ADVERTISEMENTREMOVE AD

JNUSU चुनाव 2016: जेएनयू की पहचान और ‘नेशनल’ vs ‘एंटीनेशनल’ की जंग

यह चुनाव दो खेमों के बीच हो रही है. राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का मुद्दा कैंपस में तैर रहा है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

जेएनयू कैंपस चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है. 9 सितंबर को छात्रसंघ का चुनाव होने वाला है. चाहे गंगा ढाबा हो या ब्रह्मपुत्र हास्टल जलते सिगरेट के साथ स्टूडेंट्स जेंडर इक्वलिटी, नेशनलिज्म पर चर्चा करते दिख रहे हैं.

हालांकि, यह जेएनयू के लिए नया नहीं है. चर्चा जेएनयू का कल्चर है, पर इस बार का छात्रसंघ चुनाव जरूर थोड़ा अलग है. नौ फरवरी की घटना के बाद इस बार के चुनाव में छात्रसंघ की राजनीति का बदला रंग देखने को मिलेगा.

संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने के विरोध में नौ फरवरी को जेएनयू परिसर में कार्यक्रम आयोजित किया गया था. कार्यक्रम के दौरान देशविरोधी नारे लगाए गए थे.

तीन दशक से प्रतिद्वंद्वी कैंपस की प्रमुख लेफ्ट पार्टियां आइसा (आॅल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) और एसएफआई (स्टूडेंट फेडरेशन आॅफ इंडिया) एक साथ एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के खिलाफ उतरी हैं. वहीं देशद्रोह का आरोप झेल रहे कन्हैया कुमार की पार्टी एआईएसएफ (आॅल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन) ने इस बार चुनाव से खुद को अलग रखा है.

पिछली बार हमने चुनाव लड़ा था. लेफ्ट पार्टियां बंटी हुई थीं, जिस वजह से एबीवीपी एक सीट जीत गई थी. एआईएसएफ सेक्युलर, लोकतांत्रिक, प्रोग्रेसिव वोट को नहीं बांटना चाहती है, इसलिए वह चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही. 
कन्हैया कुमार, JNUSU अध्यक्ष, एआईएसएफ

बतौर कन्हैया यह चुनाव जेएनयू की पहचान की होगी. यह चुनाव जेएनयू के खिलाफ और जेएनयू के साथ खड़े लोगों के बीच है. #STANDWITHJNU चुनाव जीतेगी.

यह चुनाव दो खेमों के बीच हो रही है.  राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का मुद्दा कैंपस में तैर रहा है.
कन्हैया कुमार. (फोटो: PTI)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

पार्टियों से अलग हटकर देखें, तो चुनाव दो खेमों के बीच हो रही है. #SHUTDOWNJNU बनाम #STANDWITHJNU और राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का मुद्दा कैंपस में तैर रहा है. जेएनयू छात्रसंघ के जनरल सेक्रेटरी और आइसा के रामा नागा कहते हैं कि जेएनयू के कल्चर को बचाने के लिए लेफ्ट पार्टियों का एकजुट होना जरूरी था.

यह चुनाव #STANDWITHJNU का पार्ट है. जो जेएनयू को बंद करवाना चाह रहे थे उनका नजरिया बदलने वाला चुनाव है. हम एक-दूसरे से अलग विचार रखते रहेंगे. लेकिन इस चुनाव के लिए हम साथ आएं हैं, क्योंकि डिबेट का चलन खतरे में है. 
रामा नागा, JNUSU जनरल सेक्रेटरी, आइसा

इन मुद्दों के साथ ही रोहित वेमुला का मामला और शोध छात्रा के बलात्कार का मसला भी उठाया जा रहा है. एबीवीपी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाकर जेंडर इक्वलिटी के मुद्दे पर अपने खिलाफ हुए लेफ्ट गठबंधन को घेर रही है.

दरअसल, आइसा के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष अनमोल रतन जेएनयू की एक शोध छात्रा से बलात्कार करने के जुर्म में गिरफ्तार हो चुके हैं.

एबीवीपी को लगता है कि आइसा अकेले मैदान में नहीं आई क्योंकि लैंगिक न्याय के मुद्दे पर स्टूडेंटस उसके साथ नहीं आते.

14 साल बाद पिछले छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी जेएनयू के सेंट्रल पैनल में जगह बना पाई थी. ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर एबीवीपी ने जीत हासिल की थी.

कैंपस का माहौल बदला है. 9 फरवरी की घटना कोई पहली घटना नहीं थी. एंटी-नेशनल एक्टिविटी को एबीवीपी ने उजागर किया है. जेएनयू स्टूडेंट अब उनसे दूर हो रहे हैं. लेफ्ट पार्टियां हमें हराने के लिए एक साथ आई हैं. यह एक तरह से एबीवीपी की नैतिक जीत है.
सौरभ शर्मा, JNUSU ज्वाइंट सेक्रेटरी, एबीवीपी
यह चुनाव दो खेमों के बीच हो रही है.  राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का मुद्दा कैंपस में तैर रहा है.
2015 के जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के दौरान आइसा समर्थक. (फोटो: द क्विंट)

आइसा और एसएफआई गठबंधन जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन की भूमिका पर सवाल खड़े कर रही हैं.

एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि कैंपस में किसी भी परिचर्चा से पांच दिन पहले प्रशासन से मंजूरी लेना जरूरी है. चर्चा का विषय और कंटेंट भी दिखाने होंगे. इसके साथ ही चर्चा की रिकॉर्डिंग भी की जाएगी. यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. एकजुट लेफ्ट इसके आधार पर एबीवीपी को मात देगी.
शहला रशीद, JNUSU वाइस प्रेसिडेंट, आइसा

एबीवीपी के इलेक्शन कैंपेन पर सवाल उठाते हुए शहला ने कहा कि यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन खुलकर एबीवीपी के पक्ष में खड़ी है JNUSU को कुछ जगहों पर जाने से मनाही है, लेकिन एबीवीपी को खुली छूट मिल रही है. स्टूडेंट का डेटाबेस एबीवीपी को दिया गया है जो नाजायज और गैरकानूनी है.

एबीवीपी के लिए एमएलए और काउंसलर कैंपेन कर रहे हैं. स्टूडेंट के एड्रेस मांग रहे हैं. एबीवीपी को वोट करने के लिए बल्क मेसेज भेजे जा रहे हैं. इन सब के बावजूद एबीवीपी हारेगी. हम उसे हराना ही नहीं बल्कि कैंपस से हटाना चाहते हैं.
उमर खालिद
यह चुनाव दो खेमों के बीच हो रही है.  राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का मुद्दा कैंपस में तैर रहा है.
उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्या. (फोटो: द क्विंट)

उमर खालिद की भगत सिंह अंबेडकर स्टूडेंट आॅर्गनाइजेशन एबीवीपी के खिलाफ लेफ्ट की एकजुटता को पूरा समर्थन दे रही हैं. आॅर्गनाइजेशन पर्चे बांट कर छात्रों से उनके खिलाफ वोट करने की अपील कर रही है.

मुख्य मुकाबला वाम गठबंधन और एबीवीपी के बीच है, पर इन सब के बीच बिरसा अंबेडकर फूले स्टूडेंट एशोसिएशन (बाप्सा) भी चुनाव में सक्रिय भूमिका निभा रही है. पार्टी इस कॉन्सेप्ट के साथ चुनाव में उतरी है कि दमितों की लड़ाई दमित को ही लड़नी पड़ेगी. केवल दबे-कुचलों की एकता से ही ब्राह्मणवाद को राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हराया जा सकता है.

फिलहाल, जेएनयू के इस इलेक्शन में नौ फरवरी की घटना के बाद सबसे बड़ा मुद्दा तो राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह ही है. 11 सितंबर को चुनावी रिजल्ट बताएगा कि कैंपस के मुद्दों, जेएनयू की पहचान और ‘नेशनल’ बनाम ‘एंटीनेशनल’ के मुद्दों में से जीत किसकी हुई.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×