Endometriosis: पिछले कुछ वर्षों में समाज में हर स्तर में व्यापक बदलाव आया है. अब समाज में मासिक धर्म यानी पीरियड्स के बारे में भी बात करने को लेकर लोगों की धारणा में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अब महिलाएं दोस्तों और परिवार के बीच पीरियड्स को लेकर किसी बात पर डिस्कस करने में झिझकती नहीं हैं. हालांकि अभी भी पीरियड्स के दौरान होने वाले बहुत तेज दर्द को महिलाएं सामान्य ही मानती हैं. कई बार वे इस बात की अनदेखी कर देती हैं कि उनका दर्द किसी ऐसी परेशानी की वजह से भी हो सकता है, जिसके बारे चिंतित होने और उसका पर्याप्त उपचार करने की जरूरत हो सकती है.
सही समय पर शिक्षित करना जरूरी
महिलाओं में दर्द को चुपचाप सहने की एक प्रवृत्ति होती है. दुनियाभर में कई स्टडीज में यह सामने आया है कि लगभग हर जगह महिलाएं ऐसा मानती हैं कि पीरियड्स के दौरान बहुत तेज दर्द होना या बहुत ज्यादा ब्लड फ्लो होना एक सामान्य बात है. हालांकि यह सोच सही नहीं हैं. हो सकता है कि ऐसा होना सामान्य न हो और यह एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis) जैसी किसी गंभीर परेशानी का संकेत हो. इसके बारे में किसी गायनेकोलॉजिस्ट यानी स्त्री रोग विशेषज्ञ से बात की जानी चाहिए.
किशोरियों और उनकी माताओं को एंडोमेट्रियोसिस और इसके लक्षणों के बारे में छोटी से छोटी जानकारी होनी आवश्यक है. ऐसा होने से ही इस समस्या को समय पर पहचानना और इसका उचित उपचार करना संभव हो सकता है.
एंडोमेट्रियोसिस के लक्षणों को पहचानना सीखें
किशोरियों और महिलाओं को ऐसे लक्षणों को पहचानने के बारे में सिखाया जाना चाहिए, जिनके लिए किसी डॉक्टर से मिलने की जरूरत हो सकती है. ऐसा करने का एक तरीका यह है कि स्कूल में फीमेल टीचर को प्रशिक्षित करने के लिए कार्यक्रम तैयार किए जाएं, जिससे वे पीरियड्स के दौरान दर्द और इससे जुड़ी एंडोमेट्रियोसिस जैसी समस्याओं पर चर्चा के लिए वर्कशॉप और सेशन आयोजित कर सकें.
हर किशोरी को पीरियड्स के दौरान उसके शरीर के लक्षणों पर ध्यान देने के बारे में समझाया जाना चाहिए, खास कर दर्द और ब्लड फ्लो से जुड़े लक्षणों के बारे में.
माता-पिता को यह जानना चाहिए कि अगर उनकी बेटी पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा दर्द होने की शिकायत करती है, तो उन्हें स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए, क्योंकि यह एंडोमेट्रियोसिस का शुरुआती लक्षण हो सकता है.
उन्हें पता होना चाहिए कि यह परेशानी पहले पीरियड्स से लेकर पीरियड्स शुरू होने के कई साल बाद और मेनोपॉज होने तक कभी भी हो सकती है. यहां तक कि कुछ मामलों में मेनोपॉज के बाद भी इसके होने की आशंका रहती है. इसलिए वयस्क महिलाओं को भी इसके बारे में समझाया जाना उतना ही जरूरी है.
माहवारी के दौरान होने वाले दर्द का अचानक बहुत बढ़ जाना या ब्लड फ्लो में बदलाव की स्थिति में जांच कराने की जरूरत हो सकती है और महिलाओं को इसे लेकर जागरूक किया जाना चाहिए. महिलाओं को एंडोमेट्रियोसिस के दूसरे लक्षणों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए. जैसे कुछ लक्षण ये हैं:
पेल्विक पेन
पीरियड्स के दौरान बहुत तेज दर्द
शारीरिक संबंध बनाते समय दर्द
इनफर्टिलिटी
समय पर और सही जांच जरूरी
एंडोमेट्रियोसिस को एक 'मिस्ड डिसीज' भी कहा जाता है, यानी एक ऐसी बीमारी, जिस पर ध्यान ही न जाए. इसे ऐसा इसलिए कहते हैं, क्योंकि बड़े पैमाने पर महिलाएं इसकी अनदेखी कर देती हैं और इसकी सही जांच नहीं हो पाती है या फिर इसे चिकित्सकीय रूप से उतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है.
जांच में एंडोमेट्रियोसिस के पकड़ में आने में औसतन 8 से 12 साल तक का समय लग जाता है.
भारत में करीब 4.2 करोड़ महिलाओं में यह समस्या है. यह संख्या लगभग उतनी ही है, जितनी महिलाएं भारत में डायबिटीज का शिकार हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बाद भी एंडोमेट्रियोसिस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. यह समस्या केवल शारीरिक मुश्किलें ही नहीं पैदा करती है, बल्कि इससे मानसिक और भावनात्मक तकलीफ भी होती है. कई स्टडीज में सामने आया है कि एंडोमेट्रियोसिस से महिलाओं के व्यक्तिगत संबंधों और मानसिक स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ सकता है.
हाल के अध्ययनों में एंडोमेट्रियोसिस का संबंध दिल की बीमारियों और स्ट्रोक का खतरा बढ़ने से भी पाया गया है। अगर समय पर यह बीमारी पकड़ में आ जाए तो इन खतरों को कम किया जा सकता है। इस दिशा में सफल होने के लिए जरूरी है कि किशोरियां, माताएं, अध्यापिकाएं और चिकित्सक सब इसे लेकर समान रूप से सतर्क रहें।
समय पर विशेषज्ञ से करें संपर्क
ज्यादातर मामलों में जब बेटी को या खुद को अनियमित पीरियड्स जैसी समस्या होती है, तो माताएं और दूसरी महिलाएं जनरल प्रैक्टिशनर या अपने फैमिली डॉक्टर के पास ही जाती हैं. वैसे तो एंडोमेट्रियोसिस की जांच में इन डॉक्टरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन समय पर किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना भी जरूरी होता है, जिससे सही समय पर सही इलाज शुरू किया जा सके.
फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं की ओर से जनरल फिजिशियन और गायनेकोलॉजिस्ट के लिए आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम उन्हें एंडोमेट्रियोसिस जैसी बीमारियों को बेहतर तरीके से समझने और मरीजों को सही इलाज के बारे में दिशानिर्देश देने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
यह परेशानी होने की स्थिति में कई चिकित्सकीय विकल्प उपलब्ध हैं, जिनसे दर्द से राहत मिलती है और दूसरे लक्षण भी ठीक होते हैं. वैसे तो इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन थेरेपी के जरिये एंडोमेट्रियोसिस के लक्षणों और जटिलताओं को काफी हद तक मैनेज किया जा सकता है, जिससे हर महीने होने वाली परेशानी से बचाव संभव है.
प्रभावी थेरेपी के लिए जरूरी है कि इलाज की शुरुआत समय पर कर दी जाए.
ऐसा तभी संभव है, जब शुरुआत में ही डॉक्टर से सलाह ली जाए. गायनेकोलॉजिस्ट को भी एंडोमेट्रियोसिस के इलाज के क्षेत्र में हो रहे नए शोध को लेकर जागरूक रहना चाहिए.
मेनस्ट्रीम मीडिया ने अपने डिस्कशन में खुलकर और स्पष्ट तरीके से बात करते हुए पीरियड को लेकर बनी झिझक को तोड़ने में बहुत मदद की है. अब समय आ गया है कि हम इस तरह की 'मिस्ड डिसीज' को पहचानने और प्रभावी तरीके से इनसे निपटने की दिशा में जागरूकता और समझ लाने के अपने प्रयासों को गति दें. इस बारे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि एंडोमेट्रियोसिस के इलाज के लिए हिस्टेरेक्टॉमीज यानी ऑपरेशन करके गर्भाशय को हटाना आखिरी विकल्प है और कुछ महिलाओं में ही ऐसा करने की जरूरत होती है. समय पर जांच हो जाए और थेरेपी शुरू कर दी जाए तो लाखों महिलाओं को जटिलताओं से बचाया जा सकता है और उनकी तकलीफ को कम किया जा सकता है.
(ये आर्टिकल बेयर फार्मा के कंट्री मेडिकल डायरेक्टर- डॉ. आशीष गावड़े ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)
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