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मुंबई में तेजी से बढ़ते COVID-19 के मामले, आगे और भी हैं चुनौतियां

महाराष्ट्र में COVID-19 के सबसे ज्यादा मामले घनी आबादी वाले मुंबई में हैं.

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भारत की वित्तीय राजधानी और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक, मुंबई में हर दिन कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

50 फीसदी से ज्यादा पॉजिटिव मामले शहर के उन वॉर्ड से हैं, जहां घनी आबादी है.

इस वायरस से निपटने के लिए सख्त लॉकडाउन को एक महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन फिर भी मुंबई में इस बीमारी की रफ्तार धीमी क्यों नहीं पड़ रही है, आगे क्या चुनौतियां हैं और उनसे निपटने के लिए कैसी तैयारी होनी चाहिए?
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महाराष्ट्र में COVID-19 के ज्यादा मामले सबसे ज्यादा घनी आबादी वाले मुंबई में हैं.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस महामारी में घनी आबादी और 50 फीसदी से ज्यादा आबादी का ऐसी बस्तियों में रहना, जहां उन्हें पानी से लेकर दूसरी जरूरी सुविधाओं का साझा इस्तेमाल करना पड़ता है, इससे हालात ज्यादा खराब हुए हैं.

मुंबई में किस तरह बढ़ते गए COVID-19 के केस, एक नजर

मुंबई में पहले पॉजिटिव केस के बारे में 11 मार्च को पता चला और करीब 25 दिनों बाद पॉजिटिव मामलों की संख्या 2 हजार के पार पहुंच गई. 16 अप्रैल को मुंबई में 2,043 मामले रिकॉर्ड किए गए. इसके सिर्फ 7 दिनों बाद मामले दोगुने हो गए, 23 अप्रैल को मुंबई में 4,232 केस आए. इसके आगे 9 दिनों बाद 2 मई को ये संख्या 8,172 पर पहुंच गई.

बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आंकड़े बताते हैं कि 25 अप्रैल तक, GS (वर्ली, प्रभादेवी, लोअर परेल), E (बायकुला), GN (धारावी स्लम, माहिम, दादर) KW (अंधेरी वेस्ट) और L (कुर्ला, चांदीवली, साकी नाका) जैसे वार्डों में सबसे अधिक मामले (करीब 50%) रिकॉर्ड किए गए.

सिर्फ धारावी में 4 मई को 632 मामले और 20 मौतें हुईं. करीब 10 लाख की आबादी वाले धारावी में पहला मामला अप्रैल की शुरुआत सामने आया था, अब ये गंभीर चिंता का विषय बन गया है. एशिया का सबसे बड़ा स्लम, जहां आबादी का घनत्व 2 लाख प्रति वर्ग किलोमीटर है, वहां लोग चाहकर भी सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन नहीं कर सकते हैं.

पतली गलियां, खुले सीवर, कॉमन शौचालय, तंग कमरे, एक कमरे में 5 से अधिक लोग, पानी के लिए लाइन लगाना ऐसे कुछ कारण हैं जिनकी वजह से इस क्षेत्र में कोरोना वायरस से जूझना किसी बुरे सपने से कम नहीं है.

इसके अलावा, धारावी एकमात्र समस्या नहीं है. जैसा कि बीएमसी के आंकड़ों से पता चलता है कि करीब आधे कन्टेन्मेंट जोन तंग क्षेत्र वाले हैं. इनमें बांद्रा स्लम पॉकेट, बहुत भीड़ वाला कुर्ला और दूसरे क्षेत्र शामिल हैं.

पिछले कुछ दिनों में, महाराष्ट्र सरकार इन क्षेत्रों में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और डोर टू डोर सर्विलांस कर रही है. कन्टैन्मेंट जोन में अपनाई जा रही ये नीति कितनी प्रभावी होगी, ये समय बीतने के साथ ही पता चल सकेगा. फिलहाल पॉजिटिव मामलों की तादाद बढ़ रही है. 30 अप्रैल को धारावी में 369 केस थे और चार दिनों में ही दोगुने हो गए.

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मुंबई में COVID-19 की टेस्टिंग

विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन के बाद की तैयारी के लिहाज से टेस्टिंग की ये संख्या पर्याप्त नहीं है.

फिट से बात करते हुए, सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (DDEP) के निदेशक प्रोफेसर रामानन लक्ष्मीनारायण ने कहा, "अगर हम ट्रांसमिशन घटाना चाहते हैं, तो रोजाना टेस्टिंग की संख्या बढ़ते मामलों के अनुसार बढ़ाई जानी चाहिए.”

उन्होंने ये भी कहा कि आज जो मामले आए हैं, वो दो हफ्ते पहले हुए ट्रांसमिशन के नतीजे हैं. इसलिए अगले दो हफ्तों में हमें लॉकडाउन का फायदा देखने को मिलेगा.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि मुंबई जैसे शहर के लिए एंटीबॉडी टेस्ट फायदेमंद होंगे, जहां कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग मुश्किल होती है.

एंटीबॉडी टेस्टिंग की कमी प्रोफेसर लक्ष्मीनारायण निराशाजनक बताते हैं क्योंकि यह एक ऐसा पैरामीटर है जो हमें बता सकता है कि बीमारी कितनी व्यापक रूप से फैल गई है और कितने लोगों में लक्षण नजर नहीं आए हैं.

वायरोलॉजिस्ट डॉ जैकब टी जॉन कहते हैं कि ये वक्त टेस्टिंग स्ट्रैटजी शिफ्ट करने का है.

15 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच पॉजिटिव केसों की संख्या में 200% बढ़ोतरी देखी गई और इसी समय में टेस्टिंग में सिर्फ 100% बढ़त हुई है.
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लॉकडाउन खोलने के लिए क्या होना चाहिए मुंबई का प्लान?

कोविड-19 के मामलों की बढ़ती संख्या के साथ मुंबई के लिए चीजें आसान नहीं दिखती हैं. एक्सपर्ट्स टेस्टिंग की बात दोहराते हैं और ये भी मानते हैं कि लॉकडाउन हमेशा के लिए जारी नहीं रह सकता है.

लॉकडाउन से निकलने के लिए मुंबई में एक बेहतर योजना की जरूरत है.

कई रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई में अभी भी पर्याप्त आईसीयू बेड नहीं हैं. अगर लॉकडाउन हटाया जाता है, तो शायद अस्पताल बेड, नर्स, एम्बुलेंस, सहित सभी आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ तैयार नहीं हैं.

लॉकडाउन के दौरान कितने बेड की व्यवस्था कर ली गई है, इसे लेकर कोई डेटा नहीं है.

मुंबई मिरर की एक रिपोर्ट में COVID-19 टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ संजय ओक के हवाले से कहा गया, "हमें निश्चित रूप से अधिक आईसीयू बेड की आवश्यकता है और अगले कुछ दिनों में 500 आईसीयू बेड तैयार करना है. हमें मरीजों के इलाज के लिए अधिक से अधिक डॉक्टरों और नर्सों की जरूरत है."

एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में महालक्ष्मी रेस कोर्स, नेहरू विज्ञान केंद्र, नेहरू तारामंडल, MMRDA ग्राउंड जैसी जगहों पर आइसोलेशन बेड की तैयारी हो रही है.

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फिट से बातचीत में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील कहते हैं कि हमें लोकल मॉडल तैयार करने की जरूरत है क्योंकि देश के हर हिस्से में आबादी की डेन्सिटी अलग है.

उन्होंने कहा, "लॉकडाउन जारी रखना है या हटाना है, ये लोकल डेटा और लोकल प्लानिंग पर निर्भर होना चाहिए. इसे दिल्ली से हेल्थ मिनिस्ट्री गाइड नहीं कर सकती है."

डॉ जॉन कहते हैं, "सरकार को 100% मास्क की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए. यह लॉकडाउन की तरह अच्छा है. कई जगहों पर पानी की कमी है, ऐसे में एल्कोहल बेस्ड हैंड सैनिटाइजर उपलब्ध कराना चाहिए. ये बेसिक जरूरत है."

लॉकडाउन के बाद के लिए हर गली, हर दुकान और हर घर में ये जरूरी चीजें होनी चाहिए.

कस्तूरबा हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट और महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (MGIMS) में डायरेक्टर प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन डॉ एस.पी कलंत्री कहते हैं,

महाराष्ट्र में लगभग 12,000 आईसीयू बेड हैं, जिनमें से केवल 25% पब्लिक सेक्टर में हैं. 6,000 वेंटिलेटर हैं, लेकिन उनमें से केवल 2,500 पब्लिक सेक्टर में हैं, इसलिए ऐसा होना चाहिए कि सरकार प्राइवेट सेक्टर का पूरी तरह से उपयोग कर सके.

वो मध्य मई से महाराष्ट्र में और अधिक मामलों की चेतावनी पर कहते हैं कि इससे सरकार का फोकस थोड़ा शिफ्ट होगा, जो पहले से ही उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जो रेड जोन में हैं. सरकार के लिए तब राज्य में संसाधनों का आवंटन करने में मुश्किल आएगी."

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वह मानक प्रक्रिया पर भी जोर देते हैं: ट्रेस, टेस्ट, आइसोलेट और क्वॉरन्टीन.

उन्होंने आगे चिंता जताई कि मानसून के मौसम में मलेरिया, लेप्टोस्पायरोसिस, स्क्रब टाइफस और चिकनगुनिया के मामले बढ़ेंगे और आईसीयू, वेंटिलेटर की उपलब्धता हेल्थकेयर सिस्टम के लिए एक चुनौती होगी.

यह स्पष्ट नहीं है कि मुंबई के अधिकारियों ने इन आगामी चुनौतियों पर ध्यान दिया है या नहीं.

डॉ कलंत्री ने कहा, "सरकार COVID-19 रोगियों के लिए शहर में बड़े क्षेत्रों, स्टेडियमों का उपयोग करना चाह सकती है, लेकिन यहां वास्तविक समस्याएं हैं. जल्द ही मानसून शुरू होगा और यह मुश्किल होगा, इसलिए हम नहीं जानते कि अगर हम धारावी जैसे जगहों पर सभी की स्क्रीनिंग करते हैं, तो उन्हें आइसोलेट कैसे करेंगे? यह एक बहुत मुश्किल काम होगा."

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