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World Malaria Day: क्लाइमेट चेंज है मलेरिया फैलने का एक फैक्टर, इससे कैसे निपटें?

Climate Change And Malaria: क्लाइमेट चेंज की वजह से मलेरिया रोग को बढ़ने से कैसे रोकें?

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Climate Change And Malaria: क्लाइमेट चेंज (climate change) यानी जलवायु परिवर्तन से संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है. जब हवा और मौसम में बदलाव होता है, तो मच्छरों की संख्या में वृद्धि होती है क्योंकि गर्म और नम मौसम में बैक्टीरिया और वायरस तेजी से बढ़ते हैं.

क्लाइमेट चेंज से कैसे बढ़ रहा इंफेक्शियस डिजीज फैलने का खतरा? क्लाइमेट चेंज कैसे मलेरिया के प्रसार का एक फैक्टर है? मलेरिया रोकने के उपाय क्या हैं? मलेरिया रोग कब खतरनाक हो जाता है? क्लाइमेट चेंज की वजह से मलेरिया रोग न बढ़े, इसके लिए क्या उपाय करने चाहिए? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की और जानें इन सवालों के जवाब.

World Malaria Day: क्लाइमेट चेंज है मलेरिया फैलने का एक फैक्टर, इससे कैसे निपटें?

  1. 1. क्लाइमेट चेंज से इंफेक्शियस डिजीज फैलने का खतरा बढ़ रहा

    डॉ. अमिताभ पर्ती ने फिट हिंदी को बताया कैसे क्लाइमेट चेंज इंफेक्शियस डिजीज को बढ़ने में मदद कर रहा है.

    जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज के कारण हैबिटैट में बदलाव होता है और साथ ही, मच्छरों और टिक जैसे वैक्टर्स के व्यवहार पर भी असर पड़ता है, जिसकी वजह से इंफेक्शियस डिजीज को अधिक फैलने का मौका मिलता है. तापमान बढ़ने और बारिश के पैटर्न में बदलाव होने से इन वैक्टर्स का फैलाव अधिक होता है, इनका ब्रीडिंग सीजन भी लंबा हो जाता है, जिससे ट्रांसमिशन विंडो बढ़ जाता है.

    इसे ऐसे समझें, तापमान अधिक होने पर मच्छरों के शरीर में पनपने वाले पैथोजेन्स का लाइफ साइकल तेज हो सकता है, जिससे मलेरिया जैसे रोग को अधिक फैलने के अनुकूल अवसर मिलते हैं. इसी तरह, बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियों से इकोसिस्टम (ecosystem) प्रभावित होता है और आबादी समूहों की आपस में नजदीकियां बढ़ती हैं, जिससे संक्रामक रोगों को बड़े पैमाने पर फैलने के लिए आदर्श माहौल मिलता है.

    "क्लाइमेट चेंज के कारण सभी तरह के पैथोजन्स में म्युटेशन भी हो सकता है, जो एलर्जी का कारण बनता है. बुजुर्गों में इसकी वजह से इम्युनिटी प्रभावित होती है और पहले से ही कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के हेल्थ पर भी इसका बुरा असर पड़ता है."
    डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    गुरुग्राम, मैरेंगो एशिया हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसलटेंट, डॉ. मोहन कुमार सिंह कहते हैं,

    "अगर पानी प्रदूषित होगा तो ज्यादा बीमारियां फैल सकती हैं. इस समय मच्छरों और दूसरे वाहकों का प्रसार हो जाता है, जो मलेरिया, डेंगू फैलाते हैं. मलेरिया का प्रसार एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है."
    डॉ. मोहन कुमार सिंह, सीनियर कंसलटेंट- इंटरनल मेडिसिन, मैरेंगो एशिया अस्पताल, गुरुग्राम
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  2. 2. क्लाइमेट चेंज कैसे मलेरिया के प्रसार का एक फैक्टर है?

    भारत में मलेरिया आमतौर पर बारिश के मौसम में फैलता है और जगह-जगह पानी इकट्ठा होने/रुकने की वजह से मलेरिया के परजीवी और मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है. परजीवी और उनका घर बनने वाले मच्छर दोनों ही तापमान में होने वाले बदलाव से प्रभावित होते हैं. अगर तापमान इस परजीवी की सहनीय सीमा के आसपास हो तो उसमें मामूली बढ़ोतरी भी परजीवी को नष्ट कर सकती है. लेकिन वहीं अगर तापमान कम रहता है, तो उसमें मामूली बढ़त के चलते मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण मलेरिया ज्यादा फैलता है.

    "यदि कार्बन एमिशन को कंट्रोल नहीं किया गया और पृथ्वी के तापमान में केवल 2 से 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भी होती है, तो मलेरिया से प्रभावित होने वाली आबादी में 5% बढ़त हो सकती है. यानी लगभग 70 लाख लोग रिस्क के दायरे में आ सकते हैं और महज आधा डिग्री तापमान बढ़ने से मच्छरों की आबादी 100% तक बढ़ सकती है."
    डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    अन्तरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, प्री-इंडस्ट्रियल एरिया से ग्लोबल तापमान लगभग 1.0°C बढ़ गया है, जिसने मच्छरों के डिस्ट्रीब्यूशन और व्यवहार में परिवर्तन किया है, जिससे मलेरिया प्रसार बढ़ा है.

    डॉ. मोहन कुमार सिंह नेचर कम्युनिकेशन के रिसर्च का जिक्र करते हुए कहते हैं,

    "प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान की बढ़ोतरी से लगभग 7% मलेरिया प्रसार के ज्योग्राफिकल एरिया का विस्तार हो सकता है, विशेष रूप से ज्यादा ऊंचाई और मीडियम जलवायु वाले क्षेत्रों को जो पहले मलेरिया से प्रभावित नहीं होते थे."
    डॉ. मोहन कुमार सिंह, सीनियर कंसलटेंट- इंटरनल मेडिसिन, मैरेंगो एशिया अस्पताल, गुरुग्राम
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  3. 3. मलेरिया रोकने के कुछ असरदार उपाय

    मलेरिया के प्रसार को रोकने के कारगर उपायों में शामिल हैं:

    • साफ-सफाई का ध्यान रखें और मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए पानी जमा न होने दें.

    • शरीर को ढंककर रखने के लिए पूरी बाजू वाली कमीज और पैंट पहनें, खासतौर से सवेरे और शाम के समय जब मच्छर सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं.

    • खुली त्वचा को मच्छरों के हमले से बचाने के लिए इंसेक्ट रिपेलेंट का प्रयोग करें

    • सोते समय मच्छरदानी लगाएं

    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझायी गई वैक्सीन या दवा का इस्तेमाल करें (वैक्सीन का प्रयोग एडवांस स्टेज में है)

    • नगर निगमों को जागरूकता बढ़ाने के उपायों पर जोर देना चाहिए. पानी के गड्ढों, कीचड़ और दूसरे पानी जमाव की जगहों पर छिड़काव करना चाहिए

    एक्सपर्ट ने बताया कि मलेरिया के लक्षण आम तौर पर संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के कुछ हफ्तों के भीतर शुरू होते हैं. मलेरिया के कुछ मामलों में वायरस के कारण बुखार आने में दो दिन या तीन दिन तक का समय लगता है. यानी 48 या 72 घंटे के बाद बुखार आता है और यह इस पर भी निर्भर करता है कि मलेरिया कौन से प्रकार का है.

    मलेरिया के लक्षणों में शामिल हैंः

    • तेज बुखार

    • ⁠काफी अधिक कंपकंपी होना

    • सिरदर्द

    • मितली और उल्टी की शिकायत

    • डायरिया

    • पेट में दर्द

    • रैशेज

    • मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द

    • थकान

    • सांस तेज चलना

    • हार्ट रेट बढ़ना

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  4. 4. मलेरिया रोग कब खतरनाक हो जाता है?

    "मलेरिया रोग उस स्थिति में गंभीर हो सकता है जब यह ब्रेन तक फैल जाता है और सेरीब्रेल मलेरिया का कारण बनता है या गंभीर एनीमिया, ब्लैक वॉटर फीवर और ऑर्गेन फेलियर का कारण बनता है."
    डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    गंभीर मलेरिया की पहचान करने के लिए शुरुआती बुखार, सिरदर्द, कंपकंपी होना, भ्रमित महसूस होना, दौरे पड़ना, अत्यधिक कमजोरी महसूस होना, पेशाब का रंग गाढ़ा या कोला जैसे रंग का होना, सांस लेने में परेशानी महसूस होना और एब्नॉर्मल ब्लीडिंग की शिकायत होना जैसे लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए.

    अगर ये लक्षण दिखायी दें तो समझ जाएं कि इंफेक्शन का असर शरीर के महत्वपूर्ण फंक्शन या अंगों पर पड़ चुका है. इन लक्षणों के दिखायी देते ही तत्काल मेडिकल सहायता लेना जरूरी है ताकि मरीज का जीवन बचाया जा सके, खासतौर से प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया होने पर, जो कि सबसे खतरनाक किस्म का मलेरिया रोग है.

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  5. 5. क्लाइमेट चेंज की वजह से मलेरिया रोग न बढ़े, इसके लिए क्या उपाय करने चाहिए?

    जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया इंफेक्शन बढ़ने पर रोक लगाने के लिए जरूरी है कि इससे बचाव की रणनीति पर अमल किया जाए और साथ ही बदलाव के मद्देनजर एहतियात भी बरती जाए.

    "क्लाइमेट चेंज के कारण वैक्टर म्युटेशन हो सकता है और नए प्लाज़्मोडियम स्ट्रेन्स पनप सकते हैं. साथ ही, गर्म तापमान और अचानक भारी बारिश के चलते रुके पानी में मच्छरों को पनपने के भी अधिक अवसर मिलते हैं."
    डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    मच्छरों की आबादी पर निगरानी रखने के अलवा वॉटर मैनेजमेंट भी बेहतर बनाना चाहिए जिससे मच्छरों को पनपने से रोका जा सके. इसी तरह, पानी को रुकने नहीं देने के लिए आम जनता को जागरूक बनाना भी जरूरी है. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर मलेरिया के प्रसार को कंट्रोल करने के लिए हेल्थ सिस्टम को भी मजबूत बनाया जाना चाहिए.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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क्लाइमेट चेंज से इंफेक्शियस डिजीज फैलने का खतरा बढ़ रहा

डॉ. अमिताभ पर्ती ने फिट हिंदी को बताया कैसे क्लाइमेट चेंज इंफेक्शियस डिजीज को बढ़ने में मदद कर रहा है.

जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज के कारण हैबिटैट में बदलाव होता है और साथ ही, मच्छरों और टिक जैसे वैक्टर्स के व्यवहार पर भी असर पड़ता है, जिसकी वजह से इंफेक्शियस डिजीज को अधिक फैलने का मौका मिलता है. तापमान बढ़ने और बारिश के पैटर्न में बदलाव होने से इन वैक्टर्स का फैलाव अधिक होता है, इनका ब्रीडिंग सीजन भी लंबा हो जाता है, जिससे ट्रांसमिशन विंडो बढ़ जाता है.

इसे ऐसे समझें, तापमान अधिक होने पर मच्छरों के शरीर में पनपने वाले पैथोजेन्स का लाइफ साइकल तेज हो सकता है, जिससे मलेरिया जैसे रोग को अधिक फैलने के अनुकूल अवसर मिलते हैं. इसी तरह, बाढ़ और सूखे जैसी स्थितियों से इकोसिस्टम (ecosystem) प्रभावित होता है और आबादी समूहों की आपस में नजदीकियां बढ़ती हैं, जिससे संक्रामक रोगों को बड़े पैमाने पर फैलने के लिए आदर्श माहौल मिलता है.

"क्लाइमेट चेंज के कारण सभी तरह के पैथोजन्स में म्युटेशन भी हो सकता है, जो एलर्जी का कारण बनता है. बुजुर्गों में इसकी वजह से इम्युनिटी प्रभावित होती है और पहले से ही कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के हेल्थ पर भी इसका बुरा असर पड़ता है."
डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

गुरुग्राम, मैरेंगो एशिया हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसलटेंट, डॉ. मोहन कुमार सिंह कहते हैं,

"अगर पानी प्रदूषित होगा तो ज्यादा बीमारियां फैल सकती हैं. इस समय मच्छरों और दूसरे वाहकों का प्रसार हो जाता है, जो मलेरिया, डेंगू फैलाते हैं. मलेरिया का प्रसार एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है."
डॉ. मोहन कुमार सिंह, सीनियर कंसलटेंट- इंटरनल मेडिसिन, मैरेंगो एशिया अस्पताल, गुरुग्राम
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क्लाइमेट चेंज कैसे मलेरिया के प्रसार का एक फैक्टर है?

भारत में मलेरिया आमतौर पर बारिश के मौसम में फैलता है और जगह-जगह पानी इकट्ठा होने/रुकने की वजह से मलेरिया के परजीवी और मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है. परजीवी और उनका घर बनने वाले मच्छर दोनों ही तापमान में होने वाले बदलाव से प्रभावित होते हैं. अगर तापमान इस परजीवी की सहनीय सीमा के आसपास हो तो उसमें मामूली बढ़ोतरी भी परजीवी को नष्ट कर सकती है. लेकिन वहीं अगर तापमान कम रहता है, तो उसमें मामूली बढ़त के चलते मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण मलेरिया ज्यादा फैलता है.

"यदि कार्बन एमिशन को कंट्रोल नहीं किया गया और पृथ्वी के तापमान में केवल 2 से 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भी होती है, तो मलेरिया से प्रभावित होने वाली आबादी में 5% बढ़त हो सकती है. यानी लगभग 70 लाख लोग रिस्क के दायरे में आ सकते हैं और महज आधा डिग्री तापमान बढ़ने से मच्छरों की आबादी 100% तक बढ़ सकती है."
डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

अन्तरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, प्री-इंडस्ट्रियल एरिया से ग्लोबल तापमान लगभग 1.0°C बढ़ गया है, जिसने मच्छरों के डिस्ट्रीब्यूशन और व्यवहार में परिवर्तन किया है, जिससे मलेरिया प्रसार बढ़ा है.

डॉ. मोहन कुमार सिंह नेचर कम्युनिकेशन के रिसर्च का जिक्र करते हुए कहते हैं,

"प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान की बढ़ोतरी से लगभग 7% मलेरिया प्रसार के ज्योग्राफिकल एरिया का विस्तार हो सकता है, विशेष रूप से ज्यादा ऊंचाई और मीडियम जलवायु वाले क्षेत्रों को जो पहले मलेरिया से प्रभावित नहीं होते थे."
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मलेरिया रोकने के कुछ असरदार उपाय

मलेरिया के प्रसार को रोकने के कारगर उपायों में शामिल हैं:

  • साफ-सफाई का ध्यान रखें और मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए पानी जमा न होने दें.

  • शरीर को ढंककर रखने के लिए पूरी बाजू वाली कमीज और पैंट पहनें, खासतौर से सवेरे और शाम के समय जब मच्छर सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं.

  • खुली त्वचा को मच्छरों के हमले से बचाने के लिए इंसेक्ट रिपेलेंट का प्रयोग करें

  • सोते समय मच्छरदानी लगाएं

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझायी गई वैक्सीन या दवा का इस्तेमाल करें (वैक्सीन का प्रयोग एडवांस स्टेज में है)

  • नगर निगमों को जागरूकता बढ़ाने के उपायों पर जोर देना चाहिए. पानी के गड्ढों, कीचड़ और दूसरे पानी जमाव की जगहों पर छिड़काव करना चाहिए

एक्सपर्ट ने बताया कि मलेरिया के लक्षण आम तौर पर संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के कुछ हफ्तों के भीतर शुरू होते हैं. मलेरिया के कुछ मामलों में वायरस के कारण बुखार आने में दो दिन या तीन दिन तक का समय लगता है. यानी 48 या 72 घंटे के बाद बुखार आता है और यह इस पर भी निर्भर करता है कि मलेरिया कौन से प्रकार का है.

मलेरिया के लक्षणों में शामिल हैंः

  • तेज बुखार

  • ⁠काफी अधिक कंपकंपी होना

  • सिरदर्द

  • मितली और उल्टी की शिकायत

  • डायरिया

  • पेट में दर्द

  • रैशेज

  • मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द

  • थकान

  • सांस तेज चलना

  • हार्ट रेट बढ़ना

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मलेरिया रोग कब खतरनाक हो जाता है?

"मलेरिया रोग उस स्थिति में गंभीर हो सकता है जब यह ब्रेन तक फैल जाता है और सेरीब्रेल मलेरिया का कारण बनता है या गंभीर एनीमिया, ब्लैक वॉटर फीवर और ऑर्गेन फेलियर का कारण बनता है."
डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

गंभीर मलेरिया की पहचान करने के लिए शुरुआती बुखार, सिरदर्द, कंपकंपी होना, भ्रमित महसूस होना, दौरे पड़ना, अत्यधिक कमजोरी महसूस होना, पेशाब का रंग गाढ़ा या कोला जैसे रंग का होना, सांस लेने में परेशानी महसूस होना और एब्नॉर्मल ब्लीडिंग की शिकायत होना जैसे लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए.

अगर ये लक्षण दिखायी दें तो समझ जाएं कि इंफेक्शन का असर शरीर के महत्वपूर्ण फंक्शन या अंगों पर पड़ चुका है. इन लक्षणों के दिखायी देते ही तत्काल मेडिकल सहायता लेना जरूरी है ताकि मरीज का जीवन बचाया जा सके, खासतौर से प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया होने पर, जो कि सबसे खतरनाक किस्म का मलेरिया रोग है.

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जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया इंफेक्शन बढ़ने पर रोक लगाने के लिए जरूरी है कि इससे बचाव की रणनीति पर अमल किया जाए और साथ ही बदलाव के मद्देनजर एहतियात भी बरती जाए.

"क्लाइमेट चेंज के कारण वैक्टर म्युटेशन हो सकता है और नए प्लाज़्मोडियम स्ट्रेन्स पनप सकते हैं. साथ ही, गर्म तापमान और अचानक भारी बारिश के चलते रुके पानी में मच्छरों को पनपने के भी अधिक अवसर मिलते हैं."
डॉ. अमिताभ पर्ती, डायरेक्टर एंड यूनिट हेड– इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

मच्छरों की आबादी पर निगरानी रखने के अलवा वॉटर मैनेजमेंट भी बेहतर बनाना चाहिए जिससे मच्छरों को पनपने से रोका जा सके. इसी तरह, पानी को रुकने नहीं देने के लिए आम जनता को जागरूक बनाना भी जरूरी है. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर मलेरिया के प्रसार को कंट्रोल करने के लिए हेल्थ सिस्टम को भी मजबूत बनाया जाना चाहिए.

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