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Gurbani के फ्री प्रसारण को लेकर क्या विवाद? बिल पास होने से विपक्ष क्यों नाराज?

SAD के दलजीत सिंह ने इस कदम को "असंवैधानिक" और "सिख समुदाय की धार्मिक गतिविधियों में सीधा हस्तक्षेप" कहा है.

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पंजाब विधानसभा ने 20 जून को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से 'गुरबाणी' (Gurbani free telecast) का मुफ्त प्रसारण सुनिश्चित करने के लिए सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित कर दिया है, जिसको लेकर पंजाब में राजनैतिक विवाद शुरू हो गया है. विपक्ष ने आम आदमी पार्टी की सरकार के इस कदम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. लेकिन क्या है ये विवाद और क्या है इसकी वजह? यहां आपको विस्तार से समझाते हैं.

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गुरबाणी क्या होता है: गुरबाणी आमतौर पर सिख गुरुओं और गुरु ग्रंथ साहिब के अन्य लेखकों द्वारा विभिन्न रचनाओं का उल्लेख करने के लिए सिखों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है. गुरबाणी- दो शब्द 'गुरु की वाणी' से मिलकर बना है. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में गुरबाणी का पाठ किया जाता है, जिसका टीवी पर लाइव टेलीकास्ट किया जाता है. अबतक इसका लाइव टेलीकास्ट सिर्फ पंजाबी न्यूज चैनल पीटीसी पर ही किया जाता है.

क्या है बिल: 20 जून को पंजाब कैबिनेट ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से गुरबानी का फ्री-टू-एयर प्रसारण सुनिश्चित करने के लिए ब्रिटिश काल के सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 में संशोधन को मंजूरी दे दी है. जिसके बाद अब अन्य चैनल भी फ्री में गुरबाणी का टेलीकास्ट कर पाएंगे.

अकाली दल के दलजीत सिंह चीमा ने इस कदम को "असंवैधानिक" और "सिख समुदाय की धार्मिक गतिविधियों में सीधा हस्तक्षेप" कहा है.

क्या है विवाद: वर्तमान में गुरबानी को पीटीसी द्वारा स्वर्ण मंदिर से प्रसारित किया जाता है, जो एक निजी चैनल है और इसे अक्सर शिरोमणि अकाली दल के 'बादल परिवार' से जोड़ा जाता रहा है. सिखों की शीर्ष धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने AAP के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार के इस कदम का यह कहते हुए विरोध किया है कि 1925 का अधिनियम एक केंद्रीय कानून है और इसे केवल संसद द्वारा ही संशोधित किया जा सकता है.

कांग्रेस ने भी जताया विरोध: कांग्रेस के सुखपाल सिंह खैरा ने सवाल किया कि पंजाब सरकार एक केंद्रीय अधिनियम में कैसे बदलाव कर सकती है. हालांकि, पंजाब कांग्रेस के नेता नवजोत सिद्धू ने ट्वीट किया कि वह इस कदम के पक्ष में हैं.

सरकार का जवाब: मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 में संशोधन करने के लिए पूरी तरह सक्षम है. उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के लिए एक अलग गुरुद्वारा समिति के मुद्दे पर फैसला सुनाया था कि यह अधिनियम एक अंतर-राज्य अधिनियम नहीं था, बल्कि एक राज्य अधिनियम था.

क्या है सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925: सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 ब्रिटिश भारत में कानून का एक टुकड़ा था, जिसने कानूनी रूप से सिख पहचान को परिभाषित किया और रूढ़िवादी सिखों के एक निर्वाचित निकाय के नियंत्रण में सिख गुरुद्वारों को लाया गया.

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