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भारत: अर्थव्यवस्था बदल रही है लेकिन कामकाजी महिलाओं की संख्या घटी

देश में लेबर फोर्स में आई गिरावट काफी व्यापक है. इनमें पुरुष-महिलाएं, ग्रामीण और शहरी श्रमिक दोनों शामिल हैं.

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भारत
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भारत के मजबूत आर्थिक विस्तार पर एक प्रश्नचिह्न लग गया है. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट कहती है कि देश में पांच में से सिर्फ एक शहरी महिला काम पर निकलती है. देश में काम करने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम हो गई है. यह देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड (जनसांख्यिकीय लाभांश) के लिए खतरा हो सकता है.

सामाजिक रूप से रूढ़िवादी इस देश में मान्यता है कि अच्छे परिवार की महिलाओं को काम पर नहीं भेजा जाता है. सिर्फ वैसा घर जहां मर्दों को मिलने वाली सैलरी से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता है वहां ही औरतें काम पर निकलती हैं.

अगर ये ट्रेंड बना रहा तो भारत की इकाॅनोमी को विशाल युवा आबादी से जो फायदा मिलता है वो कम हो जाएगा.

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महिलाओं की भागीदारी कम

हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अगले पांच सालों में 9.9 प्रतिशत के औसत एनुअल एक्सपेंशन का अनुमान लगाया है. साथ ही ये भी माना जा रहा है कि देश 2022 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर जर्मनी को पीछे कर देगा.

लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि 1980 के दशक में भारत की कुल श्रम भागीदारी दर 2011 में 68 प्रतिशत से घटकर लगभग 60 प्रतिशत हो गई थी. और भारत के लेबर ब्यूरो के हाल के सर्वे से पता चलता है कि स्थिति फिलहाल स्थिर यानी लगभग वैसी ही है.

देश में लेबर फोर्स में आई गिरावट काफी व्यापक है. इनमें पुरुष-महिलाएं, ग्रामीण और शहरी श्रमिक दोनों शामिल हैं.
(फोटो: ब्लूमबर्ग क्विंट)

अगले कुछ दशकों में, भारत दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी आबादी वाले देश के रूप में चीन की जगह लेने की उम्मीद कर रहा है. लेकिन भागीदारी में महिलाओं की घटती संख्या कहती है कि देश इस जनसांख्यिकीय उछाल का लाभ लेने की स्थिति में नहीं है.

जब तक भागीदारी की दर 70-75 प्रतिशत के बीच नहीं बढ़ती देश विकास के लिए इसका लाभ नहीं ले पाएगा.

भारत में 15 से 64 साल के बीच के लोगों को वर्किंग एज पाॅपुलेशन माना जाता है. यानी कि ये काम करने में सक्षम हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में वर्किंग एज पाॅपुलेशन 2050 तक 110 करोड़ तक पहुंच जाएगी. लेकिन सभी को काम मिल सके इसके लिए अर्थव्यवस्था को भी लगातार 10 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ना होगा.
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संयुक्त राष्ट्र की एक स्टडी के अनुसार 1991 से (जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था खोली) 2013 के बीच वर्किंग एज पाॅपुलेशन 30 करोड़ थी. जबकि इनमें रोजगार में सिर्फ 14 करोड़ लोग लग पाए थे. आधे से भी कम लोग रोजगार के जरिए इकाॅनोमी को सपोर्ट कर रहे थे.

जबकि चीन में 1991 से 2013 के बीच 14.4 करोड़ रोजगार बढ़ा तो वहीं वर्किंग एज पाॅपुलेशन में 24.1 करोड़ बढ़त हुई.

बहरहाल, ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में लेबर फोर्स में आई गिरावट काफी व्यापक है. इनमें पुरुषों और महिलाओं, ग्रामीण और शहरी श्रमिक दोनों शामिल हैं.

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की बात करें तो ग्रामीण पुरुष इसमें आगे हैं. उनकी भागीदारी 80 प्रतिशत से ज्यादा है. वहीं सबसे कम करीब 20 प्रतिशत शहरी महिलाओं की भागीदारी इसमें दर्ज की गई है.

रोजगार के अवसरों में कमी आई है, खासकर शहरी इलाकों में. ग्रामीण इलाकों में कृषि के अलावा रोजगार में कमी देखी गई है. इसके अलावा सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों ने भी महिला भागीदारी को कम किया है, घरेलू आय में बढ़ोतरी इसकी एक वजह हो सकती है.

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