World Brain Tumor Day 2023: ब्रेन ट्यूमर ऐसा रोग है, जिसका नाम ही पूरे शरीर में तनाव और परेशानी पैदा कर देता है और काफी हद तक यह सही भी है, क्योंकि ज्यादातर ब्रेन ट्यूमर के मामले कैंसर होते हैं और इसकी वजह से क्षतिग्रस्त होने वाली मस्तिष्क की कोशिकाएं दोबारा नहीं पनपती. कुछ दशकों पहले तक, भारत जैसे विकासशील देश में ब्रेन ट्यूमर का इलाज करने के लिए इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी और उपकरण काफी पिछड़े हुए थे. साथ ही, ये बुनियादी सुविधाएं भी महानगरों के कुछ गिने-चुने अस्पतालों तक ही सीमित थीं. एडवांस सुविधाओं से सुसज्जित न्यूरो-आईसीयू और पुनर्वास केंद्रों (rehabilitation centre) के अभाव में सर्जरी के बाद मरीजों की उचित देखभाल नहीं हो पाती थी.
लेकिन कोविड के बाद, मेडिकल सुविधाओं पर खासतौर से ध्यान दिया जाने लगा है और ब्रेन ट्यूमर सर्जरी में तो काफी प्रगति हुई है.
इस क्षेत्र में होने वाले महत्वपूर्ण सुधारों के प्रमुख कारणों पर नीचे चर्चा की गई है.
1. डायग्नॉस्टिक्स में सुधार
ब्रेन ट्यूमर के निदान में एमआरआई की प्रमुख भूमिका है. यह काफी हद तक आसानी से उपलब्ध होने वाली टैक्नोलॉजी है, जो शुरुआती स्टेज में ही ट्यूमर का पता लगा सकती है. इसके अलावा, एमआरआई में होने वाली नवीनतम प्रगति जैसे कि परफ्यूज़न स्टडीज, ट्रैक्टोग्राफी और फंक्शनल एमआरआई से यह पता लगाना आसान हो गया है कि ट्यूमर किस स्थान पर है और वह मस्तिष्क के किन महत्वपूर्ण भागों को प्रभावित कर रहा है. एमआर स्पैक्ट्रोस्कोपी की मदद से ट्यूमर और नॉन-ट्यूमर घावों जैसे कि इंफेक्शन या ट्यूमर नैक्रोसिस में अंतर को स्पष्ट करना आसान हुआ है.
सेरीब्रल डीएसए किसी भी न्यूरो-कैथलैब में हो सकता है, जिससे ट्यूमरों के प्रकार के बारे में पता चलता है, जैसे मेनिंनजियोमा की स्थिति और प्रमुख रक्त वाहिकाओं की पेटेन्सी और डिस्प्लेसमेंट को देखा जा सकता है. कुछ खास वाक्युलर स्कल बेस ट्यूमरों के मामले में ट्यूमर एंबोलाइज़ेशन किया जा सकता है, जो बहुत आसान किस्म की सर्जरी है.
नए डायग्नॉस्टिक हिस्टो-पैथोलॉजिकल मैथड्स और ब्रेन ट्यूमर्स के नए जेनेटिक क्लासिफिकेशन से हमें ट्यूमर बायोलॉजी और उनके व्यवहारों को समझने में आसानी हुई, जिससे आगे इलाज प्रक्रिया में मदद मिलती है.
ब्रेन ट्यूमरों की जेनेटिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए काफी रिसर्च जारी हैं.
2. सर्जरी में सुधार
किसी भी सफल ब्रेन ट्यूमर सर्जरी के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण हाई रेज़ोल्यूशन ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप होता है. एडवांस्ड फीचर्स से लैस एक नया माइक्रोस्कोप हर कुछेक साल के बाद बाज़ार में आता है. मैग्नीफिकेशन का एक बड़ा फायदा यह होता है कि ज्यादातर ट्यूमरों को सुरक्षित और पूरी तरह से निकाला जा सकता है.
ट्यूमर फ्लोरेसेंस – गाइडेड सर्जरी, में माइक्रोस्कोप की मदद से रियल-टाइम में ट्यूमर की पहचान करने और आसपास के सामान्य और स्वस्थ मस्तिष्क को न्यूनतम नुकसान पहुंचाए बगैर ट्यूमर को सावधानी और सटीक तरीके से बाहर निकालना आसान होता है. इसके लिए मरीज को एनेस्थीसिया से कुछ ही पहले मरीज को इंट्रा-वेनस या ओरल फ्लोरेसेंट डाइ दी जाती है, जिसके चलते फ्लोरेसेंस इनेबल्ड ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप में स्पेशल फ्ल्टिर्स की मदद से ट्यूमर सेल्स के भीतर तक देखा जा सकता है.
नया फ्रेमलैस और एडवांस्ड न्यूरो-नेवीगेशन मरीज के मस्तिष्क में किसी भी स्थान और स्थिति में ब्रेन ट्यूमरों की सही-सही स्थिति का पता लगाने में मददगार होती है. इसके कारण सर्जरी के लिए चीरे का आकार घटता है, सटीकता बढ़ती है और टिश्यू ट्रॉमा भी कम होता है.
बोन-क्यूसा और नवीनतम हाई-स्पीड ड्रिल्स ऐसे टूल्स हैं, जो आसपास के स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाए बगैर सटीकता के साथ हडि्डयों को काटने या ट्रिम करने में मददगार हैं. इससे दूसरे टिश्युओं को क्षति पहुंचने की आशंका घटती है और कॉस्मेटिक परिणामों में भी सुधार आता है.
नए एंडोस्कोप्स और न्यूरो-नेवीगेशन की मदद से विभिन्न उपकरणों को सर्जरी के लिए इस्तेमाल करने से सटीकता बढ़ती है और जटिलताओं को भी कम करने में मदद मिलती है. एंडोस्कोप खोपड़ी में पनपने वाले ट्यूमर्स और इंट्रा-वेंट्रिक्युलर ट्यूमर्स में काफी मददगार होते हैं. खोपड़ी के अंदर पनपे ट्यूमर को नाक के रास्ते निकालना मुमकिन होता है, जिसमें या तो चीरा लगाना नहीं पड़ता या काफी कम आकार के चीरे से ही काम चल जाता है.
एनेस्थीसिया तकनीकों, नई दवाओं और आधुनिक उपकरणों ने एनेस्थीसिया को काफी सुरक्षित और ब्रेन-फ्रैंडली बनाया है. अब पोस्टऑपरेटिव स्टेज में हमें ब्रेन बल्ज या मरीज को होश आने में देरी जैसी समस्याएं लगभग दुर्लभ हो चुकी हैं. प्रभावी स्कैल्प ब्लॉक्स की मदद से ज्यादातर सर्जरी लोकल एनेस्थीसिया में की जा सकती हैं. यहां तक कि ‘अवेक क्रेनियोटमी’ ऐसे मरीजों के लिए वरदान साबित होती है, जिनके ब्रेन के इलोक्वेंट एरिया में ट्यूमर होता है और यह आधुनिक न्यूरो एनेस्थीसिया से संभव है. सर्जरी के बाद आईसीयू में देखभाल की सुविधाओं में सुधार और वेंटिलेटर्स की आसानी से उपलब्धता ने भी परिणामों में सुधार लाने में काफी मदद पहुंचायी है.
3. पोस्ट ऑपरेटिव केयर
नई रेडियोथेरेपी मशीनों और स्टीरियोटैक्टिक रेडिएशन जैसी तकनीकों ने रेडिएशन के साइड इफेक्ट्स काफी हद तक कम किए हैं. इनका इस्तेमाल मैलिग्नेंट और बिनाइन ट्यूमर दोनों के लिए किया जा सकता है. कुछ बिनाइन ट्यूमर जैसे कि मेनिनजियोमा और श्वानोमा का उपचार सिर्फ रेडिएशन से ही संभव है. ब्रेन मेटास्टेटिस का उपचार ज्यादातर मामलों में, जो कि ब्रेन के मैलिग्नेंट ट्यूमर में सबसे आम हैं, रेडिएशन और कीमोथेरेपी से ही किया जाता है.
नए कीमोथेरेपी दवाओं और इम्युनोथेरेपी ने मैलिग्नेंट ब्रेन ट्यूमर के सफल उपचार में काफी हद तक कामयाबी हासिल की है. इनसे मरीजों का जीवनकाल लंबा होता है और लाइफ क्वालिटी भी बेहतर बनती है.
रिहेबिलिटेशन (पुनर्वास) और स्पेश्यलाइज़्ड फिजियोथेरेपी कई मरीजों के ब्रेन ट्यूमर के उपचार में आवश्यक होती है. नए रीहैब सेंटर और फिजियोथेरेपिस्ट की उपलब्धता ने इलाज के बाद न्यूरालॉजिकल अभावों को दूर करने में काफी मदद पहुंचायी है.
भारत एक मेडिकल हब बन चुका है और पिछले दशक में मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अधिकतम प्रगति हुई है.
ब्रेन ट्यूमर सर्जरी काफी सुरक्षित हो चुकी है और नए मेडिकल उपकरणों, आधुनिक टैक्नोलॉजी, मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर्स और नवीनतम मिनीमैली इन्वेसिव तकनीकों के चलते अच्छे नतीजे सामने आते हैं. नवीनतम ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप, न्यूरो-नेवीगेशन, न्यूरो-कैथलैब, न्यूरो-आईसीयू और अनुभवी न्यूरोसर्जरी टीम से सुसज्जित किसी भी अच्छे अस्पताल को सफल ब्रेन ट्यूमर सर्जरी के लिए चुना जा सकता है.
(ये आर्टिकल नोएडा, फोर्टिस हॉस्पिटल में न्यूरोसर्जरी के डायरेक्टर डॉ. राहुल गुप्ता ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)
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