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World IVF Day 2023: आईवीएफ से जुड़ीं परेशानियों से कैसे बचें? एक्सपर्ट्स की राय

IVF आमतौर पर सुरक्षित मेडिकल प्रोसीजर माना जाता है, हालांकि किसी भी दूसरे इलाज की तरह, इससे कुछ खतरे जुड़े हैं.

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World IVF Day 2023: हर साल 25 जुलाई को वर्ल्ड आईवीएफ डे मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश है लोगों में जागरूकता फैलाना और आईवीएफ से जुड़ी सही जानकारियां जरूरतमंदों पहुंचाना. दुनिया भर में इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में आईवीएफ बच्चे की चाह रखने वाले जोड़ों के लिए उम्मीद की किरण है.

क्या आईवीएफ (IVF) सेहत के लिए खतरनाक है? आईवीएफ किसे नहीं करवाना चाहिए? क्या आईवीएफ से शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है? आईवीएफ से जुड़ी परेशानियों से कैसे बचें? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की और जानें इन सवालों के जवाब.

World IVF Day 2023: आईवीएफ से जुड़ीं परेशानियों से कैसे बचें? एक्सपर्ट्स की राय

  1. 1. क्या आईवीएफ (IVF) सेहत के लिए खतरनाक है?

    एक्सपर्ट्स की मानें तो आईवीएफ या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को आमतौर पर सुरक्षित मेडिकल प्रोसीजर माना जाता है, हालांकि किसी भी दूसरे इलाज की तरह, इससे कुछ खतरे जुड़े हैं. पिछले कुछ सालों में, टैक्‍नोलॉजी में सुधार, बेहतर प्रोटोकॉल्‍स और फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट की काबिलियत के चलते आईवीएफ की सुरक्षा बढ़ी है.

    "इस प्रक्रिया के साथ एक जोखिम ओवेरियन हाइपरस्टिमुलेशन सिंड्रोम (OHSS) जुड़ा है, जो कि फर्टिलिटी दवाओं के चलते ओवेरीज में ओवररिस्‍पॉन्‍स के कारण होता है. लेकिन सावधानीपूर्वक मॉनीटरिंग और दवाओं की खुराक को एडजस्‍ट कर OHSS का खतरा काफी कम किया जा सकता है."
    डॉ. गरिमा साहनी, सीनियर गाइनीकोलॉजिस्‍ट एंड को-फाउंडर, प्रिस्‍टीन केयर

    इसके अलावा, मल्‍टीपल प्रेगनेंसी की आशंका भी बढ़ जाती है, जिसके साथ दूसरे कई जोखिम जुड़े हैं लेकिन इसे भी सीमित भ्रूणों को ट्रांसफर कर कंट्रोल किया जा सकता है.

    वहीं शालीमार बाग के फोर्टिस हॉस्पिटल में इंफर्टिलिटी मेडिसिन की सीनियर कंसलटेंट, डॉ. निंफिया वालेचा कहती हैं कि आईवीएफ अपने आप में हेल्थ के लिए खतरनाक प्रक्रिया नहीं है, लेकिन हर मेडिकल हस्‍तक्षेप के साथ कुछ न कुछ जोखिम तो जुड़ा ही होता है. जैसे सांस फूलना, मितली या उल्टी की शिकायत, चक्कर आना, पेट दर्द, हार्मोनल कारणों से शरीर में वॉटर रिटेंशन ब्‍लोटिंग बढ़ने से वजन बढ़ने जैसी समस्‍याएं हो सकती हैं.

    डॉ. निंफिया वालेचा इसके अलावा कुछ दूसरे जोखिम की बात करती हैं जो खतरनाक साबित हो सकते हैं.

    • कई बार ऍग रिट्रिवल (डिंब निकालना) की प्रक्रिया में भी जोखिम हो सकता है और इसके कारण ब्लीडिंग और इन्फेक्शन बढ़ सकता है, आंतों या ब्लेडर को भी क्षति पहुंच सकती है, हालांकि यह काफी दुर्लभ होता है. 

    • आईवीएफ से मल्‍टीपल प्रेगनेंसी की आशंका ज्‍यादा होती है, जो प्रीमैच्‍योर डिलीवरी और लो बर्थ वेट जैसी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. 

    "ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (एसएसएस) से जुड़ी गलतफहमियों ने आशंका पैदा की है. हालांकि, सावधानीपूर्वक दिए गए जा रहे मेडिकल गाइडेंस और आईवीएफ टेक्‍नोलॉजी की लगातार प्रगति ने बीते वर्षों में आईवीएफ उपचारों की सुरक्षा और सफलता की दर में महत्‍वपूर्ण ढंग से सुधार किया है."
    डॉ. पारुल गुप्‍ता- नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, गुरुग्राम में इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट
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  2. 2. आईवीएफ किसे नहीं करवाना चाहिए?

    इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) इलाज का एक बेहद प्रभावी विकल्‍प है, लेकिन हो सकता है कि यह सब पर कारगर न हो. कुछ चिकित्‍सकीय स्थितियों वाले लोगों या जोड़ों को इस इलाज से परेशानी हो सकती है. 

    "आईवीएफ ऐसी महिलाएं नहीं करवा सकती हैं, जिनकी हेल्थ कंडीशन से ऐसे संकेत मिले हों कि यह प्रक्रिया उनके लिए खतरनाक हो सकती है, जिसकी वजह से उन्हें गर्भधारण नहीं करना चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में आईवीएफ भी सफल नहीं हो सकता."
    डॉ. निंफिया वालेचा, सीनियर कंसल्‍टैंट, इंफर्टिलिटी मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग

    इसके कारणों में, रिप्रोडक्टिव ऑर्गेन्‍स का कोई भी ऐसा रोग जिसकी वजह से भ्रूण का गर्भाशय की दीवार पर खुद को बनाना और गर्भधारण करना असंभव होता है. इसके अलावा हृदय, गुर्दे या जिगर के गंभीर रोगों के कारण भी प्रसव जोखिम भरा हो सकता है. ओवरीज (डिंबग्रंथि) और गर्भाशय (यूटरस) में कैंसर का खतरा होने पर आईवीएफ नहीं कराया जा सकता. 

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  3. 3. क्या आईवीएफ से शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है?

    इस सवाल के जवाब में डॉ. निंफिया वालेचा ने फिट हिंदी को बताया,

    "यह कहना सही नहीं होगा कि आईवीएफ शिशुओं में जन्मजात विकारों के पनपने का जोखिम अधिक होता है. इसकी आशंका सिर्फ 2-3% होती है, जो कि सामान्य गर्भधारण से जन्में शिशुओं के ही समान है."

    एक्सपर्ट्स के अनुसार, आईवीएफ का बच्चे की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं होता है और यह बात साबित हो चुकी है. इस प्रोसेस के माध्यम से अनगिनत बच्चों का जन्म सफलतापूर्वक हुआ है और छोटी और लंबी दोनों अवधि में उनका हेल्थ पूरी तरह से अच्छा रहा है.

    "आईवीएफ से होने वाले बच्‍चों और प्राकृतिक रूप से होने वाले बच्‍चों के बीच अंतर केवल एक ही है- और वह है गर्भधारण करने (कॉन्‍सेप्‍शन) की विधि."
    डॉ. सुचित्रा रेड्डी, इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एंड गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहूड फर्टिलिटी एंंड आईवीएफ, सरजापुर, बेंगलुरू 

    गहरी रिसर्च और आईवीएफ के सफल केसेस ने लगातार यह संकेत दिया है कि आईवीएफ की मदद से जन्में बच्चों में प्राकृतिक रूप से होने वाले बच्चों की तुलना में फिजिकल हेल्थ, इंटेलिजेंस और इमोशनल हेल्थ में कोई बड़ा अंतर नहीं दिखता है.

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  4. 4. आईवीएफ से जुड़ी परेशानियों से कैसे बचें?

    बच्चे की चाह रखने वाले जोड़े को अपना इलाज कर रही टीम से सवाल पूछकर और सही जानकारी मांगकर खुलकर बातचीत करनी चाहिये ताकि वे इलाज के तरीके को पूरी तरह समझ सकें. संभावित जोखिमों और फायदों पर अच्छी तरह से जानकार रहकर वे समझदारी से फैसले कर सकते हैं और अपनी देखभाल करने में हिस्सा ले सकते हैं.

    "फर्टिलिटी के उपचारों में होने वाले जोखिमों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिये पूरी जानकारी के साथ एक प्रोएक्टिव नजरिया अपनाने की जरूरत होती है. प्रक्रिया कैसे काम करती है, संभावित जोखिम क्या हैं और बांझपन का इलाज क्या आपके लिये सही है, यह समझने के लिये आईवीएफ विशेषज्ञ से सलाह लेना महत्वपूर्ण है."
    डॉ. सुचित्रा रेड्डी, इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एंड गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहूड फर्टिलिटी एंंड आईवीएफ, सरजापुर, बेंगलुरू 

    अनुभवी स्पेशलिस्ट और अच्छी साख वाले फर्टिलिटी क्‍लीनिक को चुनना भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे सही मार्गदर्शन के साथ-साथ पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज को सपोर्ट भी देते हैं. मरीजों को इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े संभावित जोखिमों और फायदों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए, साथ ही, उनके सवालों के जवाब देने के अलावा उनकी चिंताओं/सरोकारों को भी हेल्थ केयर टीम के साथ साझा किया जाना चाहिए.

    "आईवीएफ इलाज के दौरान, अपने हेल्थ केयर पर ध्यान देना बेहद जरुरी होता है. जिसमें समय पर दवाएं लेना, एपॉन्‍टमेंट के मुताबिक क्‍लीनिक/स्पेशलिस्ट के पास जाना, किसी भी तरह का साइड इफेक्‍ट या दूसरी कोई चिंताजनक स्थिति होने पर तुरंत स्पेशलिस्ट को इस बारे में बताना जरूरी है. फर्टिलिटी क्‍लीनिक द्वारा बताए गए प्रोटोकॉल्‍स और दूसरे गाइडेंस का पालन करने पर जोखिमों को कम कर सफलता के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलती है."
    डॉ. गरिमा साहनी, सीनियर गाइनीकोलॉजिस्‍ट एंड को-फाउंडर, प्रिस्‍टीन केयर

    इसके अलावा, पार्टनर, परिवार और दोस्‍तों से इमोशनल सपोर्ट मिलने से भी स्थिति में काफी सुधार होता है. आईवीएफ दरअसल, इलाज कराने वाले व्‍यक्तियों/दंपत्तियों के लिए इमोशनल उतार-चढ़ाव की तरह होता है, और ऐसे में कोई इमोशनल सपोर्ट देने वाला साथ हो तो यह सफर आसान हो जाता है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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क्या आईवीएफ (IVF) सेहत के लिए खतरनाक है?

एक्सपर्ट्स की मानें तो आईवीएफ या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को आमतौर पर सुरक्षित मेडिकल प्रोसीजर माना जाता है, हालांकि किसी भी दूसरे इलाज की तरह, इससे कुछ खतरे जुड़े हैं. पिछले कुछ सालों में, टैक्‍नोलॉजी में सुधार, बेहतर प्रोटोकॉल्‍स और फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट की काबिलियत के चलते आईवीएफ की सुरक्षा बढ़ी है.

"इस प्रक्रिया के साथ एक जोखिम ओवेरियन हाइपरस्टिमुलेशन सिंड्रोम (OHSS) जुड़ा है, जो कि फर्टिलिटी दवाओं के चलते ओवेरीज में ओवररिस्‍पॉन्‍स के कारण होता है. लेकिन सावधानीपूर्वक मॉनीटरिंग और दवाओं की खुराक को एडजस्‍ट कर OHSS का खतरा काफी कम किया जा सकता है."
डॉ. गरिमा साहनी, सीनियर गाइनीकोलॉजिस्‍ट एंड को-फाउंडर, प्रिस्‍टीन केयर

इसके अलावा, मल्‍टीपल प्रेगनेंसी की आशंका भी बढ़ जाती है, जिसके साथ दूसरे कई जोखिम जुड़े हैं लेकिन इसे भी सीमित भ्रूणों को ट्रांसफर कर कंट्रोल किया जा सकता है.

वहीं शालीमार बाग के फोर्टिस हॉस्पिटल में इंफर्टिलिटी मेडिसिन की सीनियर कंसलटेंट, डॉ. निंफिया वालेचा कहती हैं कि आईवीएफ अपने आप में हेल्थ के लिए खतरनाक प्रक्रिया नहीं है, लेकिन हर मेडिकल हस्‍तक्षेप के साथ कुछ न कुछ जोखिम तो जुड़ा ही होता है. जैसे सांस फूलना, मितली या उल्टी की शिकायत, चक्कर आना, पेट दर्द, हार्मोनल कारणों से शरीर में वॉटर रिटेंशन ब्‍लोटिंग बढ़ने से वजन बढ़ने जैसी समस्‍याएं हो सकती हैं.

डॉ. निंफिया वालेचा इसके अलावा कुछ दूसरे जोखिम की बात करती हैं जो खतरनाक साबित हो सकते हैं.

  • कई बार ऍग रिट्रिवल (डिंब निकालना) की प्रक्रिया में भी जोखिम हो सकता है और इसके कारण ब्लीडिंग और इन्फेक्शन बढ़ सकता है, आंतों या ब्लेडर को भी क्षति पहुंच सकती है, हालांकि यह काफी दुर्लभ होता है. 

  • आईवीएफ से मल्‍टीपल प्रेगनेंसी की आशंका ज्‍यादा होती है, जो प्रीमैच्‍योर डिलीवरी और लो बर्थ वेट जैसी समस्याओं का कारण भी बन सकता है. 

"ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (एसएसएस) से जुड़ी गलतफहमियों ने आशंका पैदा की है. हालांकि, सावधानीपूर्वक दिए गए जा रहे मेडिकल गाइडेंस और आईवीएफ टेक्‍नोलॉजी की लगातार प्रगति ने बीते वर्षों में आईवीएफ उपचारों की सुरक्षा और सफलता की दर में महत्‍वपूर्ण ढंग से सुधार किया है."
डॉ. पारुल गुप्‍ता- नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, गुरुग्राम में इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट
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आईवीएफ किसे नहीं करवाना चाहिए?

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) इलाज का एक बेहद प्रभावी विकल्‍प है, लेकिन हो सकता है कि यह सब पर कारगर न हो. कुछ चिकित्‍सकीय स्थितियों वाले लोगों या जोड़ों को इस इलाज से परेशानी हो सकती है. 

"आईवीएफ ऐसी महिलाएं नहीं करवा सकती हैं, जिनकी हेल्थ कंडीशन से ऐसे संकेत मिले हों कि यह प्रक्रिया उनके लिए खतरनाक हो सकती है, जिसकी वजह से उन्हें गर्भधारण नहीं करना चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में आईवीएफ भी सफल नहीं हो सकता."
डॉ. निंफिया वालेचा, सीनियर कंसल्‍टैंट, इंफर्टिलिटी मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग

इसके कारणों में, रिप्रोडक्टिव ऑर्गेन्‍स का कोई भी ऐसा रोग जिसकी वजह से भ्रूण का गर्भाशय की दीवार पर खुद को बनाना और गर्भधारण करना असंभव होता है. इसके अलावा हृदय, गुर्दे या जिगर के गंभीर रोगों के कारण भी प्रसव जोखिम भरा हो सकता है. ओवरीज (डिंबग्रंथि) और गर्भाशय (यूटरस) में कैंसर का खतरा होने पर आईवीएफ नहीं कराया जा सकता. 

क्या आईवीएफ से शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है?

इस सवाल के जवाब में डॉ. निंफिया वालेचा ने फिट हिंदी को बताया,

"यह कहना सही नहीं होगा कि आईवीएफ शिशुओं में जन्मजात विकारों के पनपने का जोखिम अधिक होता है. इसकी आशंका सिर्फ 2-3% होती है, जो कि सामान्य गर्भधारण से जन्में शिशुओं के ही समान है."

एक्सपर्ट्स के अनुसार, आईवीएफ का बच्चे की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं होता है और यह बात साबित हो चुकी है. इस प्रोसेस के माध्यम से अनगिनत बच्चों का जन्म सफलतापूर्वक हुआ है और छोटी और लंबी दोनों अवधि में उनका हेल्थ पूरी तरह से अच्छा रहा है.

"आईवीएफ से होने वाले बच्‍चों और प्राकृतिक रूप से होने वाले बच्‍चों के बीच अंतर केवल एक ही है- और वह है गर्भधारण करने (कॉन्‍सेप्‍शन) की विधि."
डॉ. सुचित्रा रेड्डी, इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एंड गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहूड फर्टिलिटी एंंड आईवीएफ, सरजापुर, बेंगलुरू 

गहरी रिसर्च और आईवीएफ के सफल केसेस ने लगातार यह संकेत दिया है कि आईवीएफ की मदद से जन्में बच्चों में प्राकृतिक रूप से होने वाले बच्चों की तुलना में फिजिकल हेल्थ, इंटेलिजेंस और इमोशनल हेल्थ में कोई बड़ा अंतर नहीं दिखता है.

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आईवीएफ से जुड़ी परेशानियों से कैसे बचें?

बच्चे की चाह रखने वाले जोड़े को अपना इलाज कर रही टीम से सवाल पूछकर और सही जानकारी मांगकर खुलकर बातचीत करनी चाहिये ताकि वे इलाज के तरीके को पूरी तरह समझ सकें. संभावित जोखिमों और फायदों पर अच्छी तरह से जानकार रहकर वे समझदारी से फैसले कर सकते हैं और अपनी देखभाल करने में हिस्सा ले सकते हैं.

"फर्टिलिटी के उपचारों में होने वाले जोखिमों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिये पूरी जानकारी के साथ एक प्रोएक्टिव नजरिया अपनाने की जरूरत होती है. प्रक्रिया कैसे काम करती है, संभावित जोखिम क्या हैं और बांझपन का इलाज क्या आपके लिये सही है, यह समझने के लिये आईवीएफ विशेषज्ञ से सलाह लेना महत्वपूर्ण है."
डॉ. सुचित्रा रेड्डी, इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एंड गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहूड फर्टिलिटी एंंड आईवीएफ, सरजापुर, बेंगलुरू 

अनुभवी स्पेशलिस्ट और अच्छी साख वाले फर्टिलिटी क्‍लीनिक को चुनना भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे सही मार्गदर्शन के साथ-साथ पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज को सपोर्ट भी देते हैं. मरीजों को इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े संभावित जोखिमों और फायदों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए, साथ ही, उनके सवालों के जवाब देने के अलावा उनकी चिंताओं/सरोकारों को भी हेल्थ केयर टीम के साथ साझा किया जाना चाहिए.

"आईवीएफ इलाज के दौरान, अपने हेल्थ केयर पर ध्यान देना बेहद जरुरी होता है. जिसमें समय पर दवाएं लेना, एपॉन्‍टमेंट के मुताबिक क्‍लीनिक/स्पेशलिस्ट के पास जाना, किसी भी तरह का साइड इफेक्‍ट या दूसरी कोई चिंताजनक स्थिति होने पर तुरंत स्पेशलिस्ट को इस बारे में बताना जरूरी है. फर्टिलिटी क्‍लीनिक द्वारा बताए गए प्रोटोकॉल्‍स और दूसरे गाइडेंस का पालन करने पर जोखिमों को कम कर सफलता के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलती है."
डॉ. गरिमा साहनी, सीनियर गाइनीकोलॉजिस्‍ट एंड को-फाउंडर, प्रिस्‍टीन केयर

इसके अलावा, पार्टनर, परिवार और दोस्‍तों से इमोशनल सपोर्ट मिलने से भी स्थिति में काफी सुधार होता है. आईवीएफ दरअसल, इलाज कराने वाले व्‍यक्तियों/दंपत्तियों के लिए इमोशनल उतार-चढ़ाव की तरह होता है, और ऐसे में कोई इमोशनल सपोर्ट देने वाला साथ हो तो यह सफर आसान हो जाता है.

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