महाराष्ट्र सरकार ने अब प्रवासी मजदूरों को एक बड़ी राहत देने का ऐलान किया है. सरकार ने कहा है कि अब प्रवासी मजदूरों को डॉक्टर से कोई सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है. रेलवे स्टेशन पर ही उनकी स्क्रीनिंग होगी. इससे पहले महाराष्ट्र में कई क्लीनिक के बाहर मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए मजदूरों की लंबी कतारें देखी गईं थीं, वहीं मजदूरों से इस सर्टिफिकेट के पैसे भी वसूले जा रहे थे.
क्विंट ने भी मजदूरों की दशा को उठाया था और बताया था कि कैसे मजदूर अपने मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए पहले पसीना बहा रहे हैं और फिर पैसे भी चुका रहे हैं. मीडिया में ऐसी खबरें आने के बाद महाराष्ट्र सरकार की जमकर फजीहत हुई. जिसके बाद अब इस फैसले को वापस लिया गया है. सरकार की तरफ से जारी नए सर्कुलर के मुताबिक,
“अब प्रवासी मजदूरों को डॉक्टर के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. उन्हें रेलवे स्टेशन पर खुद की जांच करानी होगी. ये जांच डिजिटल थर्मामीटर से होगी. अगर कोई लक्षण पाए जाते हैं तो भी इसकी जांच मुफ्त में की जाएगी.”
मजदूरों को क्या हो रही थी परेशानी?
कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को पहले तो अपने फॉर्म का जुगाड़ करना पड़ रहा था. फॉर्म न मिलने पर उन्हें मजबूरी में फोटोकॉपी से काम चलाना पड़ रहा था, लेकिन फोटोकॉपी की दुकानें बंद होने से उनसे लोग इसका 10 रुपये से 5 रुपये तक चार्ज कर रहे थे. इसके बाद उन्हें मेडिकल सर्टिफिकेट लेने के लिए घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता था. मुंबई के कांदीवली इलाके में डॉक्टरों से सर्टिफिकेट लेने के लिए मजदूरों से 100 रुपये वसूले जाने की बात सामने आई थी.
क्विंट ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि डॉक्टर सभी मजदूरों का टेस्ट भी नहीं कर रहे हैं. ग्रुप का लीडर को बाकी सभी लोगों का सर्टिफिकेट डॉक्टर बिना चेकअप के ही पैसे लेकर दे रहे हैं.
बता दें कि बीएमसी ने अपने सर्कुलर में कहा था कि मेडिकल सर्टिफिकेट निजी अस्पताल से भी लिया जा सकता है. जिसमें डॉक्टर इसकी जांच करेगा कि कोई लक्षण तो नहीं हैं. मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाने के बाद ही प्रवासी मजदूरों को घर जाने दिया जा रहा था.
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