पतंजलि (Patanjali) के सह-संस्थापक बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर उन्हें अदालत के समक्ष पेश होने को कहा है. कोर्ट ने यह आदेश पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर जारी अवमानना नोटिस का जवाब नहीं देने के लिए जारी किया है.
27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम फैसला सुनाते हुए कहा था कि पतंजलि ने नवंबर 2023 में भ्रामक विज्ञापनों के रोक पर कोर्ट को दिए अपने अंडरटेकिंग का उल्लंघन किया है और अपने प्रोडक्ट के प्रचार को भ्रामक दावों के साथ जारी रखा.
भ्रामक विज्ञापनों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही क्यों शुरू नहीं करनी चाहिए, बाबा रामदेश से इसका कारण बताने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को आदेश दिया था कि वह अपने प्रोडक्ट के ऐसे ब्रांडिंग और विज्ञापन पर तुरंत रोक लगाए, जिसमें दवाओं द्वारा सफल इलाज किए जाने के झूठे दावे शामिल हैं.
अगली सुनवाई से पहले, फिट ने चार अहम सवालों के जवाब दिए हैं:
पतंजलि के खिलाफ क्या मामला है?
अंतरिम फैसले के क्या मायने हैं?
यह पहली बार नहीं है जब शीर्ष अदालत ने पतंजलि को तलब किया है. फिर इस बार अलग क्या है?
मामले में आगे क्या होने कि संभावना है?
बाबा रामदेव को भ्रामक विज्ञापन मामले में SC ने किया तलब, क्या है पूरा विवाद?
1. पतंजलि के खिलाफ क्या केस है?
अगस्त 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आधिकारिक रूप से पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें दो मुख्य शिकायतें थीं:
कंपनी ने निराधार दावा किया है कि उसके उत्पाद COVID-19 सहित कुछ बीमारियों और विकारों को पूरी तरह और स्थायी रूप से ठीक कर सकते हैं.
आधुनिक चिकित्सा और कोविड-19 टीकाकरण अभियान के खिलाफ कंपनी ने 'अपमानजनक अभियान' चलाया.
अंतरिम आदेश के बाद केरल के कन्नूर के नेत्र रोग विशेषज्ञ और RTI (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता डॉ. केवी बाबू, जिन्होंने कंपनी के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें दर्ज करवाई हैं, उन्होंने फिट से बात करते हुए कहा, "ये विज्ञापन वैज्ञानिक चिकित्सा पर आरोप लगा रहे थे कि यदि आप 'एलोपैथी' दवाएं लेते हैं, तो ऐसे-ऐसे हानिकारक प्रभाव और दुष्प्रभाव होते हैं."
उन्होंने कहा, "यह सब ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम (1954) का साफ तौर से उल्लंघन है."
औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954- या DOMA - ऐसे इलाज और दवाओं के प्रचार और उनके मार्केटिंग पर रोक लगाता है जो जादुई क्वॉलिटी होने का दावा करता है. साथ ही किसी बीमारी और विकार, जैसे- मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड प्रेसर, मोटापा और अस्थमा को बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के पूरी तरह से ठीक करने का दावा करता है.
इस कानून का उल्लंघन करने पर सजा में एक साल तक की कैद और/या जुर्माना शामिल है.
Expand2. 'पहली बार नहीं': कंपनी ने कई बार किया एक्ट का उल्लंघन
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक दावों और आधुनिक चिकित्सा का मजाक उड़ाने के लिए कंपनी को फटकार लगाया है.
21 नवंबर 2023 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह शामिल थे, ने पतंजलि को तुरंत सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के लिए कहा. साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी की अगर कोर्ट का उल्लंघन कर कंपनी ने अपने प्रोडक्ट का भ्रामक दावों के साथ प्रचार जारी रखा तो हर एक प्रचार पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
उस समय पतंजलि के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया कि "किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा, विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग से संबंधित," इसके साथ ही "दवाओं के प्रभाव का दावा या किसी भी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ कोई भी बयान मीडिया में जारी नहीं की जाएगी."
हालांकि, 27 फरवरी को सुनवाई के दौरान IMA की तरफ से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने कहा कि नवंबर 2023 में अदालत के आदेश के ठीक एक दिन बाद, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के अध्यक्ष) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने फिर से भ्रामक दावे किए और यह दावा करते हुए विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखा कि पतंजलि प्रोडक्ट मधुमेह, ब्लड प्रेसर, अस्थमा, गठिया और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों का स्थायी इलाज करने में लाभकारी हैं.
27 फरवरी के अंतरिम आदेश में कोर्ट ने नवंबर के आदेश के उल्लंघन पर संज्ञान लेते हुए कहा,
"प्रथम दृष्टया इस अदालत की राय है कि प्रतिवादी संख्या 5-पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने उसके द्वारा दिए गए वचन का उल्लंघन किया है जो 21 नवंबर 2023 के आदेश में दर्ज किया गया है."
बैंगलोर स्थित मानवाधिकार वकील यशस्विनी बसु बताती हैं, "एक व्यापक आदेश के रूप में इसकी कल्पना करें और जब भी कोई शिकायत उठाई जाती है, तो उन पर जुर्माना लगाने के लिए इसे लागू किया जा सकता है. अभी जिस तरह के आरोप पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड पर हैं, वह उनके द्वारा पिछले आदेशों का अवहेलना किए जाने पर है.”
"इस बार, सुप्रीम कोर्ट ने जिस सख्ती के साथ आदेश दिया है, और जो समय-सीमा उन्होंने दी है, उससे पता चलता है कि उनका मतलब काम करना है."
यशस्विनी बसुExpand3. यह एक अंतरिम फैसला है: इसके मायने क्या हैं और मामले में आगे क्या ?
बसु बताती हैं, "अंतरिम फैसला तब होता है जब प्रतिवादी को नोटिस का जवाब देने के लिए समय दिया जाता है. इस मामले का अभी तक निपटारा नहीं हुआ है और जल्द ही अंत में सुनवाई होगी और पक्ष अपने बचाव में क्या पेश करते हैं उसके आधार पर अदालत किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचेगी और अधिकारिक आदेश जारी करेगी.”
अंतरिम आदेश के अनुसार, पतंजलि को खुद को सही ठहराने और जवाब देने के लिए (19 मार्च को अगली सुनवाई से पहले) दो सप्ताह का समय दिया गया था कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही क्यों शुरू नहीं की जाए.
चूंकि कंपनी निर्धारित तारीख तक जवाब देने में विफल रही, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई में रामदेव और पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को तलब किया है.
इसके अलावा, अदालत ने सरकार से '21 नवंबर 2023 को पारित आदेश के संचालन को सुनिश्चित करने लिए क्या कदम उठाए गए?' इस पर एक हलफनामा दाखिल करने को भी कहा है.
आदेश में लिखा है, "अगर कोर्ट उक्त हलफनामे से संतुष्ट नहीं होता है, तो सुनवाई की अगली तारीख पर उचित आदेश दिया जाएगा."
"उस दिन जो आदेश आएगा उसके हिसाब से, जो भी दोषी होगा उसे इसके लिए जेल भी जाना पड़ सकता है, अगर दोषी पाया गया तो".
यशस्विनी बसुइस बीच, शीर्ष अदालत ने भ्रामक दावों का उपयोग करते हुए जारी किसी भी विज्ञापन पर रोक लगाने का भी आदेश दिया है.
बसु बताती हैं, ''उन्हें उस नोटिस को रोकना होगा और उसका पालन करना होगा जिसमें उन्होंने एलोपैथिक दवा के विकल्प में अपने प्रोडक्ट सामने रखा है.
Expand4. झूठे दावे और भ्रामक विज्ञापन इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?
डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने वर्षों से दावा किया है कि पतंजलि द्वारा किए गए ये उल्लंघन देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं.
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ डॉ. विकास आर केशरी ने फिट को बताया, "कुछ बीमारियों के इलाज की किसी दवा के दावों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत कि जरूरत होती जिसके लिए उन्हें कुछ कठोर वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरना पड़ता है."
वह आगे कहते हैं, "इस वैज्ञानिक सबूत के बाद भी, ऐसे नियामक हैं जो सबूतों की समीक्षा करेंगे और उचित ठहराएंगे कि किन दवाओं को मंजूरी दी जानी चाहिए और किन दवाओं को नहीं. ये बुनियादी मानदंड हैं."
कंपनी के साथ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मूल तर्क यह है कि यह ऐसे दावों का विज्ञापन कर रही है जो वैज्ञानिक रूप से पुख्ता सबूतों के साथ सिद्ध नहीं हुए हैं.
फिट से बात करते हुए MGIMS में मेडिसिन के निदेशक-प्रोफेसर और कस्तूरबा अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसपी कालांत्री कहते हैं कि यहां दोहरी समस्याएं हैं.
"अगर हम केवल कुछ वास्तविक सबूतों के आधार पर या पूरी तरह से विश्वास के आधार पर दवा लिख रहे हैं, तो न केवल हमारे तर्कहीन प्रथाओं के कारण मरीज अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं, बल्कि हम कोई ऐसी दवा जिसके जोखिम से हम बिल्कुल अनजान है उसे मरिजों को देकर उनके स्वास्थ्य को काफी हद तक नुकसान पहुंचा रहे हैं."
डॉ. कालांत्री आगे कहते हैं, "समस्या यह है कि लोग बहुत भोले-भाले हैं और अक्सर समाधान के लिए बेताब रहते हैं."
वह कहते हैं, "आधुनिक चिकित्सा में हम अक्सर सीधे तौर पर कहते हैं, 'माफ करें, इसका कोई इलाज नहीं है', लेकिन फिर क्या होता है कि यह वैकल्पिक चिकित्सा बाजार में इस अंतर को तुरंत पहचान लेती है और इन लोगों को चमत्कार पेश करना शुरू कर देती है. "
"चूंकि यह कंपनी नियामकों को चकमा देने में सक्षम थी और उसने सालों तक इस तरीके से काम करने की अनुमति दी, इसलिए लोगों को अदालत में जाना पड़ा और अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग करनी पड़ी."
डॉ. विकास आर केशरी, स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ(फिट ने इस मामले में प्रतिक्रिया के लिए पतंजलि आयुर्वेद और उनके कानूनी प्रतिनिधियों से ईमेल के जरिए संपर्क किया है. जवाब मिलने पर इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.)
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पतंजलि के खिलाफ क्या केस है?
अगस्त 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आधिकारिक रूप से पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें दो मुख्य शिकायतें थीं:
कंपनी ने निराधार दावा किया है कि उसके उत्पाद COVID-19 सहित कुछ बीमारियों और विकारों को पूरी तरह और स्थायी रूप से ठीक कर सकते हैं.
आधुनिक चिकित्सा और कोविड-19 टीकाकरण अभियान के खिलाफ कंपनी ने 'अपमानजनक अभियान' चलाया.
अंतरिम आदेश के बाद केरल के कन्नूर के नेत्र रोग विशेषज्ञ और RTI (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता डॉ. केवी बाबू, जिन्होंने कंपनी के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें दर्ज करवाई हैं, उन्होंने फिट से बात करते हुए कहा, "ये विज्ञापन वैज्ञानिक चिकित्सा पर आरोप लगा रहे थे कि यदि आप 'एलोपैथी' दवाएं लेते हैं, तो ऐसे-ऐसे हानिकारक प्रभाव और दुष्प्रभाव होते हैं."
उन्होंने कहा, "यह सब ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम (1954) का साफ तौर से उल्लंघन है."
औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954- या DOMA - ऐसे इलाज और दवाओं के प्रचार और उनके मार्केटिंग पर रोक लगाता है जो जादुई क्वॉलिटी होने का दावा करता है. साथ ही किसी बीमारी और विकार, जैसे- मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड प्रेसर, मोटापा और अस्थमा को बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के पूरी तरह से ठीक करने का दावा करता है.
इस कानून का उल्लंघन करने पर सजा में एक साल तक की कैद और/या जुर्माना शामिल है.
'पहली बार नहीं': कंपनी ने कई बार किया एक्ट का उल्लंघन
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक दावों और आधुनिक चिकित्सा का मजाक उड़ाने के लिए कंपनी को फटकार लगाया है.
21 नवंबर 2023 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह शामिल थे, ने पतंजलि को तुरंत सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के लिए कहा. साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी की अगर कोर्ट का उल्लंघन कर कंपनी ने अपने प्रोडक्ट का भ्रामक दावों के साथ प्रचार जारी रखा तो हर एक प्रचार पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
उस समय पतंजलि के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया कि "किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा, विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग से संबंधित," इसके साथ ही "दवाओं के प्रभाव का दावा या किसी भी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ कोई भी बयान मीडिया में जारी नहीं की जाएगी."
हालांकि, 27 फरवरी को सुनवाई के दौरान IMA की तरफ से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने कहा कि नवंबर 2023 में अदालत के आदेश के ठीक एक दिन बाद, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के अध्यक्ष) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने फिर से भ्रामक दावे किए और यह दावा करते हुए विज्ञापन प्रकाशित करना जारी रखा कि पतंजलि प्रोडक्ट मधुमेह, ब्लड प्रेसर, अस्थमा, गठिया और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों का स्थायी इलाज करने में लाभकारी हैं.
27 फरवरी के अंतरिम आदेश में कोर्ट ने नवंबर के आदेश के उल्लंघन पर संज्ञान लेते हुए कहा,
"प्रथम दृष्टया इस अदालत की राय है कि प्रतिवादी संख्या 5-पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने उसके द्वारा दिए गए वचन का उल्लंघन किया है जो 21 नवंबर 2023 के आदेश में दर्ज किया गया है."
बैंगलोर स्थित मानवाधिकार वकील यशस्विनी बसु बताती हैं, "एक व्यापक आदेश के रूप में इसकी कल्पना करें और जब भी कोई शिकायत उठाई जाती है, तो उन पर जुर्माना लगाने के लिए इसे लागू किया जा सकता है. अभी जिस तरह के आरोप पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड पर हैं, वह उनके द्वारा पिछले आदेशों का अवहेलना किए जाने पर है.”
"इस बार, सुप्रीम कोर्ट ने जिस सख्ती के साथ आदेश दिया है, और जो समय-सीमा उन्होंने दी है, उससे पता चलता है कि उनका मतलब काम करना है."यशस्विनी बसु
यह एक अंतरिम फैसला है: इसके मायने क्या हैं और मामले में आगे क्या ?
बसु बताती हैं, "अंतरिम फैसला तब होता है जब प्रतिवादी को नोटिस का जवाब देने के लिए समय दिया जाता है. इस मामले का अभी तक निपटारा नहीं हुआ है और जल्द ही अंत में सुनवाई होगी और पक्ष अपने बचाव में क्या पेश करते हैं उसके आधार पर अदालत किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचेगी और अधिकारिक आदेश जारी करेगी.”
अंतरिम आदेश के अनुसार, पतंजलि को खुद को सही ठहराने और जवाब देने के लिए (19 मार्च को अगली सुनवाई से पहले) दो सप्ताह का समय दिया गया था कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही क्यों शुरू नहीं की जाए.
चूंकि कंपनी निर्धारित तारीख तक जवाब देने में विफल रही, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई में रामदेव और पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को तलब किया है.
इसके अलावा, अदालत ने सरकार से '21 नवंबर 2023 को पारित आदेश के संचालन को सुनिश्चित करने लिए क्या कदम उठाए गए?' इस पर एक हलफनामा दाखिल करने को भी कहा है.
आदेश में लिखा है, "अगर कोर्ट उक्त हलफनामे से संतुष्ट नहीं होता है, तो सुनवाई की अगली तारीख पर उचित आदेश दिया जाएगा."
"उस दिन जो आदेश आएगा उसके हिसाब से, जो भी दोषी होगा उसे इसके लिए जेल भी जाना पड़ सकता है, अगर दोषी पाया गया तो".यशस्विनी बसु
इस बीच, शीर्ष अदालत ने भ्रामक दावों का उपयोग करते हुए जारी किसी भी विज्ञापन पर रोक लगाने का भी आदेश दिया है.
बसु बताती हैं, ''उन्हें उस नोटिस को रोकना होगा और उसका पालन करना होगा जिसमें उन्होंने एलोपैथिक दवा के विकल्प में अपने प्रोडक्ट सामने रखा है.
झूठे दावे और भ्रामक विज्ञापन इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?
डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने वर्षों से दावा किया है कि पतंजलि द्वारा किए गए ये उल्लंघन देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं.
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ डॉ. विकास आर केशरी ने फिट को बताया, "कुछ बीमारियों के इलाज की किसी दवा के दावों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत कि जरूरत होती जिसके लिए उन्हें कुछ कठोर वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरना पड़ता है."
वह आगे कहते हैं, "इस वैज्ञानिक सबूत के बाद भी, ऐसे नियामक हैं जो सबूतों की समीक्षा करेंगे और उचित ठहराएंगे कि किन दवाओं को मंजूरी दी जानी चाहिए और किन दवाओं को नहीं. ये बुनियादी मानदंड हैं."
कंपनी के साथ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मूल तर्क यह है कि यह ऐसे दावों का विज्ञापन कर रही है जो वैज्ञानिक रूप से पुख्ता सबूतों के साथ सिद्ध नहीं हुए हैं.
फिट से बात करते हुए MGIMS में मेडिसिन के निदेशक-प्रोफेसर और कस्तूरबा अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसपी कालांत्री कहते हैं कि यहां दोहरी समस्याएं हैं.
"अगर हम केवल कुछ वास्तविक सबूतों के आधार पर या पूरी तरह से विश्वास के आधार पर दवा लिख रहे हैं, तो न केवल हमारे तर्कहीन प्रथाओं के कारण मरीज अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं, बल्कि हम कोई ऐसी दवा जिसके जोखिम से हम बिल्कुल अनजान है उसे मरिजों को देकर उनके स्वास्थ्य को काफी हद तक नुकसान पहुंचा रहे हैं."
डॉ. कालांत्री आगे कहते हैं, "समस्या यह है कि लोग बहुत भोले-भाले हैं और अक्सर समाधान के लिए बेताब रहते हैं."
वह कहते हैं, "आधुनिक चिकित्सा में हम अक्सर सीधे तौर पर कहते हैं, 'माफ करें, इसका कोई इलाज नहीं है', लेकिन फिर क्या होता है कि यह वैकल्पिक चिकित्सा बाजार में इस अंतर को तुरंत पहचान लेती है और इन लोगों को चमत्कार पेश करना शुरू कर देती है. "
"चूंकि यह कंपनी नियामकों को चकमा देने में सक्षम थी और उसने सालों तक इस तरीके से काम करने की अनुमति दी, इसलिए लोगों को अदालत में जाना पड़ा और अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग करनी पड़ी."डॉ. विकास आर केशरी, स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ
(फिट ने इस मामले में प्रतिक्रिया के लिए पतंजलि आयुर्वेद और उनके कानूनी प्रतिनिधियों से ईमेल के जरिए संपर्क किया है. जवाब मिलने पर इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)