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Vitamin D Toxicity: विटामिन डी की अधिक मात्रा होती है खतरनाक,बरतें ये सावधानियां

विटामिन डी शरीर के लिए आवश्यक हैं लेकिन उसे डॉक्टर की सलाह से एक निश्चित मात्रा में लिया जाना चाहिए.

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विटामिन डी (Vitamin D) की कमी भारतीयों में होना आम बात कही जाती है. ज्यादातर ये कमी उनमें होती है, जिनका संपर्क धूप से बहुत कम होता है. जैसे कि ऑफिस के कमरे में बैठ कर काम करने वाले लोग. ऐसी स्थिति में कई लोग बिना डॉक्टर के पास गए और बिना टेस्ट कराए अपने मन से विटामिन डी (Vitamin D) दवाओं को खाना शुरू कर देते हैं और वो भी दवा की सही खुराक (dose) का पता चले बिना. डॉक्टरों के अनुसार ऐसा करना सेहत के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है.

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विटामिन डी शरीर के लिए आवश्यक होते हैं लेकिन उसे डॉक्टर की सलाह से एक निश्चित मात्रा में नियमित समय के लिए लिया जाना चाहिए.

शरीर में विटामिन डी या हाइपरविटामिनोसिस डी की मात्रा का बढ़ना एक समस्या क्यों है? विटामिन डी टॉक्सिसिटी के लक्षण? विटामिन डी कब खतरा पैदा करता है? किसे विटामिन डी टेस्ट कराना चाहिए? विटामिन डी की नॉर्मल रेंज क्या है? विटामिन डी की कमी के कारण और लक्षण क्या हैं? विटामिन डी की कमी को कैसे दूर करें? जानते हैं ऐसे कई जरुरी सवालों के जवाब जो डॉक्टर ने दिये हैं.

विटामिन डी की कमी केवल हमारी हड्डियों को कमजोर नहीं बनता बल्कि हमारे मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित कर सकता है.

विटामिन डी या हाइपरविटामिनोसिस डी की मात्रा का बढ़ना समस्या क्यों है?

"शरीर में विटामिन डी की कमी होने पर उसके सप्लीमेंट्स लेना फायदेमंद होता है पर तभी जब उन्हें एक निश्चित मात्रा में डॉक्टर की सलाह से लिया जाए. जब शरीर में इसकी मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, तो कई बार यह शरीर से निकल जाता है वहीं कई बार यह टॉक्सिसिटी (toxicity) का कारण भी बनता है."
डॉ. अजय अग्रवाल, डायरेक्टर एंड एचओडी- इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

विटामिन डी की अधिक मात्रा एक समस्या है क्योंकि यह शरीर में कैल्शियम के स्तर को बढ़ाता है. क्योंकि विटामिन डी कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण (absorption) में उपयोगी होता है- ये दो तत्व हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं.

यह किडनी के नॉर्मल काम को भी प्रभावित करता है. शरीर में कैल्शियम के हाई लेवल के कारण जो कि विटामिन डी की उच्च मात्रा का परिणाम है, किडनी में कैल्सीफिकेशन होता है, जिससे बार-बार पेशाब आने से पानी की कमी हो जाती है. गंभीर मामलों में इससे किडनी फेल भी हो जाती है.

"विटामिन डी के सप्लीमेंट्स कभी भी बिना प्रीस्किप्रशन या मेडिकल सलाह के नहीं लेने चाहिए. विटामिन डी की अधिकता के कारण विटामिन डी टॉक्सिसिटी हो सकती है."
डॉ. अजय अग्रवाल

विटामिन डी टॉक्सिसिटी के लक्षण

डॉ. अजय अग्रवाल फिट हिन्दी से विटामिन डी टॉक्सिसिटी के लक्षणों के बारे में कहते हैं, "टॉक्सिसिटी के लक्षणों में कमजोरी, थकान, भूख नहीं लगना और हड्डियों में दर्द होना शामिल हैं".

  • विटामिन डी टॉक्सिसिटी के क्लीनिक लक्षण हाइपरकैल्सीमिया के प्रभाव से दिखते हैं.

  • इनमें न्यूरोलॉजिकल लक्षण जैसे भ्रम, उदासीनता, उत्तेजित होना, चिड़चिड़ापन और गंभीर मामलों में मानसिक जड़ता और कोमा में जाना शामिल हैं.

  • गैस्ट्रोइंटेस्टिनल लक्षणों में पेट में दर्द, उल्टी आना, कब्ज, पेप्टिक अल्सर और पैंक्रियाटाइटिस (मैलिग्नेंट कैल्सीफिकेशन).

  • रीनल लक्षणों में पॉलीयूरिया, पॉलीडिप्सिया, और नेफ्रोलिथियासिस हैं.

  • गंभीर हाइपरकैल्सेमिया के कारण कार्डिएक एरिदमिया भी हो सकता है.

विटामिन डी कब खतरा पैदा करता है?

डॉक्टर कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति विटामिन डी का सेवन नार्मल डाइट्री रिकमेंडेशन (normal dietary recommendations) से अधिक करता है, जो वयस्कों के लिए 20 और 40 ng/mL के बीच होता है, तब शरीर में विटामिन डी टॉक्सिसिटी हो सकती है. जो एक खतरनाक समस्या पैदा कर सकता है.

विटामिन डी की अधिक मात्रा शरीर के लिए बेकार और हानिकारक दोनों है. विटामिन की सही खुराक के बारे में कम लोग जानते हैं और तब भी बहुत सारे लोग इसे अपने मन से ले रहे हैं.

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किसे विटामिन डी की जांच करानी चाहिए?

"जैसा हम जानते हैं, विटामिन डी की कमी अधिकतर लोगों में पाई जाती है लेकिन सीरम 25 (ओएच) डी के स्तर की जांच कराना महंगा होता है और इसकी यूनिवर्सल स्क्रीनिंग कराने की सलाह नहीं दी जाती है. हालांकि, विटामिन डी की जांच कराने से उन्हें फायदा हो सकता है, जिनमें इसकी गंभीर कमी है" ये कहना है डॉ. अजय अग्रवाल का.

विटामिन डी की गंभीर कमी इनमें देखने को मिल सकती है जो:

  • जो पर्याप्त मात्रा में इसका सेवन नहीं करते हैं (खानपान की खराब आदतें रखने वाले)

  • सूर्य की रोशनी में बहुत कम समय बिताने वाले

  • पेट व आंतड़ियों के विकारों जैसे मैलऐब्सॉर्पशन सिंड्रोम्स (सेलिएक डिजीजेज, शॉर्ट बाउल सिंड्रोम, एमीलोइडोसिस, सेलिएक स्प्रू, पोस्ट बेरियाट्रिक सर्जरी) 

  • क्रोनिक लीवर डिजीज

  • क्रोनिक किडनी डिजीज

  • बुजुर्ग (1-अल्फा हाइड्रॉक्सीलेज़ एक्टिविटी में कमी आना)

विटामिन डी की नॉर्मल रेंज क्या है?

  • स्वस्थ हड्डियों व संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए विटामिन डी की नॉर्मल है 50 nmol/L (20 ng/mL) या इससे थोड़ी अधिक.

  • 30 nmol/L (12 ng/mL) से कम का स्तर बहुत कम होता है और इसकी वजह से हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और हमारे शारीरिक/मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.

  • 125 nmol/L (50 ng/mL) से अधिक का स्तर बहुत अधिक माना जाता है और यह भी हमारे स्वास्थ्य के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है.

क्या विटामिन डी सप्लीमेंट अपने मन से लिया जाना चाहिए?

हमारे एक्सपर्ट्स ने इस सवाल पर विटामिन डी सप्लीमेंट बिना टेस्ट और डॉक्टर की सलाह के लेने से साफ माना किया. अपने मन से विटामिन डी सप्लीमेंट्स खाना शुरू नहीं करें. जरूरत पड़ने पर जांच कराएं. स्वस्थ और पौष्टिक आहार से विटामिन डी की कमी की रोकथाम संभव है. डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही विटामिन डी सप्लीमेंट्स का सेवन करें.

क्यों होती है विटामिन डी की कमी?

इसका सबसे बड़ा और आम करण है खाने में इसकी कमी और शरीर को पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी नहीं मिलना.

दूसरे कारणों में शामिल हैं:

  • मालबसोर्पशन डिसऑर्डर

  • गैस्ट्रिक बाईपास (बेरियाट्रिक सर्जरी, गैस्ट्रेक्टोमी)

  • स्मॉल बाउल डिजीजेज

  • पैंक्रियाटिक इंसफिशिएंसी, पूरे शरीर पर सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना, त्वचा का बहुत अधिक पिग्मेंटेड हो जाना, सिरोसिस, ऐंटीसीजर दवाओं का सेवन करना

  • किडनी की बीमारियां जैसे नेफ्रोटिक सिंड्रोम और रीनल फेलियर

  • हाइपर पैराथायराइडिज्म

  • अन्य दुर्लभ कारणों में शामिल हैं:

  • डिटेक्टिव 1-अल्फा 25-हाइड्रॉक्सिलेशन

  • 1-अल्फा हाइड्रॉक्सी डिफिशिएंसी (विटामिन डी-डिपेंडेंट रिकेट्स, टाइप 1)

  • हेरेडिटरी विटामिन डी-रेसिस्टेंट रिकेट्स (विटामिन डी-डिपेंडेंट रिकेट्स, टाइप 2)

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विटामिन डी की कमी होने के लक्षण

"विटामिन डी की कमी के कारण शरीर कैल्शियम को सही तरीके से सोख नहीं पाता जिससे मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. साथ ही, इसका असर व्यक्ति की इम्युनिटी पर भी पड़ता है."
शालिनी गर्विन ब्लिस, एग्जीक्यूटिव डायटीशियन, मणिपाल हॉस्पिटल, गुरुग्राम

विटामिन डी की कमी से जूझ रहे अधिकतर लोगों में इसके लक्षण नहीं दिखते हैं पर जो दिखते हैं वो ये हैं:

  • विटामिन डी की माइल्ड क्रोनिक डेफिशिएंसी यानी थोड़ी कमी होने के कारण भी क्रोनिक हाइपोकैल्सेमिया और हाइपर पैराथायराइडिज्म हो सकता है, जो ओस्टियोपोरोसिस बीमारी यानी हल्के से गिरने पर भी हड्डियों के फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ा सकते हैं, विशेष तौर पर बुजुर्ग आबादी में.

  • विटामिन डी की कमी लो बोन डेंसिटी का कारण भी बनती है.

  • लंबे समय से विटामिन डी की गंभीर कमी से जूझ रहे रोगी सेकेंडरी हाइपर पैराथायराइडिज्म से जुड़े लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं, जिनमें हड्डियों में दर्द होना, थकान, मांसपेशियों का फड़कना (फेसिकुलेशंस) और कमजोरी शामिल है.

  • बच्चों में विटामिन डी की कमी के कारण चिड़चिड़ापन, आलस्य, विकास में देरी, हड्डियों में बदलाव या फ्रैक्चर्स जैसे लक्षण दिख सकते हैं. 

मेंटल हेल्थ पर विटामिन डी की कमी के क्या प्रभाव होते हैं?

गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रहे किशोरों में विटामिन डी की कमी और अभाव के बहुत अधिक मामले सामने आए हैं. विटामिन डी की कमी और डिप्रेशन/साइकोटिक फीचर्स के बीच प्रारंभिक जुड़ाव (initial connection) कई बार देखा गया है.

कई रिसर्चों में पाया गया है कि विटामिन डी मूड को ठीक करने और अवसाद के जोखिम को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

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