ISRO एक बार फिर नया कारनामा करने के लिए तैयार है. 12 जनवरी को सुबह 9.29 बजे इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) 31 सैटेलाइटों को लॉन्च करेगा. ये ISRO के 100वें सैटेलाइट की लॉन्चिंग भी होगी. इसमें भारत के 3 और 6 दूसरे देशों के 28 सैटेलाइट शामिल हैं. मिशन की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है. PSLV-C40 यानी ‘पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ के जरिए 1 ‘कार्टौसैट-2’ और 30 माइक्रो-नैनो सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे. ऐसे में क्या आपके दिमाग में ये सवाल आते हैं-
- ये PSLV-C40, कार्टौसैट-2 आखिर चीज क्या हैं?
- हर कुछ दिनों में ISRO सैटेलाइट क्यों लॉन्च करता है, इससे क्या फायदे हैं?
- आजकल दूसरे देश भारत की मदद से सैटेलाइट क्यों छोड़ रहे हैं?
- स्पेस साइंस की रेस में चीन की धमक कम करेगा भारत?
आइए 12 जनवरी को 31 सैटेलाइट लॉन्च के ब्योरे से लेकर इन सारे सवालों का जवाब जानते हैं-
6 देशों के 28 और अपने 3 सैटेलाइट लॉन्च करेगा ISRO
पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हिकल (PSLV-C40) के जरिए ISRO, 710 किलोग्राम वजन के कार्टोसैट-2 सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहा है. इसी के साथ 30 को-पैसेंजर सैटेलाइट भी सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा, आंध्रप्रदेश से लॉन्च किए जाएंगे.
30 को-पैसेंजर सैटेलाइट में कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के 25 नैनोसैटलाइट और 3 माइक्रोसैटेलाइट शामिल हैं. वहीं भारत का 1 माइक्रोसैटेलाइट और 1 नैनोसैटेलाइट भी लॉन्च होगा. कुल मिलाकर PSLV-C40, 1323 किलोग्राम वजन के सैटेलाइटों को लॉन्च करने के लिए ले जाएगा.
PSLV और PSLV-C40 क्या है?
PSLV, इसरो का बनाया हुआ सैटेलाइट लॉन्चर है. साफ-साफ शब्दों में कह सकते हैं कि ये एक ऐसा रॉकेट है जिसके जरिए सैटेलाइट को स्थापित किया जाता है. ISRO के अबतक के सफर में PSLV काफी भरोसेमंद साबित हुआ है, 12 जनवरी को PSLV की 42 लॉन्चिंग होगी.
PSLV-C40 में C-40 का मतलब यहां फ्लाइट नंबर से है, दरअसल जितनी पीएसएलवी की फ्लाइट होती हैं उसी हिसाब से उसे नाम दिए जाते हैं. बता दें कि पहले पीएसएलवी ने सितंबर 1993 में लॉन्चिंग की कोशिश की थी. ये मिशन असफल रहा. इसके बाद से 24 सालों के दौरान कभी भी PSLV से लॉन्चिंग असफल नहीं रही, लेकिन 31 अगस्त 2017 को PSLV-C39 से सैटेलाइट लॉन्चिंग की कोशिश नाकामयाब रही.
कार्टौसैट-2 आखिर चीज क्या है?
Cartography और सैटेलाइट शब्दों से मिलकर बना है कार्टौसैट, इसी सीरीज की सैटेलाइट है कार्टौसैट-2. दरअसल, ये एक भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (IRS) है. जिसका काम धरती की निगरानी करना है. इनमें हाई क्वॉलिटी के कैमरे लगे हैं, जो किसी भी विशेष स्थान की हाई रिजॉल्यूशन वाली तस्वीरें देने में सक्षम है. इससे शहरी और ग्रामीण नियोजन, सड़क नेटवर्क की निगरानी और दूसरे महत्वपूर्ण आंकड़े और तस्वीरें उपलब्ध होते हैं.
इसी सीरीज के पहले सैटेलाइटों से भेजी गई ये तस्वीरें देखिए
भारत दूसरे देशों के सैटेलाइट क्यों लॉन्च करता है?
ISRO की एक कॉमर्शियल ब्रांच भी है, जिसका नाम हैं एंट्रीक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड (Antrix), ये भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत काम करता है. इसका मकसद है, विदेशी कस्टमर्स (देश, यूनिवर्सिटी या कोई और) के लिए सैटेलाइट लॉन्चिंग कराना. ऐसे में देश की डिफेंस, टेक्नॉलजी और मौसम से संबंधित सैटेलाइट लॉन्च करने के अलावा स्पेस साइंस में दूसरे देशों से आगे निकलने में भी मदद मिलती है.
बता दें कि ISRO की खासियत है कि वो अपनी स्वदेशी तकनीक के दम पर किफायती कीमत में लॉन्चिंग करा सकता है. धीरे-धीरे अगर भारत बड़े सैटेलाइट को भी स्पेस में स्थापित करने में महारत हासिल कर लेता है तो देश सैटेलाइट लॉन्च कर ही अरबों की कमाई कर सकता है.
चीन का असर कम कर सकता है भारत
लंबे समय से रूस के बाद अमेरिका और चीन का स्पेस साइंस के क्षेत्र में दबदबा रहा है. 15 फरवरी, 2017 को जब ISRO ने 104 सैटेलाइट एक साथ छोड़कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था, ये बात चीन को नहीं पच पाई थी. उसके ISRO को लेकर नकारात्मक टिप्पणी थी. ऐसे में जब ISRO हर रोज कम कीमत पर नए कारनामे कर रहा है, चीन के लिए ये बड़ी टक्कर है, क्योंकि इससे साउथ एशिया के साथ ही दुनियाभर में उसका असर कम हो रहा है. बता दें कि चीन भी स्पेस डिप्लोमेसी के तहत 2007 से कई देशों के लिए सैटेलाइट बना रहा है चीन ने वेनेजुएला, नाइजीरिया, पाकिस्तान और श्रीलंका समेत कई देशों के लिए सैटेलाइट बनाए और लॉन्च किए हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)