अगर आप उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना या केरल में रहते हैं या इन राज्यों से आपके कारोबारी रिश्ते हैं, तो 15 अप्रैल के बाद आपके लिए सबकुछ पहले जैसा नहीं रहने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि 15 अप्रैल से देश के इन 5 राज्यों में इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल का सिस्टम लागू होने जा रहा है. जिसके बाद इन सभी राज्यों में खरीदे-बेचे जाने वाले ज्यादातर सामानों की ढुलाई के लिए ई-वे बिल जेनरेट करना जरूरी होगा, भले ही सामानों की डिलीवरी राज्य के भीतर ही क्यों न होनी हो.
15 अप्रैल से 6 राज्यों में लागू हो जाएगा इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल
दरअसल, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी के तहत ई-वे बिल की व्यवस्था 1 अप्रैल 2018 से देश भर में लागू हो चुकी है. लेकिन देश के अधिकांश हिस्सों में ई-वे बिल का ये सिस्टम फिलहाल सिर्फ इंटर-स्टेट यानी एक राज्य से दूसरे राज्य में सामानों की ढुलाई पर ही लागू है. अभी तक कर्नाटक ही देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां इंट्रा-स्टेट यानी राज्य के भीतर सामानों की ढुलाई के लिए भी ई-वे बिल जेनरेट करना जरूरी है. लेकिन 15 अप्रैल से इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल की ये व्यवस्था देश के 6 राज्यों में लागू हो जाएगी.
कंज्यूमर के लिए क्या जानना जरूरी है
जरूरी बात ये है कि इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल के लागू होने का असर सिर्फ ट्रेडर या ट्रांसपोर्टर पर ही नहीं पड़ेगा. आम कंज्यूमर को भी इससे फर्क पड़ने वाला है. कैसे? इसे एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए, आप उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल या कर्नाटक में रहते हैं. आपने अपने इस्तेमाल के लिए 50 हजार रुपये या उससे ज्यादा कीमत का एक नया एलईडी टीवी बाजार से खरीदा और अपनी कार में रखकर घर ले जा रहे हैं. जीएसटी से जुड़ा कानून कहता है कि इस टीवी को घर ले जाते समय आपके पास सिर्फ उसकी खरीद का कैशमेमो होना ही काफी नहीं है. आपके पास एक ई-वे बिल भी होना चाहिए, जिसमें टीवी के ब्योरे के साथ ही साथ आपकी उस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर भी दर्ज हो, जिसमें रखकर आप अपना टीवी घर ले जा रहे हैं. ई-वे बिल में ये जानकारी भी होनी चाहिए कि टीवी को कहां से कहां तक ले जाया जा रहा है और इसे किस एड्रेस पर डिलीवर किया जाएगा.
अगर आप अपनी कार की जगह ट्रांसपोर्टर की गाड़ी से टीवी घर ला रहे हैं, तो ई-वे बिल में आपकी कार की जगह उस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर होना चाहिए. आप ये ई-वे बिल उस शोरूम से ले सकते हैं, जहां से आपने टीवी खरीदा है. आप चाहें तो ये ई-वे बिल खुद भी जेनरेट कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको जीएसटी कॉमन पोर्टल पर एक नागरिक के तौर पर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.
ट्रेडर, ट्रांसपोर्टर का हर रोज होगा ई-वे बिल से सामना
अभी दिया उदाहरण एक आम कंज्यूमर का है, जो 50 हजार से ज्यादा कीमत वाला सामान रोज खरीदकर नहीं लाता. लेकिन ट्रेडर और ट्रांसपोर्टर के लिए ये हर दिन की बात है. उन्हें अब सिर्फ राज्य से बाहर सामान भेजने या मंगाने पर ही नहीं, राज्य के भीतर डिलीवरी होने पर भी ई-वे बिल की फिक्र करनी होगी. ऊपर के उदाहरण से साफ है कि उन्हें कई बार अपने कंज्यूमर के लिए भी ई-वे बिल जेनरेट करना होगा.
दरअसल, देश में 1 अप्रैल से लागू इंटर-स्टेट ई-वे बिल के मुकाबले इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल को लागू करना कहीं ज्यादा मुश्किल काम है. ऐसा इसलिए कि चीजों को एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजने-मंगाने का काम तो सभी कारोबारी-दुकानदार और ट्रांसपोर्टर हमेशा नहीं करते, लेकिन राज्य के भीतर एक जगह से दूसरी जगह तक चीजों की खरीद-फरोख्त के दायरे में ज्यादातर कारोबारी और ट्रांसपोर्टर आने वाले हैं.
सिस्टम की मजबूती का सवाल
1 अप्रैल से लागू हुई इंटर-स्टेट ई-वे बिल की व्यवस्था अब तक बिना किसी खास परेशानी के चल रही है. मंगलवार को केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस रिलीज में बताया गया है कि 1 से 9 अप्रैल 2018 तक देश भर में 63 लाख से ज्यादा ई-वे बिल कामयाबी के साथ जेनरेट किए जा चुके थे. लेकिन ये आंकड़े आगे आने वाली चुनौती की पूरी तस्वीर बयान नहीं करते. इससे पहले 1 फरवरी को देश भर में ई-वे बिल की व्यवस्था को इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट, दोनों स्तरों पर एक साथ शुरू करने की कोशिश की गई थी. लेकिन लॉन्च होते ही सिस्टम पर इतना बोझ पड़ा कि वो बैठ गया. लिहाजा, ई-वे बिल को लागू करने की तारीख आगे बढ़ानी पड़ी. ये भी साफ हुआ कि सिस्टम पर सबसे ज्यादा बोझ इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल की वजह से ही पड़ा था.
यही वजह है कि 1 अप्रैल की नई तारीख घोषित करते समय ये भी साफ किया गया कि इस बार पहले इंटर-स्टेट ई-वे बिल ही लागू किया जाएगा. इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल पर बाद में अमल होगा, वो भी धीरे-धीरे और चरणबद्ध तरीके से.
क्या छोटे कारोबारियों का रखा गया है ध्यान?
इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल लागू होने को लेकर कारोबारियों में थोड़ी बेचैनी है, जिसकी एक वजह 1 फरवरी का खराब अनुभव भी है. कुछ कारोबारी संगठन तो पहले से मांग करते आ रहे हैं कि इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल को छोटे ट्रेडर्स और दुकानदारों के लिए लागू न किया जाए. उनका कहना है कि टैक्स के नियमों का पालन करने के लिए वो पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन ई-वे बिल की व्यवस्था छोटे दुकानदारों और ट्रेडर्स के लिए काफी जटिल है.
कारोबारियों का कहना है कि ई-वे बिल जेनरेट करने के लिए कंप्यूटर, प्रिंटर और इंटरनेट की सुविधा के साथ ही साथ तकनीकी जानकारी का होना भी जरूरी है. छोटे दुकानदारों और ट्रेडर्स के पास न तो ये सुविधाएं होंगी और न ही तकनीकी जानकारी. इन हालात में इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल लागू होने पर उनका कारोबार ठप पड़ सकता है.
मौजूदा नियमों के मुताबिक उन सभी सामानों की आवाजाही के लिए ई-वे बिल जरूरी है, जिनकी कीमत 50 हजार रुपये या उससे ज्यादा है. बहुत से कारोबारियों का कहना है कि ये लिमिट बेहद कम है. इसे बढ़ाया जाना चाहिए.
चुनौती तो बड़े बिजनेस के लिए भी है
इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल को पूरे देश में एक साथ लागू न किया जाना बड़े उद्योगों और कारोबारियों के लिए भी परेशानी की वजह बन सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिनके कारोबार देश भर में फैले हैं, उन्हें अलग-अलग राज्यों के लिए जीएसटी कंप्लायंस का इंतजाम अलग-अलग ढंग से करना होगा. कई जानकार मानते हैं कि अगर इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल को भी देश भर में एक साथ और समान नियमों के तहत लागू किया जाता, तो बिजनेस प्रॉसेस, सॉफ्टवेयर और एकाउंटिंग में जटिलता नहीं आती.
चिंताएं तो लगी रहेंगी, फिलहाल तैयारी का वक्त है:
बहरहाल, चिंताएं और शिकायतें अपनी जगह, लेकिन फिलहाल तो देश के 5 और राज्यों में इंट्रा-स्टेट ई-वे बिल लागू होने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. इस बारे में 10 अप्रैल को वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल के कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स को सलाह दी गई है कि वो अंतिम तारीख का इंतजार न करें और जल्द से जल्द ई-वे बिल पोर्टल (https://www.ewaybillgst.gov.in ) पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन/एनरोलमेंट करा लें. और ये बिलकुल सही सलाह है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)