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World Brain Tumor Day: जानलेवा नहीं है ब्रेन ट्यूमर, साइड इफेक्ट्स से ऐसे निपटें

सर्जरी के बाद ब्रेन में सूजन का अर्थ है कि ट्यूमर निकालने के बाद इसके फायदे महसूस होने में कुछ समय लगेगा.

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World Brain Tumor Day 2023: ब्रेन ट्यूमर कुछ साल पहले तक एक कठिन और जानलेवा लक्षण लगता होगा, लेकिन मेडिकल क्षेत्र में प्रगति के कारण अब इस अवस्था से उबरना संभव है. ब्रेन ट्यूमर का उपचार किया जा सकता है और यह ठीक भी हो सकता है. विशेषकर शुरुआती चरण में निदान होने से इसके ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है. एडवांस्ड इलाज से ज्यादा शुद्धता और सटीकता के साथ मरीजों का उपचार किया जा सकता है और इसके बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं.

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ब्रेन ट्यूमर के इलाज के साइड इफेक्ट्स

सर्जरी के बाद ब्रेन में सूजन का अर्थ है कि ट्यूमर निकालने के बाद इसके फायदे महसूस होने में कुछ समय लगेगा. इस बीच, मरीज को कुछ साइड इफेक्ट्स का अनुभव होगा, जो उनकी सर्जरी के प्रकार पर और ट्यूमर के स्थान पर निर्भर करता है. इस समय में महसूस होने वाले कुछ सामान्य साइड इफेक्ट्स ये हैं:

  • हेमिपरेसिस (शरीर को एक ओर घुमाने में कमजोरी या अक्षमता)

  • बोलने में कठिनाई या अफासिया (बोली बंद होना)

  • अटेक्सिया (समन्वय, संतुलन और बोली पर असर)

  • फ्लैक्सिड पैरालिसिस

  • खाना निगलने में कठिनाई

ये लक्षण आते-जाते रह सकते हैं और स्वास्थ्य लाभ का सामान्य हिस्सा हैं, इसलिए किसी को इस बारे में बहुत ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है.

ब्रेन ट्यूमर की अवस्था का सफलतापूर्वक इलाज करना कठिन होता है, हालांकि स्टेरॉयड्स से लेकर सर्जरी, कीमोथेरेपी और प्रोटोन थेरेपी तक अनेक प्रकार की तकनीकें अपनाई जाती हैं. ब्रेन ट्यूमर वाले हर व्यक्ति को जहां तक हो सके ज्‍यादा से ज्‍यादा ऐक्टिव होने की जरुरत होती है, इसलिए सफल पुनरुद्धार (revascularisation) इलाज के लिए उनका मूल्यांकन (evaluate) किया जाना चाहिए. साथ ही, उन्हें उनकी स्वास्थ्य लाभ प्रक्रिया के दौरान संभावित साइड इफेक्ट्स के बारे में अवश्‍य बता देना चाहिए.

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ब्रेन ट्यूमर के रोगी ऐसे मैनेज करें साइड इफेक्ट्स

थकावट - रोगी में ऊर्जा की कमी हो जाती है और इससे अचानक थकान और दूसरे सम्बंधित लक्षण हो सकते हैं. लाइफस्टाइल मैनेजमेंट संबंधी सुझावों और मन को शांत करने वाले उपचारों, स्वस्थ भोजन, अच्छी नींद और डॉक्टर की देख-रेख में नींद की दवाइयों का प्रयोग के माध्यम से व्यक्ति के लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर थकान को संभाला जा सकता है.

मिचली और उल्टी - रोगी को पेट में बेचैनी की शिकायत के साथ उल्टी करने की इच्छा हो सकती है. डॉक्टर जरुरी दवाएं लिखेंगे जो उल्टी और मिचली के जोर को मैनेज करने में मदद करेंगी.

मैमोरी लॉस - ब्रेन ट्यूमर के रोगियों के लिए सर्जरी या रेडिएशन थेरेपी के बाद थोड़े समय के लिए याददाश्‍त चले जाने का अनुभव होना सामान्य बात है. याददाश्‍त चले जाने को संभालने के लिए रोगी को ब्रेन को स्टिम्यूलेट करने वाले कार्य करने चाहिए. इनमें पढ़ना, लिखना, अभ्यास करना शामिल हो सकते हैं. साथ ही, रोगी सक्रिय रहने के लिए ऑडियो-विडियो पर भरोसा कर सकते हैं और ध्यान केन्द्रित करने के लिए नोट्स ले सकते हैं.

व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव - ऐसे बदलाव अक्सर देखभाल करने वाले (केयरगिवर्स) को पता चल जाते हैं. रोगी के मानसिक उन्माद (पैरोनिया), सनक (मेनिया), मतिभ्रम (हैलुसिनेशन), भ्रान्ति (डिल्‍यूजन) जैसे न्यूरोसाइकियाट्रिक लक्षण प्रदर्शित करने की आशंका हो सकती है.

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कॉग्निटिव बदलाव - इलाज को सीखने और नई जानकारी याद करने, मौखिक या लिखित संवाद करने, कार्य और नियोजन करने में कठिनाई होती है. वे अपने अधिकतर कामों में कन्फ्यूजन और डिस्ट्रकशन प्रदर्शित कर सकते हैं और उनकी तर्क शक्ति कमजोर हो जाती है.

इनमें से अधिकतर लक्षण देखभाल करने वालों और परिवार के सदस्यों की नजर में आते हैं. इस प्रकार, डॉक्टर के साथ चर्चा करना और उचित डॉक्टरी मूल्यांकन करवाना जरूरी है. इस तरह की अवस्था के इलाज और कंट्रोल के लिए व्यापक उपचार की जरूरत हो सकती है, जिनमें परामर्श, साइकोथेरेपी, लाइफस्टाइल में बदलाव, वाणी और भाषा थेरेपी, संज्ञानात्मक पुनरुद्धार उपचार या उपयुक्त दवाइयां शामिल हैं. रोगी के पूर्ण स्वास्थ्यलाभ के लिए ये सारे उपाय माफी महत्वपूर्ण हैं.

हालांकि, ब्रेन ट्यूमर के कुछ साइड इफेक्ट्स अपरिहार्य (indispensible) हैं, तो भी अनेक मामलों को उचित सर्वाइवल योजना, उच्च गुणवत्‍ता के माइक्रोस्कोप और न्यूरोनैविगेशन, इन्फ्रा ऑपरेटिव न्‍यूरोमॉनिटरिंग और नए सर्जिकल तरीके से रोका जा सकता है. इन सब से रोगी के परिणाम में काफी हद तक सुधार होता है. उदाहरण के लिए, जाग्रत अवस्था (waking state) में ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी, सर्जरी का एक नया तरीका है, जिसमें रोगी के जगे रहने की अवस्था में ही ब्रेन ट्यूमर को निकाल दिया जाता है. इस तरीके के इलाज में रोगी सर्जन के निर्देशों को फॉलो करने में सक्षम रहता है. इससे ब्रेन के फंक्शनल एरिया के नुकसान की आशंका कम हो जाती है, जो रोगी की दृष्टि, हरकत या बोली को प्रभावित कर सकते हैं.

(ये आर्टिकल मुंबई, मुलुंड के फोर्टिस हॉस्पिटल में न्यूरोसर्जरी के सीनियर कंसलटेंट, डॉ. गुरनीत सिंह साहनी ने वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे के अवसर पर फिट हिंदी के लिए लिखा है.)

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