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नोटबंदी: आखिर क्यों ब्लैक में बिक रहे 500-1000 के पुराने नोट?

नोटबंदी के बाद आखिर क्यों कंपनियां पुराने नोटों को प्रीमियम पर खरीदने को मजबूर हो रही हैं?

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नोटबंदी के 1 महीने बाद पुराने नोटों की किल्लत

  • नोटबंदी के 36 दिन बाद प्रीमियम पर मिल रहे हैं पुराने नोट
  • नोटबंदी के शुरुआती दो हफ्तों में 30 से 35 फीसदी प्रीमियम पर उपलब्ध थे नए नोट
  • नवंबर के आखिरी हफ्ते में 15 फीसदी प्रीमियम पर उपलब्ध थे नए नोट
  • दिसंबर के पहले हफ्ते में 0-10 फीसदी प्रीमियम पर उपलब्ध थे नए नोट
  • लेकिन बीते तीन दिनों से 5 फीसदी के प्रीमियम पर मिल रहे हैं पुराने नोट

नोटबंदी के बाद 500 और 2000 के नए नोट 30 से 35 फीसदी के प्रीमियम पर मिल रहे थे. लेकिन इस फैसले के ठीक 33 दिन बाद ये स्थिति पलट चुकी है. अब 500 और 1000 के पुराने बंद हुए नोटों के लिए लोग और कंपनियां 5 परसेंट प्रीमियम देने को तैयार हैं.

नोटों बदलने की समय-सीमा धीरे-धीरे खत्म हो रही है. इसका सबसे ज्यादा असर उन लोगों और व्यापारिक संस्थानों पर देखा जा रहा है, जो भारी मात्रा में कैश रखते हैं. ऐसे में कई लोग और संस्थान ऐसे हैं, जो ये कैश वैध रूप से रखते हैं. इन्हें पुराने नोटों के बैंकों में पहुंच जाने की वजह से कैश जुटाने में किल्लत हो रही है. इसका असर ये है कि बीते तीन दिनों से बंद हुए नोट 5 परसेंट के प्रीमियम पर लिए जा रहे हैं.

आसान शब्दों में कहें तो अगर किसी के पास 1 करोड़ रुपये का कैश है ,तो बाजार में इस धन को 1 करोड़, 5 लाख रुपये में बदलने वाले मौजूद हैं. ये काला धन के खिलाफ चल रही मुहिम का मजाक नहीं है? नोटबंदी के शुरुआती दिनों की अपेक्षा ये एक अजीब बदलाव है. शुरुआत में 500 और 1000 रुपये के नोट 30 फीसदी पर बदले जा रहे थे. मतलब, अगर आपको बंद हुए नोटों में 1 लाख रुपयों को नए नोटों बदलना होता था तो आपको बदले में सिर्फ 70 हजार रुपये मिलते थे.
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प्रीमियम पर मिल रहे हैं पुराने नोट

वित्तीय क्षेत्र में हो रहे बदलावों से अवगत लोगों ने मुझे बताया कि 8 नवंबर के बाद पहले दो हफ्तों में पुराने नोटों को बदलने का संघर्ष कर रहे लोग 30 से 35 फीसदी का प्रीमियम देने को तैयार थे. इन दिनों में बैंक सिर्फ 100 रुपये के नोट दे रहे थे और बड़े नोटों की भारी किल्लत थी.

6 दिसंबर तक बैंकों में पहुंच चुके हैं 12 लाख करोड़ रुपये

लेकिन जैसे-जैसे बड़े नोटों की मांग कम हुई है, वैसे ही नवंबर के आखिरी दिनों में 30 फीसदी प्रीमियम घटकर 15 फीसदी पर आ गया. खबरों के मुताबिक, 3 से 6 महीनों में नए नोटों की डिलिवरी पर प्रीमियम 10 फीसदी पर आ गया था. फिर, पुराने नोटों की तरह प्रीमियम भी गायब हो गया, क्योंकि 6 दिसंबर तक करीब 12 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट बैंकों में पहुंच गए.

लेकिन कंपनियों को क्यों चाहिए पुराने नोटों?

कंपनियों में पुराने नोटों की मांग बढ़ने से ये नया बाजार पैदा हुआ है. एक बड़ी संख्या में कंपनियों की बैलेंस शीट में कैश इन हैंड का मद होता है. लेकिन उनके पास ये कैश मौजूद नहीं है क्योंकि उन्होंने इन नोटों को कई ‘अन्य जगहों’ पर लगाया हुआ है. इन जगहों से मतलब रिश्वत में दिए गए पैसे और बैलेंस शीट में न दिखाई जा सकने वाली खरीदारी, कैश में खरीदी गई प्रॉपर्टी और इनवॉइस से कम कीमत पर खरीदा गया माल शामिल है.

नोटबंदी के बाद ‘कैश इन हैंड’ वाली धनराशि को बैंकों में 30 दिसंबर से पहले जमा कराना है. ऐसा नहीं करने पर ऐसी कंपनियां सवालों के घेरे में आ सकती हैं कि वैध धन को बैंकों में क्यों जमा नहीं कराया गया. इसलिए ये कंपनियां किसी भी तरह से ‘कैश-इन-हैंड’ वाली राशि को बैंकों में जमा करने के लिए पुराने नोटों की तलाश में हैं.

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कंपनियों को 30 दिसंबर तक चाहिए बड़ी मात्रा में पुराने नोट

30 दिसंबर आने में अब सिर्फ 16 दिन शेष बचे हैं. इसलिए बंद हुए नोटों को हासिल करने के लिए कंपनियों में रेस लगी हुई है. हालांकि कंपनियों के पास ‘कैश इन हैंड’ राशि का अंदाजा नहीं है लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ये राशि कई हजार करोड़ में है.

इनके अलावा उन लोगों को भी पुराने नोटों की जरूरत है, जिन्होंने सरकार की इनकम डिस्क्लोजर स्कीम के तहत अपनी कमाई का खुलासा किया है. इन लोगों को 31 मार्च से पहले ही अपना इनकम टैक्स भरना है. ऐसा करने की पहली समय-सीमा 30 नवंबर को खत्म हो चुकी है. इस मद में जमा होने वाली राशि तकरीबन 25 हजार करोड़ रुपये है.

नोटों की अवैध अदला-बदली रोकने में लगी सरकार के लिए ये काफी बड़ा धक्का है. कई सरकारी एजेंसियों ने देशभर में छापेमारी की है, लेकिन इन छापों में जब्त राशि बहुत ज्यादा जमा होने वाले और बदले गए नोट की तुलना में काफी कम है.

ये पता लगाना काफी मुश्किल है कि आखिर पुराने नोटों में कितने फीसदी कैश की अदला-बदली हुई है और कितना फीसदी कैश बैंकों तक पहुंचा है. हालांकि सरकार संदिग्ध पूंजी लाभों, लोन और इक्विटी होल्डिंग्स की जांच कर रही है, लेकिन ये एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें कई साल लग सकते हैं.

सरकार के पास बड़ी संख्या में ‘कैश इन हैंड’ रखने वाली कंपनियों की जांच के लिए पर्याप्त साधन हैं कि नहीं, इस बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता.

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