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रिव्यू | अनोखी है ‘तितली’, आपकी सोच को सीन दर सीन कर देगी ध्वस्त

यशराज की ‘तितली’ परंपरा से काफी हटके है. जबरदस्त अभिनय के साथ गालियां और मारपीट से भरपूर, मेनस्ट्रीम नहीं अनोखी है. 

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तितली के बारे में सोचते समय हमारे दिमाग में केवल अच्छी बातें ही आती हैं. यश राज की इस फिल्म के शीर्षक से हम कुछ ऐसी ही उम्मीद बांधते हैं. अब फिल्म यश राज की है तो कुछ ज्यादा तो बनता है.

लेकिन तभी डायरेक्टर कनु बहल अपनी सोच से हमारी सोच को ध्वस्त कर देते हैं. बतौर डायरेक्टर ये उनकी पहली फिल्म है. फिल्म आपकी सोच को सीन दर सीन गलत साबित करती है.

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बतौर निर्माता दिबाकर बनर्जी और आदित्य चोपड़ा के होने के बावजूद फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी उम्मीद आपने बांध रखी है.

परंपरागत यश राज फिल्म्स से ये फिल्म बिल्कुल जुदा है. न तो फिल्म में कोई स्टार है और न ही विदेशों के मनभावन दृश्य. अलबत्ता, पैसे और ग्लैमर दोनों में ही मितव्ययीता फिल्म बनाने और खुद फिल्म में भी दिखाई गई है.

विक्रम, बावला और तितली अपने पिता के साथ दिल्ली की तंग गलियों में गंदगी और कुचले हुए सपनों को समेटे रहते हैं. पिता का किरदार निर्देशक के पिता ललित बहल ने ही निभाया है.

बाप-बेटों की इस टोली को पैसों की जरूरत है और पैसों के लिए वो लगभग सारे अपराधिक काम करते हैं. तितली जोकि तीनों भाइयों में सबसे छोटा है, एक माॅल में पार्किग स्पेस खरीदना चाहता है. जी हां, उसे भी पैसे चाहिए.

फिल्म में हर चेहरा आपको नया लगेगा सिवाय रणवीर शौरी के. रणवीर ने बड़े भाई का किरदार निभाया है. रणवीर अपने भाई तितली की एक नहीं सुनता.वो उसे भी अपने ही कामों में शामिल करना चाहता है. बावला के कहने पर वे तितली की शादी नीलू से करा देते हैं ताकि परिस्थिति कुछ बेहतर हो सकें.

बावला का किरदार बेहद अहम है और अमित सियाल ने इसे बहुत गंभीरता के साथ निभाया भी है. नीलू का किरदार शिवानी रघुवंशी ने निभाया है. वो भी फिल्म को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. शिवानी और शशांक अरोड़ा साथ में बेहतरीन नजर आते हैं.

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नीलू के बेहिचक विचार और तितली के दिमाग में चल रही बदले की बात कुछ ऐसा है जो हमने कभी नहीं देखा. अमूमन फिल्मों में शादी के बाद सबकुछ रोमांटिक और भव्य होता है लेकिन यहां बिल्कुल उलट है. फिल्म की सबसे बड़ी खासियत ही यही है कि इसमें मेनस्ट्रीम और रेग्युलर फिल्मों जैसा कुछ भी नहीं है.

तितली एक खास किस्म की फिल्म है. ये फिल्म किसी को खुश करने के लिए नहीं बनाई गई है. कहानी खुरदुरी है और कलाकार, उनका अभिनय उतना ही वास्तविक. एडिटर नम्रता राव की मदद से डायरेक्टर कनु बहल की इस फिल्म का पहला हिस्सा लोगों को बांधे रखता है.

फिल्म के दूसरे हिस्से में तनाव बढ़ता जाता है और सोच थोड़ी कमजोर होती लगती है. एक रियलस्टिक फिल्म बनाने के लिए जो कुछ भी चाहिए इस फिल्म में है लेकिन लोगों के लगातार थूकने और उल्टियां करने वाले सीन बेवजह और अजीब लगते हैं.

फिर भी तितली अपने कलाकारों के जबरदस्त अभिनय और बेहतरीन पहले भाग की बदौलत एक खास फिल्म बन जाती है. फिल्म में गालियां और मारपीट भी है लेकिन अगर आपका पेट सच्ची चीजों को बर्दाश्त करना जानता है तभी ये फिल्म देखने जाएं. मैं इस फिल्म को पांच क्विंट में से तीन क्विंट देती हूं.

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