इसरो ने सोमवार को सुबह रीयूजेबल अंतरिक्ष यान लॉन्च करके शानदार सफलता हासिल की है. इसमें खर्च हुए हैं बस 95 करोड़ रुपये. 600 साइंटिस्टों ने 6 साल तक दिन-रात एक किए और बना डाला रीयूजेबल अंतरिक्ष यान.
भारत दुनिया में इकलौता देश है, जो वर्तमान में अंतरिक्ष में पंखों वाला यान भेज रहा है.
अब जानिए...वे 5 बातें, जो बनाती हैं इस लॉन्च को बेहद खास.
बेहद सस्ता है ये प्रोजेक्ट
मंगलयान की सफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर मात्र 95 करोड़ रुपये में ये अंतरिक्ष यान बना लिया है. वैसे एक अंतरिक्ष यान की लॉन्चिंग में 30 अरब रुपये का खर्च आता है. लेकिन इसरो ने इस यान को 1 अरब रुपये से भी कम में अपना यान बना लिया है.
सिरेमिक टाइल्स ने किया कमाल
आवाज की गति से 5 गुना तेज स्पीड से अंतरिक्ष में छोड़ा गया अंतरिक्ष यान धरती पर लौटते हुए वातावरणीय दबाव की वजह से पूरी तरह जल जाता है. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने इस यान में सिरेमिक टाइल्स लगाए, जिनकी वजह से ये स्पेस शटल बंगाल की खाड़ी में गिर सका.
2030 तक करना होगा इंतजार
अगर आप ये सोच रहे हैं कि अब जल्द ही भारतीय अंतरिक्ष यात्री भी स्वदेशी स्पेस शटल में अंतरिक्ष जाएंगे, तो थोड़ा रुकिए. दरअसल, ये एक स्केल मॉडल है. 6.5 मीटर लंबे और 1.75 टन के इस विमान का असली संस्करण 2030 तक आने की संभावना है.
दुनिया में बस भारत अकेला
भारत फिलहाल दुनिया में इकलौता देश है, जो अंतरिक्ष में पंखों वाला यान भेज रहा है. अमेरिका ने 2011 में अपने स्पेस शटल को बंद (Retire) कर दिया है. रूस ने सिर्फ 1989 में एक बार अंतरिक्ष में अपना यान भेजा था.
आखिर क्यों जरूरी था ये प्रोजेक्ट
भारत के स्पेस प्रोग्राम के लिए ये एक काफी अहम प्रोजेक्ट है. इस लॉन्च की मदद से इसरो को पृथ्वी की कक्षाओं में सैटेलाइट्स को स्थापित करने के लिए मध्यम से भारी वजन के रॉकेटों को बनाने और और इस्तेमाल पर होने वाले खर्च को कम करने में मदद मिलेगी.
फिलहाल, अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यान पर प्रति किलोग्राम 20,000 डॉलर के हिसाब से खर्च आता है.
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