असल जिंदगी में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर के बीच 10 साल की उम्र का अंतर है, लेकिन फिल्म में इस जोड़ी की ऑन-स्क्रीन पेशकश दोनों के बीच बाप-बेटे के संबंधों को खंगालती है.
ऋषि कपूर ने 75 साल के विधुर 'बाबूलाल' का किरदार निभाया है, जो अपनी बढ़ती उम्र के बोझ तले दबे हुए हैं और स्वभाव से गंभीर हैं. दूसरी ओर इनके पिता का किरदार निभाने वाले बच्चन का स्वभाव बिल्कुल इसके उलट है. वे उम्र को महज एक संख्या और जश्न मनाने के लिए एक मील का पत्थर मानते हैं.
102 साल के दत्तात्रय वखारीया का सपना है कि वे दुनिया के सबसे उम्रदराज शख्स बनने का रिकॉर्ड कायम करें. यही वजह है कि वे बार-बार कहते हैं, "अभी 16 साल और बाकी है"
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ने बेहद सहजता के साथ अपने किरदारों में खुद को ढाला है. इन दोनों के एक्टिंग की खूबियां और बारीकियां इस बात का बेहतरीन सबूत है कि ‘ओल्ड इस गोल्ड’.
कपूर और बच्चन की बेजोड़ केमिस्ट्री
'कपूर एंड संस' में ऋषि कपूर का निभाया हुआ 'दादा जी' का दिल को छू लेने वाला किरदार अभी तक लोगों को याद है. और 'पीकू' में 'भास्कर बनर्जी' के किरदार को दमदार तरीके से पेश करने वाले बच्चन ने साबित किया है कि इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका ऑन-स्क्रीन अवतार कितने झुर्रियों वाला है. इस लिहाज से तो कोई केवल उस कमाल की कल्पना ही कर सकता है, जो दोनों दिग्गज कलाकारों ने एक साथ इस फिल्म में किया है. उमेश शुक्ला की 102 मिनट की यह फिल्म सौम्य जोशी के लिखे गए इसी नाम के एक गुजराती नाटक पर आधारित है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक पिता अपने बेटे को ओल्ड एज होम में भेजना चाहता है.
बाबूलाल स्वाभाविक रूप से गंभीर और निराश किस्म के व्यक्ति हैं. वृद्धाश्रम में जाने से बचने के लिए उन्हें कुछ निश्चित ‘शर्तों’ को पूरा करना होगा, जो उनके पिताजी उनके लिए बताते हैं. इसी के इर्द-गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है. अच्छे कॉमेडी सीन्स से लेकर दिल को छू लेने वाले कई पल फिल्म में देखने को मिलते हैं.
फिल्म के फर्स्ट हाफ में बच्चन और कपूर के किरदारों की सनक को अनोखे और मजेदार अंदाज में दिखाया गया है. यह साफ हो जाता है कि दत्तात्रय के पास अपने बेटे को लेकर एक प्लान है और इसलिए हम इस उन्मादी प्लान को समझने के लिए कहानी के सेकंड हाफ का इन्तजार करते हैं. और यहीं से सारी मुसीबत शुरू होती है.
अचानक फिल्म में नाटकीय बदलाव आता है और कहानी में ढेर सारे उपदेश आ जाते हैं. मिसाल के तौर पर बाबूलाल जिस तरह अपने अमेरिका से लौटे बेटे या दत्तात्रय के साथ मतभेदों को दूर करते हैं, वह कुछ बनावटी और काल्पनिक अंदाज में दिखाया गया है.
फिल्म में पड़ोसी के किरदार में जिमित त्रिवेदी ने अच्छी कॉमेडी करने की कोशिश की है, लेकिन उनका रोल ज्यादा नहीं है. हालांकि, लीड रोल में फिल्म का प्रमुख आकर्षण हैं. अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर हमें निराश नहीं करते हैं. 102 नॉट आउट में मनोरंजन के लायक बहुत कुछ है.
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