आज शाम मुंबई में हवा काफी तेज चल रही है, पर कटरीना के कमरे का तापमान काफी आरामदायक है. वो मेरे इंतजार में ही थीं, तो मुझे देखकर मुस्कुरा दीं. थोड़ा हंसी-मजाक, टीम को थोड़े निर्देश और मोबाइल पर थोड़े मैसेज देखने के बाद कटरीना मेरे सवालों के लिए तैयार हैं.
सवाल: ‘फितूर’ के प्रमोशंस ने आपको काफी थका दिया होगा, अब सुकून है कि आखिर फिल्म रिलीज हो गई?
कटरीना कैफ: हर साल सभी अभिनेताओं को ये सब करना होता है. प्रमोशन के वक्त तो मेहनत और बढ़ जाती है. क्योंकि कम्युनिकेशन के माध्यम बहुत बढ़ गए हैं. मुझे बताया गया कि पुराने दिनों में सितारों को इतनी मेहनत नहीं करनी होती थी. तकनीक के अपने नुकसान होते हैं, और मैं शिकायत नहीं कर रही हूं. जो होना चाहिए, वो होना ही चाहिए.
सवाल: आपके फिल्म निर्माता आपको प्रोफेशनल कहते हैं और आपके साथी कलाकार आपको बहुत मेहनती बताते हैं. ऐसा है क्या?
कटरीना कैफ: मैं खुश हूं कि उन्होंने मेरी ईमानदारी पर ध्यान दिया और इसकी तारीफ की. मेरे प्रोड्यूसर्स का कहना है कि मैं लकी हूं, क्योंकि मेरी बॉक्स ऑफिस हिट फिल्मों का एवरेज ज्यादा है. पर सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं, आपको अपना बेस्ट देना ही पड़ेगा.
सवाल: मीडिया का कहना है कि आप हमेशा एक ही जैसी फिल्में करती हैं, आप क्या कहती हैं?
कटरीना कैफ: मैं नहीं मानती. मुझे कभी समझ नहीं आया कि वे ऐसा क्यों कहते हैं. मैं मेनस्ट्रीम सिनेमा में काम करती हूं? क्या मेनस्ट्रीम सिनेमा की सारी फिल्में एक जैसी होती हैं? मुझे नहीं लगता.
‘पार्टनर’ या ‘राजनीति’ में कुछ भी एक जैसा नहीं है, इसी तरह ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ और ‘फैंटम’ भी बिल्कुल अलग हैं. ये सब अलग-अलग जॉनर की फिल्में हैं और मेरी किस्मत अच्छी है कि मैंने अपने करियर में कई निर्देशकों के साथ काम किया है.
सवाल: करियर की शुरुआत में डेविड धवन के साथ काम करने का अनुभव कैसा था?
कटरीना कैफ: पार्टनर पिकनिक की तरह थी, क्योंकि गोविंदा, डेविड धवन और सलमान, तीनों हर समय मस्ती के मूड में रहते थे. मुझे पता चला कि डेविड जी कभी भी स्क्रिप्ट से बंधकर काम नहीं करते. वे हर वक्त इंप्रोवाइज करते थे और उनके दोनों हीरो बस एक इशारे में ही समझ जाते थे कि उन्हें क्या करना है. मेरे लिए ये बहुत दिलचस्प था.
पूरी यूनिट में मैं सबसे अलग थी. इससे भी ज्यादा नई बात मेरे लिए ये थी कि डेविड जी सारे शॉट्स को जल्दी पूरा कर लेना चाहते थे. उस फिल्म को पूरा करना मेरे लिए चमत्कार से कम नहीं था.
सवाल: राजनीति एक सरप्राइज थी.
कैटरीना कैफ: मैं हैरान थी, जब प्रकाश झा ने मुझे वह रोल करने के लिए कहा. शुरू में मैं खुद श्योर नहीं थी कि मैं उस रोल में फिट हो पाऊंगी कि नहीं. पर यूनिट काफी युवा थी और प्रकाश झा पूरी तैयारी के साथ थे तो सही रास्ते पर चलने के लिए मुझे सिर्फ निर्देशों का पालन करना पड़ा.
सवाल: ज़ोया आपको निर्देशक की अभिनेत्री कहती हैं.
कटरीना कैफ: सभी अभिनेता अपने निर्देशक की नजर से अपनी भूमिका को समझना चाहते हैं. कई बार हम समझ लेते हैं, कई बार किसी दूसरे ही रास्ते पर पहुंच जाते हैं. ज़ोया अपने अभिनेताओं पर भरोसा करती हैं और उन्हें अपना काम करने देती हैं. उन्होंने मुझे मेरे हिसाब से करने दिया और जब भी मुझे उनकी जरूरत पड़ी, उन्होंने मदद की. ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ आसान थी, क्योंकि उसकी भूमिका मुझे अपनी जैसी लगी पर पानी के नीचे के दृश्यों के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी.
सवाल: कबीर खान की ‘न्यूयॉर्क’ ने आपको अभिनेत्री के तौर पर पहचान दी.
कटरीना कैफ: हां. आलोचकों ने पहली बार मेरे काम की सराहना की. यह मुश्किलों से घिरी एक शादीशुदा महिला की भूमिका थी. इस फिल्म ने मुझे यश चोपड़ा से मिलाया. यश फिल्म इंडस्ट्री के सबसे अच्छे लोगों में से एक है.
सवाल: और फिर आपने ‘जब तक है जान’ की, यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म.
कटरीना कैफ: मेरे करियर की शुरुआत में मुझे बताया गया था कि मैं यश चोपड़ा ब्रांड की हीरोइन नहीं हूं. मैं हैरान थी, जब मुझे यह फिल्म दी गई. यश जी के साथ तुरंत एक जुड़ाव महसूस हुआ था, हम बहुत बातें करते थे. वो मुझसे अंग्रेजी के अलावा हिंदी और पंजाबी में भी बातें करते थे. सब पूछते थे कि मैं उनकी बातें कैसे समझ जाती हूं, क्योंकि वो बहुत धीमे बात करते थे. पर मुझे सब समझ आता था. मुझे उनसे बेहद लगाव था और मैं उन्हें बहुत याद करती हूं.
सवाल: मुझे आपकी दो फिल्में सबसे ज्यादा पसंद है, ‘एक था टाइगर’ और ‘फितूर’...
कटरीना कैफ: एक था टाइगर का सारा श्रेय निर्देशक कबीर खान को जाता है. उन्होंने एक मजेदार प्रेम कहानी में एक्शन और ड्रामा मिला दिया. फिल्म के गाने और लोकेशंस भी बहुत अच्छी हैं. फिर मैंने और सलमान ने कुछ मुश्किल ‘चेज सीन’ भी किए हैं.
‘फितूर’ इस वक्त मेरी भी फेवरेट है, क्योंकि मैं अभी फिल्म के कैरेक्टर से ही नहीं निकल पाई हूं. हम अभिनेताओं को एक साल तक एक रोल जीना होता है और उसकी यादों से बाहर निकलना आसान नहीं होता. ‘फितूर’ का हर फ्रेम खूबसूरत है और मेरे लिए हमेशा खास रहेगा.
(भावना सोमैया पिछले तीन दशकों से सिनेमा के बारे में लिख रही हैं. वे 12 किताबों की लेखिका भी हैं.)
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