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गांधी जयंती विशेष: इस आजाद देश में कब मिलेगी खादी को ‘आजादी’?

जो खादी उद्योग करोड़ों लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है, वो आज केवल कुछ स्टोर्स में ही सीमित होकर रह गया है.

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भारत
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खादी का कपड़ा बुनने के लिए चरखा चलाना हो, तो सूत हासिल करने के लिए परमीशन चाहिए. खादी बेचने के लिए परमीशन, यहां तक कि‍ नाम इस्तेमाल करने के लिए भी इजाजत चाहिए.

रेगुलेशन तो ठीक है. लेकिन हर चीज के लिए परमीशन? क्या यही वजह नहीं है कि जो खादी उद्योग करोड़ों लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है, वो कुछ स्टोर्स में सीमित हो गया है.

देश में खादी के सात हजार से ज्यादा स्टोर्स हैं और सालाना बिक्री महज 1,500 करोड़ रुपये. यानी एक स्टोर से औसतन महीने में दो लाख रुपये से भी कम की बिक्री. कई स्टोर ऐसी जगहों पर हैं, जहां इससे ज्यादा रकम किराए से आ सकती है, उस पर स्टोर चलाने का खर्च अलग.



जो खादी उद्योग करोड़ों लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है, वो आज केवल कुछ स्टोर्स में ही सीमित होकर रह गया है.
ग्राफिक्‍स: क्‍विंट हिंदी

बदलाव हो रहा है. फ्रेंचाइजी मॉडल अपनाने की कोशिश हो रही है और इस साल कुछ फ्रेंचाइजी स्टोर्स खुलने वाले भी हैं. फैशन डिजाइनर से डिजाइनिंग के टिप्स लिए जा रहे हैं, ताकि खादी को ट्रेंडी लुक दिया जा सके. खादी बनाने की यूनिट खोलने के लिए परमीशन लेने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा रहा है.

लेकिन क्या इतना सब काफी होगा? जरूरत है खादी सेक्टर को झकझोरने की. खादी के नाम का दुरुपयोग न हो, इसके लिए रेगुलेशन चाहिए ही. खादी की पोशाक ज्यादा बिके और इसे बनाने वालों की कमाई तेजी से बढ़े, इसके लिए जरूरी है कि सारे रेगुलेशन पर फिर से विचार हो. क्या पता, खादी में तरक्की गांवों की तस्वीर बदल दे.

आजादी के 70 वें साल में खादी को कैसे तरक्की का माध्यम बनाया जा सकता है, इस पर आप अपना सुझाव दें. हम इससे जुड़े भाग्य विधाताओं तक आपकी बात पहुंचाएंगे.

क्‍यों न खादी उद्योग का निजीकरण कर दिया जाए?

आजादी की इस सालगिरह पर द क्‍व‍िंट एक बेहद अहम सवाल पेश कर रहा है. सवाल है- आज के इस बदलते दौर में खादी उद्योग का निजीकरण क्‍यों न कर दिया जाए?

क्‍व‍िंट के संपादकीय निदेशक संजय पुगलिया ने इस मुद्दे पर खादी और ग्रोमाद्योग आयोग (KVIC) के चेयरमैन वी.के. सक्‍सेना से बातचीत की. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस आयोग को चलाने की जिम्‍मेदारी उन्‍हें सौंपी है. पूरी चर्चा आप इस वीडियो में देख सकते हैं:

खादी उद्योग का निजीकरण क्‍यों नहीं?

इस बारे में वी.के. सक्‍सेना बताते हैं कि पहली बार आयोग ने फ्रेंचाइजी देने की शुरुआत की है. कुछ लोगों को इसका आवंटन भी कर दिया गया है. उनका कहना है कि खादी से कई नई संस्‍थाओं को जोड़ने का काम चल रहा है. पहले खादी में जिस संस्‍था की मोनोपॉली थी, उसे खत्‍म किया जा रहा है.

खादी उद्योग का मकसद है रोजगार पैदा करना

आयोग के चेयरमैन ने कहा कि खादी को बिजनेस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्‍कि इसका बुनियादी लक्ष्‍य रोजगार पैदा करना है. साथ ही खादी के नाम का दुरुपयोग न हो, इसके लिए कुछ कानून संसद ने बनाए हैं.

क्‍या मुश्किल है खादी के कारोबार से जुड़ना?

वी.के. सक्‍सेना बताते हैं कि खादी के कारोबार से जुड़ने के लिए आयोग अब ऑनलाइन फॉर्म लेकर आया है, जिसे भरना आसाना है. कुछ शर्तें पूरी करने के बाद कोई भी इस उद्योग से जुड़ सकता है.

खादी से सरकार का नियंत्रण हटना चाहिए: वंदना फाउंडेशन

खादी को ‘आजादी दिलाने’ यानी इस उद्योग के निजीकरण के मुद्दे पर द क्‍व‍िंट ने वंदना फाउंडेशन के संस्‍थापक-अध्‍यक्ष ए.एन. रॉय से बात की.

रॉय ने कहा कि खादी में रोजगार पैदा करने की ताकत है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. उन्‍होंने कहा कि खासकर महिलाओं के लिए तो चरखा चलाना आसान काम है, जिससे उन्‍हें आसानी से काम मिल सकता है.

ए.एन. रॉय ने कहा कि खादी से सरकार का नियंत्रण हटना चाहिए, भले ही सरकार को खादी के नाम का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ उपाय करने पड़ें. उन्‍होंने कहा कि देश में खादी की मांग इतनी बढ़ सकती है, जिसकी पूर्ति सरकारी तंत्र के जरिए करना मुमकिन नहीं है.

फाउंडेशन की सह-संस्‍थापक सौम्‍या रॉय ने कहा कि खादी के जरिए हमें हर तरह की असली आजादी हासिल हो सकती है.

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