साल 2017 में संदीप वांगा के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' जहां एक तरफ बेहद पॉपुलर हुई वहीं दूसरी तरफ ध्रुवीकरण वाली फिल्म बता दी गई. 'अर्जुन रेड्डी' की हिंदी रीमेक 'कबीर सिंह' रिलीज हो गई है. ये एक ऐसे शॉर्ट टेम्पर्ड, शराबी सर्जन (डॉक्टर) की कहानी है, जिसकी प्रेमिका की शादी किसी और से कर दी जाती है और वो बर्बादी की कगार पर पहुंच जाता है.
अर्जुन रेड्डी का ये पूरा का पूरा रिप ऑफ ड्रामा, जिसमें कबीर राजवीर सिंह यानी शाहिद कपूर का प्रीति (कियारा आडवाणी) से बेइंतहा प्यार को दिखाया गया है. सच पूछो तो ये बेइंतहा प्यार ही फिल्म की सबसे बड़ी परेशानी की वजह है.
कबीर सिंह एक ऐसा गुस्सैल लड़का है. जो पूरी तरह बेपरवाह है और अक्सर अपने आपको सही साबित करने के लिए हिंसा और बेईमानी का रास्ता भी अपनाता है. उसके रास्ते में कोई आए उसे ये जरा भी बर्दाश्त नहीं होता.
कई जगह वो खुशनसीब भी साबित होता है, क्योंकि उसे ऐसे दोस्त मिलते हैं, जो हमेशा उसके साथ खड़े रहते हैं. मां- पापा उसके खराब बर्ताव के लिए हल्का- फुल्का डांट देते हैं, लेकिन बड़ा भाई हद से ज्यादा सपोर्टिव है और कबीर को सबसे ज्यादा समझने वाली उसकी दादी (कामिनी कौशल). और शांत, सुशील कियारा आडवाणी जो अपने रोल में एक दम पानी की तरह उतर जाती हैं.
कबीर सिंह की जिन्दगी का मुश्किल हिस्सा है प्रीति से रिश्ता. जब कबीर प्रीति को देखता है तो ये तय कर लेता है कि प्रीति सिर्फ उसकी है और किसी की नहीं. फिर क्या था, इसके बाद कबीर पूरे कॉलेज के हर एक शख्स को हड़काता है कि प्रीति से दूरी बनाए रखे, क्योंकि वो सिर्फ उसकी है. आपको बता दें कि ये सब तब होता है जब प्रीति इन सब से अंजान है.
बिना मेकअप के सीधी-साधी कियारा आडवाणी मेरिट होल्डर हैं और मेडिकल की पढ़ाई कर रहीं हैं. जब आखिरी में हम कियारा को अपना प्यार एक्सप्रेस करते हुए देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये एक नॉर्मल रिलेशनशिप से कहीं दूर एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें दो लोगों को जबरदस्ती फंसा दिया जाता है.
चाकू की नोंक पर सेक्स के लिए जबरदस्ती , मेड के साथ मारपीट..क्या ये कॉमेडी है? प्रीति को थप्पड़ और दूसरे लड़कों को पछाड़ने को कबीर के प्यार की जीत बताना कितना सही है?
परफॉर्मेंस की बात करें तो शाहिद कपूर, कबीर सिंह के किरदार में जबरदस्त हैं. एक जिद्दी, अड़ियल लड़का, जो हमेशा गुस्से में रहता है. ऐसा किरदार निभाना कोई आसान काम नहीं है. एक शराबी का रोल निभाना, उससे भी मुश्किल है और शाहिद ने ये काम बहुत ही सरलता से किया है.
कबीर के डीन आदिल हुसैन जब कबीर को कॉलेज के साथियों के साथ खूनी लड़ाई के लिए फटकार लगाते हैं तो कबीर का जवाब होता है कि "मैं बिना किसी कारण के विद्रोही नहीं हूं'' लेकिन सच पूछो तो पूरी फिल्म के दौरान एक बार भी ये समझ नहीं आया कि कबीर इतना शॉर्ट टेम्पर्ड और विद्रोही क्यों है.
फिल्म की पूरी कहानी का जिस्ट पूछा जाए जो ये बताने में बिलकुल हिचकिचाहट नहीं होगी की कबीर सिंह के गुस्से में कोई वास्तिविकता नजर नहीं आ रही है, न ही कबीर सिंह के किरदार से किसी तरह की सहानुभूति होती है. फिल्म में एक किरदार ऐसा है कि जो दिल जीत लेता है और वो है सोहम मजूमदार, जो कि शिवा का किरदार निभा रहे हैं. शाहिद की ये फिल्म अर्जुन रेड्डी की रीमेक जरूर है, लेकिन ये प्यार में पागलपन और खतरनाक स्थिति को भी दर्शाता है.
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