Uniform Civil Code क्या है?
समान नागरिक संहिता पूरे देश के सभी धार्मिक समुदायों के लोगों के लिए उनके व्यक्तिगत मामलों, जैसे विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि पर एकसमान कानून का प्रावधान करती है.
संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करेगा.
मालूम हो कि संविधान का अनुच्छेद 44 निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles) में से एक है. यानी यह बताता है कि क्या किया जाना चाहिए. जैसा कि अनुच्छेद 37 में परिभाषित किया गया है, निदेशक सिद्धांतों को कोर्ट के आदेश से लागू करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता.
डॉ. बी आर अम्बेडकर ने संविधान बनाते समय कहा था कि देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए लेकिन फिलहाल इसे स्वैच्छिक (वॉलेंटरी) ही रखा जाना चाहिए. समान नागरिक संहिता को इसीलिए संविधान के ऐसे हिस्से में (भाग 4) में शामिल किया गया था, जिसे भविष्य में तब लागू किया जाता जब देश इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होगा और UCC को सामाजिक स्वीकृति होगी.
संविधान सभा में समान नागरिक संहिता को मौलिक अधिकार के रूप में संविधान में रखने के मुद्दे पर विवाद हुआ था, जो वोटिंग के बाद ही खत्म हो सका. 5:4 के बहुमत से सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता वाली मौलिक अधिकार उप-समिति ने माना कि यह प्रावधान मौलिक अधिकारों के दायरे से बाहर रखा जाएगा.
भारत में Uniform Civil Code का इतिहास क्या है?
भारत में समान नागरिक संहिता का मुद्दा औपनिवेशिक काल से ही है. ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े भारतीय कानून में एकरूपता की आवश्यकता पर बल दिया गया.
इसमें विशेष रूप से सिफारिश की गई कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) को कानून के इस तरह के संहिताकरण से बाहर रखा जाए.
हिंदू कोड बिल क्या है?
ब्रिटिश सरकार ने 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी एन राव कमिटी बनाया. इस हिंदू लॉ कमिटी का काम कॉमन हिंदू लॉ की आवश्यकता की जांच करना था.
बी एन राव कमिटी ने हिंदू शास्त्रों के अनुसार एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देता. इसमें 1937 के कानून की समीक्षा की गई और कमिटी ने हिंदुओं के लिए शादी और उत्तराधिकार की नागरिक संहिता की सिफारिश की.
हिंदू कोड बिल कमिटी का गठन तो 1941 में ही हो गया था, लेकिन कानून को पारित करने में 14 साल लग गए - और वो भी तीन अलग-अल रूप में.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
हिंदू अडॉप्टेशन और रखरखाव अधिनियम, 1956
हालांकि उत्तराधिकार कानून में इसने बेटियों को हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया गया. यह संशोधन आगे 2005 में यूपीए शासन के दौरान किया गया.
Uniform Civil Code बनाम पर्सनल लॉ
पर्सनल लॉ वे हैं जो लोगों को उनके धर्म, जाति, आस्था और विश्वास के आधार पर शासित करते हैं. ये कानून रीति-रिवाजों और धार्मिक ग्रंथों पर विचार करने के बाद बनाए गए हैं.
इन कानूनों में विवाह, तलाक, भरण-पोषण, गोद लेना, उत्तराधिकार, पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा, वसीयत, गिफ्ट, धर्म के लिए दान आदि से जुड़े नियमों का उल्लेख है.
हिंदू और मुस्लिम दोनों के पर्सनल लॉ उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं. हिंदू पर्सनल लॉ प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदों, स्मृतियों और उपनिषदों के साथ-साथ न्याय, समानता की आधुनिक अवधारणाओं पर आधारित है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से कुरान और सुन्नत पर आधारित है, जो पैगंबर मोहम्मद की सीख और उनके जीवन जीने के बताये तरीके से संबंधित है. इसी तरह क्रिस्चियन पर्सनल लॉ शास्त्रों (बाइबल), परंपराओं, तर्क और अनुभव पर आधारित है.
समान नागरिक संहिता के आने से ऐसे सभी पर्सनल लॉ के रद्द होने और एक ऐसा कानून के आने की संभावना है जो सभी नागरिकों के लिए समान हो. पर्सनल लॉ अक्सर परस्पर विरोधी होते हैं और सभी अदालतों और राज्यों में समान रूप से लागू नहीं होते हैं.
क्या राज्य सरकार Uniform Civil Code लागू कर सकती है?
लॉ एक्सपर्ट्स इस बात पर बंटे हुए हैं कि क्या किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता पर कानून लाने की शक्ति है. न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह का कानून लाने का अधिकार है क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं.
पीडीटी आचार्य ने कहा कि राज्य विधानसभा उस राज्य में रहने वाले लोगों के लिए कानून बना सकती है.
लेकिन पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पीके मल्होत्रा का मानना था कि केंद्र सरकार ही संसद में जाकर ऐसा कानून ला सकती है. पीके मल्होत्रा ने तर्क है कि चूंकि संविधान का अनुच्छेद 44 पूरे भारत के सभी नागरिकों के लिए बात करता है, इसलिए केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने के लिए सक्षम है.
अगर पुष्कर सिंह धामी की सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने में कामयाब होती है तब भी उत्तराखंड ऐसा करने वाला पहला राज्य नहीं होगा. गोवा में पहले से समान नागरिक संहिता लागू है. वास्तव में यह भारत का एकमात्र राज्य है जिसने अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू कर रखा है.
Uniform Civil Code पर क्या और क्यों होती है राजनीति?
समान नागरिक संहिता लागू करना लंबे समय से बीजेपी के एजेंडे में रहा है. यह 1998 के चुनावों के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भगवा पार्टी के प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक था. इसके अलावा बीजेपी के एजेंडे में संविधान से आर्टिकल 370 को निरस्त करना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शामिल था.
बीजेपी ने बाद के 2 मुद्दों पर तो बढ़त हासिल कर ली है लेकिन समान नागरिक संहिता लागू करने से पार्टी दूर है. बीजेपी ने 2019 के आम चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी UCC को लागू करने का वादा किया था.
दूसरी तरफ देश में इसका जमकर विरोध भी है. 2016 में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि "समान नागरिक संहिता केवल मुस्लिम समुदाय से जुड़ा मुद्दा नहीं है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर नागालैंड और मिजोरम द्वारा विरोध किया जाएगा.”
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी समान नागरिक संहिता लागू करने के राज्य सरकारों और केंद्र के प्रयासों को "एक असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी कदम" बताया है.
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