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1962 के बाद बहुत कुछ बदला, लेकिन भारत-चीन के ये विवाद बरकरार हैं

जानते हैं 1962 युद्ध के बाद से क्या वो मुद्दे रहे हैं जिन पर भारत-चीन उलझते आए हैं

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1962 के भारत-चीन युद्ध के समय चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ ने अपने कमांडरों से कहा था कि भारत-चीन हमेशा युद्ध के लिए नहीं बने हैं, न ही ये लंबे समय तक एक-दूसरे के दुश्मन रह सकते हैं.

इस युद्ध के करीब 55 साल बीत गए हैं, भारत-चीन के बीच युद्ध तो नहीं हुआ, लेकिन कई मुद्दों पर विवाद अभी तक बना हुआ है.

हाल ही में सिक्किम में सीमा को लेकर भारत-चीन का विवाद गहराया हुआ था. इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब 6 जून 2017 को सिक्किम सेक्टर के लालटेन चौकी के करीब चीनी सेना ने दो भारतीय बंकर गिरा दिए.

चीन का दावा है कि साल 1890 के साइनो-ब्रिटिश समझौते के तहत ये एरिया चीन के क्षेत्र में आता है. इससे पहले ऐसी ही घटना साल 2008 में हुई थी. तब भी चीन ने भारतीय बंकर ध्वस्त कर दिए थे.

विवाद की जड़- डोकलाम पठार में चीन के सड़क बनाने की कोशिशों पर भारत का विरोध था. इस इलाके में सड़क बनाने का भूटान के साथ ही भारत भी विरोध करता रहा है. इस इलाके में चीन के सड़क बनाने का मतलब है सामरिक लिहाज से चीन की दखलंदाजी बढ़ जाएगी, क्योंकि ये हिस्सा भारत-चीन और भूटान के ‘ट्राई जंक्शन’ पर है.

भारत-भूटान, दोनों पर किसी भी बिगड़े हालात में सड़क बनने के बाद चीन भारी पड़ेगा.

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ये तो रही फिलहाल की रस्साकस्सी की वजह, हिंदी-चीनी भाई-भाई के दौर के बाद से ही कई ऐसे विवाद या कहें तो ‘पैदा किए गए विवाद’ रहे हैं, जो दोनों देशों को पास नहीं आने देते.

आइए जानते हैं, 1962 युद्ध के बाद से क्या वो मुद्दे रहे हैं, जिन पर भारत-चीन उलझते आए हैं:

दलाई लामा और सीमा विवाद

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा साल 1959 से ही भारत के हिमाचल प्रदेश में रह रहे हैं. तिब्बत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे दलाई लामा को भारत में शरण देने का मुद्दा चीन हमेशा से उठाता रहा है. 1962 में भारत-चीन युद्ध का एक बड़ा कारण दलाई लामा को शरण देना भी था.

ऐसे में जब अप्रैल, 2017 में दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर थे, तो एक बार फिर चीन भड़क उठा. उस समय चीन के प्रवक्ता लू कांग ने कहा था कि इसके गंभीर परिणाम होंगे. चीन ने कहा था कि वो अरुणाचल में दलाई लामा की किसी भी गतिविधि का कड़ा विरोध करता है. हालांकि, भारत ने साफ किया था कि ये उसका आंतरिक मामला है, जिसमें कोई भी देश दखल नहीं दे सकता है.

बता दें कि भारत-चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश के एक हिस्से को लेकर विवाद है. अरुणाचल को तिब्बत से अलग करने वाली मैकमोहन रेखा को चीन नहीं मानता है. पिछले कई सालों से चीन अरुणाचल के तवांग को अपना हिस्सा बताता आ रहा है.

तवांग के अलावा लेह में भी चीनी सैनिक और भारतीय सैनिक कई बार आमने-सामने आ चुके हैं.

चीन-पाक इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को लेकर विवाद

चीन का अति महत्‍वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रूट (OBOR) भी दोनों देशों के बीच विवाद का एक बड़ा कारण है. चीन ने इस प्रोजेक्ट के लिए इसी साल 14 और 15 मई को शिखर सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें दुनियाभर के 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष, 70 इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन्स ने हिस्सा लिया.

इस प्रोजेक्ट में चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी प्रस्तावित है.

ये कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है. भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है. कॉरिडोर बनने के बाद कारोबार के अलावा चीन के कूटनीतिक हस्तक्षेप से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

ऐसे में भारत ने कॉरिडोर बनाने पर शुरू से ही आपत्ति जताई है. लेकिन चीन ने इस आपत्ति को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने का काम जारी रखा है.

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साउथ एशिया सी को लेकर विवाद

साउथ एशिया सी पर दूसरे देशों को नजरअंदाज करते हुए चीन एकाधिकार जमाता रहा है. चीन के इस 'हठ' का भारत भी पुरजोर विरोध करता रहा है.

हालांकि, साउथ एशिया सी पर भारत की सीधे तरीके से कोई हिस्सेदारी नहीं है. तेल और दूसरे कीमती भंडारों से भरपूर इस इलाके में 9 डैश लाइन तक चीन अपना दावा करता रहा है, जो कि दक्षिण चीन सागर का 90 % है. ऐसे में भारत के आर्थिक हित भी प्रभावित होते हैं. दोनों देशों के बीच विवाद का ये भी बड़ा मुद्दा है.

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अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत-चीन आमने-सामने

NSG यानी न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत की सदस्यता पर चीन की तरफ से लगातार अड़ंगा लगाया जाना भी दोनों देशों के बीच संबंधों में एक बड़ी बाधा बनकर उभरा है. परमाणु कारोबार को कंट्रोल करने वाले इस खास ग्रुप में एंट्री के लिए भारत की कोशिशों को चीन-पाकिस्तान के साथ मिलकर परवान चढ़ने नहीं देता है.

भारत का समर्थन जहां अमेरिका और समूह में शामिल कई पश्चिमी देश कर रहे हैं, वहीं चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है कि नये सदस्य को पहले परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत करना चाहिए.

इतना ही नहीं, यूनाइटेड नेशंस में भी सिक्योरिटी काउंसिल की स्थाई सदस्यता पर चीन का अड़ंगा है. चीन सिक्योरिटी काउंसिल का स्थाई सदस्य है. उसके पास वीटो पावर भी है. ऐसे में भारत को कई देशों के समर्थन के बाद भी चीन के वीटो के कारण स्थाई सदस्यता नहीं मिल पाती है.

इसके अलावा, चाहे आतंकी अजहर मसूद का मुद्दा हो या हफीज सईद का, अंतरराष्ट्रीय मंच पर साफ दिखता है कि चीन पाकिस्तान के साथ गलबहियां करता है और भारत को आंखें दिखाता है.

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(ये रिपोर्ट पहली बार 4 जुलाई 2017 को पब्लिश हुई थी)

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