही वक्त पर होती है और वो फिल्म का ग्राफ एकदम ऊपर ले जाते हैं.

फिल्म में एक चीज जो थोड़ी अजीब दिखाई गयी वो ये कि हर एक अमीर आदमी खराब होता है और हर कोई गरीब बड़ा ही दयालु होता है. जैसे प्रिंसिपल और एडमिशन कंसलटेंट के रोल वास्तविकता से कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर खराब दिखाए गए.

‘हिंदी मीडियम’ कई जरूरी मुद्दों को छूने वाली फिल्म है लेकिन फिर भी ये वैसा असर नहीं डाल पाती जैसी इससे आशा है. लेकिन फिर भी फिल्म देखने लायक है

*5 में से 3 क्विंट*

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×