‘वजीर’ अब पर्दे पर आने को तैयार है. विजॉय राय द्वारा निर्देशित यह फिल्म उसी तरह है, जिस तरह एक नया तलाकशुदा जोड़ा अपनी शादी का विवरण देता है.
फिल्म की शुरुआत बहुत शानदार है, लेकिन अंत में निराशा उत्पन्न करती है. ऐसा लगता है कि इस फिल्म को लेकर जो वादे किए गए थे, वो टूट गए हैं.
इसकी शुरुआत अच्छी है और एंटी टेररिस्ट आफिसर दानिश अली की भूमिका में फरहान अख्तर ने फिल्म को संभाला है. वह एक हंसमुख लड़का है, जो अपने परिवार के प्रति पूरी तरह से समर्पित होता है.
फिल्म की शुरुआती घटनाओं से ही संकेत मिल जाते हैं कि इसमें इमोशनल ड्रामा ज्यादा होगा. हमारे पूर्वानुमान तब सही होने लगते हैं, जब अचानक खतरे के बादल घिर आते हैं और जरा सी देर में दुर्घटना आपके सामने आ खड़ी होती है.
इसी बीच दानिश यानी फरहान अख्तर की मुलाकात पंडितजी, व्हीलचेयर पर बैठे, तेरे नाम स्टाइल वाली विग पहने अमिताभ बच्चन से होती है. दोनों की तकलीफें एक दूसरे का सहारा बनती हैं और जल्द ही दोनों बदला लेने के लिए बेचैन दिखाई पड़ते हैं. दोनों के अंदर बदले की भावना पनप रही होती है.
इंटरवल से पहले कैमरा मैन का बेहतरीन काम, सख्त एडिटिंग और कसी हुई स्क्रिप्ट के साथ दिलचस्प सस्पेंस दर्शकों को बांधे रखता है. लेकिन किसे पता है कि इसके बाद इंटरवल के बाद गाड़ी पटरी से उतर जाएगी.
इंटरवल के बाद वजीर निराश करना शुरू कर देती है और आखिर तक संभल नहीं पाती.
इसमें कोई शक नहीं है कि अदिति राव हैदरी बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन फिल्म में हमेशा रोती रहने वाली यह सुंदर लड़की दर्शकों को नहीं बांध पाती.
बिग बी और फरहान अख्तर के अलावा मानव कौल ने अच्छा काम किया है. उन्होंने एक नेता की भूमिका बखूबी निभाई है.
करीब 100 मिनट की ‘वजीर’ को बेवजह लंबा खींचा गया गया है, जिससे फिल्म में कई कमियां रह गई हैं.
नील नितिन मुकेश को केवल 20 सेकंड की भूमिका दी गई है. जॉन अब्राहम की भूमिका इतनी अप्रत्याशित है कि समझ नहीं आता कि वह फिल्म में हैं ही क्यों. और आखिर में दानिश यानी फरहान अख्तर जिस रहस्य को सुलझाता है, उसे दर्शक 40 मिनट पहले ही सुलझा चुके होते हैं.
अंत में यही कह सकते हैं कि वजीर बहुत लंबी फिल्म है. अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर जैसे बड़े कलाकारों के बावजूद इंटरवल के बाद जिस तरह से स्क्रिप्ट को लंबा खींचा गया है, उससे निराशा होती है. इसे मैं 5 में से 2.5 क्विंट स्टार दूंगी.
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