Atopic Eczema Day: एटोपिक एक्जिमा डे- इस बीमारी से जूझ रहे लोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने और इस दिशा में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. इस विषय में और अधिक रिसर्च करने, इससे जुड़े भ्रम को दूर करने और लोगों को सही जानकारी देकर छूआछूत खत्म करना जरूरी है.
क्या है एटोपिक एक्जिमा? क्या हैं एटोपिक एक्जिमा का कारण और ट्रिगर्स? जांच और इलाज के उपाय क्या हैं? एटोपिक एक्जिमा को ऐसे करें मैनेज? कैसे मिटाएं छूआछूत की भावना? बता रहे हैं एक्सपर्ट्स.
क्या है एटोपिक एक्जिमा?
"यह स्किन की एक बीमारी है, जिसमें स्किन रूखी हो जाती है और उसमें खुजली होती रहती है. यह डर्मेटाईटिस की श्रेणी में आती है और एटॉपिक बीमारियों का हिस्सा है, जिनमें अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटस भी शामिल हैं."डॉ. नवदीप कौर, सीनियर कंसलटेंट- डर्मेटोलॉजी एंड कॉस्मेटोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल, पटियाला
एटॉपिक डर्मेटाइटिस जिसे आमतौर पर एटॉमिक एक्जिमा भी कहते हैं, दुनियाभर में एक्जिमा के प्रमुख कारणों में से एक है. यह ऐसा क्रोनिक रोग है, जिसमें त्वचा में इंफ्लेमेशन के चलते लाल खुजलीदार चकत्ते उभरते हैं, जो शरीर के दूसरे भागों को भी प्रभावित कर सकते हैं और लगभग सभी उम्र के लोग इनसे प्रभावित होते हैं. हालांकि बच्चों में ये अधिक होते हैं.
"यह भारत में एलर्जी का सबसे आम कारण है, लेकिन भारतीय आबादी के बड़े हिस्से को इस रोग के बारे अधिक जानकारी नहीं होती और आम आबादी में इसे लेकर जागरूकता की भी काफी कमी है."डॉ. महिमा अग्रवाल, कंसलटेंट- डर्मेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली
दुनियाभर में लाखों लोग इससे पीड़ित हैं, खास कर बच्चे और युवा. इसमें त्वचा पर लाल, खुजली और जलन वाले चकत्ते पड़ जाते हैं. यह परेशान करने वाला और दर्द भरा होता है. इसे समझने के लिए इसके ट्रिगर्स को समझना जरूरी है.
"भारतीय वयस्कों में इसका प्रसार 2% से 8% तक है. भारत में इस बीमारी से ग्रसित लोगों की संख्या बढ़ रही है."डॉ. किरण वी. गोडसे, एमडी, पीएचडी, एफआरसीपी (ग्लास.)
इसके इलाज में कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है. इसमें सही तरीके से स्किन केयर, ट्रिगर्स को पहचानना और उनसे बचना और कुछ मामलों में दवा लेना भी जरूरी होता है.
"एलर्जी के कारकों, पर्यावरण से जुड़े फैक्टर और जेनेटिक कारणों से भी यह बीमारी हो सकती है. यह संक्रामक तो नहीं है, लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति के लाइफ की गुणवत्ता प्रभावित होती है. इससे नींद प्रभावित होती है और भावनात्मक दबाव पड़ता है."डॉ. मोनिका बम्ब्रू, हेड- डर्मेटोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुड़गांव
हर पांचवां बच्चा है शिकार
दुनियाभर में करीब 15 से 20% बच्चे और 1 से 3% वयस्क इससे पीड़ित हैं. अक्सर नवजात उम्र में ही इसकी शुरुआत हो जाती है और वयस्क होने तक इसके लक्षण बने रहते हैं. यह आमतौर पर बचपन में शुरू होता है, लेकिन यह बीमारी किसी को भी और किसी भी उम्र में हो सकती है.
कई लोगों को होने वाली, गैर-संचारी, पुरानी त्वचा की स्थिति के रूप में, एटोपिक डार्मेटाइटिसकी सूजन (एडी) को सभी गैर-घातक बीमारियों में 15वें स्थान पर रखा गया है. अस्थमा, हे फीवर या दूसरी एलर्जी की फैमिली हिस्ट्री वालों में इसका खतरा ज्यादा होता है.
"अनुमान है कि 2022 में लगभग 223 मिलियन लोग एटॉपिक डर्मेटाइटिस के साथ जी रहे होंगे. इनमें से लगभग 43 मिलियन लोग 1 से 4 वर्ष की आयु के बीच के होंगे. 20% तक बच्चे और 10% तक वयस्क 20 से 25 वर्ष के बीच के होंगे हैं."डॉ. अबिन अब्राहम इट्टी, कंसलटेंट- त्वचा विशेषज्ञ एंड एचओडी, वीपीएस लक्षेशोर अस्पताल, कोच्चि
वैसे तो इससे कोई भी पीड़ित हो सकता है, लेकिन विकसित देशों में इसके ज्यादा शिकार हैं. यह बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है और ज्यादातर मामलों में पांच साल से कम उम्र में ये डायग्नोस होता है.
पीडियाट्रिक हेल्थकेयर में इस बीमारी के प्रति अधिक जागरूकता की जरूरत है.
एटोपिक एक्जिमा का कारण और ट्रिगर्स
एटोपिक एक्जिमा का कारण जटिल है. इसमें जेनेटिक, पर्यावरणीय और इम्यून संबंधी कई फैक्टर शामिल होते हैं.
फैमिली हिस्ट्री होने पर इसके होने की आशंका ज्यादा रहती है.
इसी तरह धूल के कण, पालतू पशुओं के फर जैसे पर्यावरणीय कारण (environmental causes), साबुन, डिटर्जेंट जैसे इरिटेंट और तापमान में बदलाव और नमी जैसे कारक, साथ ही तनाव इसके लक्षणों को बढ़ा सकते हैं. इन ट्रिगर्स को पहचानने और इनसे बचने की जरूरत होती है.
"कई लोग अक्सर वर्तमान में उपलब्ध इलाज के विकल्पों के साथ अपनी बीमारी को कंट्रोल करने के लिए संघर्ष करते हैं. खुजली रोगियों के लिए सबसे अधिक परेशान करने वाले लक्षणों में से एक है."डॉ. शालिनी मेनन, कंट्री मेडिकल लीड, सनोफी (भारत)
जांच और इलाज के उपाय
एटोपिक एक्जिमा की जांच के लिए स्किन एक्सपर्ट यानी कि डर्मेटोलॉजिस्ट शारीरिक परीक्षण करते हैं और मेडिकल हिस्ट्री देखते हैं. इसके लिए किसी विशेष लैब टेस्ट की जरूरत नहीं होती. स्थिति की गंभीरता के हिसाब से इलाज के विकल्प आजमाए जाते हैं.
अलग-अलग देशों में एटोपिक एक्जिमा इलाज के तरीके अलग हैं.
"हालांकि वर्तमान में एटोपिक डर्मेटाइटिस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को कम करने के लिए कई तरीके मौजूद हैं, जिनमें स्टेरॉयड युक्त क्रीम, नमी देने वाले क्रीम और कुछ मामलों में, इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाएं शामिल हैं."डॉ. किरण वी. गोडसे, एमडी, पीएचडी, एफआरसीपी (ग्लास.)
मॉइश्चराइजर और त्वचा पर लगाने वाली क्रीम से लक्षणों को कंट्रोल किया जाता है. ज्यादा गंभीर स्थिति में ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड, इम्यून सप्रेसेंट या बायोलॉजिकल थेरेपी की जरूरत भी पड़ सकती है.
एटोपिक एक्जिमा को ऐसे करें मैनेज
"एटॉपिक डर्मेटाइटिस के मरीजों को प्रभावित स्किन को खुजलाने से बचना चाहिए और जल्दी एक्जिमा का इलाज शुरू करना चाहिए. साथ ही, उन्हें सही तापमान में रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्मी में रहने से पसीना आता है, जो खुजलाहट बढ़ा सकता है."डॉ. महिमा अग्रवाल, कंसलटेंट- डर्मेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली
एटोपिक एक्जिमा होने पर इन बातों का ध्यान रखते हुए मैनेज किया जा सकता है:
स्किन केयर: हल्का और बिना खुश्बू वाला क्लींजर और मॉइश्चराइजर प्रयोग करते हुए स्किन को हाइड्रेटेड रखें.
ट्रिगर्स से बचें: परेशानी बढ़ाने वाले ट्रिगर्स की पहचान करें और उनसे बचकर रहने की कोशिश करें.
गर्म पानी से न नहाएं: नहाने के लिए अधिक गर्म पानी का इस्तेमाल न करें क्योंकि उससे स्किन ड्राई होती है.
सही तरीके से स्किन ड्राई करें: स्किन को सुखाने के लिए रगड़ने की बजाय किसी नरम तौलिए से थपथपाएं ताकि स्किन की नमी बनी रहे.
सही कपड़े पहनें: नरम और सूती कपड़े पहनें. टाइट और रूखे कपड़े न पहनें.
तापमान और नमी का रखें ध्यान: घर में तापमान और नमी का स्तर सही रखें.
तनाव कम करें: ज्यादा तनाव से भी लक्षण बढ़ते हैं. ध्यान और योग के जरिए मन को शांत रखने और तनाव से दूर रहने का प्रयास करें.
खानपान पर दें ध्यान: कुछ लोगों को खानपान से भी आराम मिलता है. ऐसे खाने से बचें, जिनसे लक्षण ट्रिगर होते हैं और साथ ही नियमित फॉलो-अप करते रहें.
"कई बार स्विमिंग करने की वजह से भी एक्जिमा भड़क सकता है क्योंकि पानी में क्लोरीन की मौजूदगी बीमारी को बढ़ाती है, इसलिए स्विमिंग करने के तुरंत बाद साफ पानी से नहाएं और स्किन पर मॉयश्चराइजर जरुर लगाएं.डॉ. मोनिका बम्ब्रू, हेड- डर्मेटोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुड़गांव
छूआछूत की भावना से बचना जरूरी
"एटोपिक एक्जिमा से ग्रसित व्यक्ति को सामाजिक रूप से भेदभाव का सामना भी करना पड़ता है. यह सही नहीं है. यह समझना होगा कि एटोपिक एक्जिमा संक्रामक समस्या नहीं है. ग्रसित के साथ रहने से यह नहीं फैलती है. कई बार सोशल रिजेक्शन का भय भी मरीज को तनाव देता है."डॉ. महिमा अग्रवाल, कंसलटेंट- डर्मेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली
एटोपिक एक्जिमा के लक्षण त्वचा पर साफ नजर आते हैं. इसी कारण कई लोग इससे पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव करते हैं.
"कई बार रोग की वजह से नौकरी में भी परेशानी हो सकती है और सामाजिक रूप से शर्मिंदगी/भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, साथ ही, यह रोग उनके विवाह की संभावनाओं पर भी असर डाल सकता है क्योंकि इस रोग को संक्रामक समझा जा सकता है."डॉ. मोनिका बम्ब्रू, हेड- डर्मेटोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुड़गांव
एटॉपिक डर्मेटाइटिस से ग्रस्त बच्चों को स्कूलों में दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं और कई बार उन्हें अलग-थलग कर दिया जाता है, जिससे उनकी पढ़ाई पर भी असर पड़ता है.
त्वचा संबंधी रोग बच्चों और बड़ों का आत्मविश्वास घटाता है, मूड पर असर डालता है, उनका विश्वास डगमगा सकता है, चिंता और डिप्रेशन को भी बढ़ा सकता है.
इनसे बचने और इस संबंध में जागरूकता लाने की जरूरत है. लोगों को इसके इलाज और इससे बचाव के तरीकों के बारे में बताया जाना चाहिए.
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