‘लाल कप्तान’ नवदीप सिंह की एक महत्वकांक्षी और लुभावनी फिल्म है. ये एक ऐसी फिल्म है जिसमें ढेर सारा मसाला भी है, लेकिन ये फिल्म कागज पर तो अच्छी लगती है,पर पर्दे पर वो बात नहीं दिखती. इस फिल्म में सैफ अली खान ऐसे किरदार में नजर आ रहे हैं, जो पहले कभी नहीं देखा गया. नवदीप सिंह की ये पीरियड ड्रामा फिल्म 18वीं सेंचुरी में सेट है. ये एक नागा साधु के बदले की कहानी है.
नवदीप सिंह की इस फिल्म की थीम यही है कि मृत्यु एक अटल सच है और इससे कोई भी बच नहीं सकता. नवनीत वो शख्स हैं, जिन्होंने मनोरमा सिक्स फिट और NH 10 जैसी फिल्में बनाई हैं. 155 मिनट की ‘लाल कप्तान’ बेहद स्लो फिल्म है.
बुंदेलखंड की धूल भरी लहरों में, सैफ अली खान, गोसाईं नाम के एक नागा साधु की भूमिका में हैं, जिसकी जिंदगी का मकसद बदला लेना है. सैफ का डरावना लुक,उनकी आंखें और उनके बालों की लटों को देखकर जैक स्पैरो की याद आती है. सैफ गोसाईं को रहमत खान (मानव विज) से बदला लेना है, जो एक भ्रष्ट सरदार है, जिसने मराठों को धोखा दिया और अंग्रेजों के साथ गठबंधन किया.
फिल्म बक्सर के युद्ध के 25 साल बाद के टाइम पीरियड पर बेस्ड है, जब अंग्रेज भारत में अपनी जड़ें जमाते जा रहे थे. और उस वक्त कई लोगों ने उनकी नापाक मदद भी की. रहमत खान और गोसाईं का अपना एक अतीत होता है. हमें अपने सवालों के जवाब अंत में मिलते हैं, तब तक हम अपना धैर्य खो चुके होते हैं.
हालांकि लाल कप्तान कभी-कभी रफ्तार भी पकड़ती है खासकर वहां जहां, फिल्म खून के प्यासे गोंसाई और रहमत खां से परे जाती है. फिल्म उस समय इंट्रेस्टिंग लगती है,जब फिल्म की महिला किरदार जोया हुसैन और रहमत की पत्नी के रोल में सिमोन एक दूसरे के सामने आती हैं. दीपक डोबरियाल जब-जब स्क्रीन पर आते हैं, तो अच्छे लगते हैं. लेकिन ये छोटी- छोटी चीजें हैं. लाल कप्तान की जरूरत से ज्यादा घुमावदार कहानी बताने का तरीका, ये समझ नहीं आता है कि आखिर मेकर्स क्या बनाना चाहते हैं. अफसोस की बात है कि लाल कप्तान हमें निराश करती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)