रविवार रात को अबू धाबी में 21 गेंदों पर 60 रनों की नाबाद पारी खेलकर हार्दिक पांड्या ने किसी को चौंकाया नहीं क्योंकि ऐसी ही ताबड़तोड़ पारियों की तो उनसे अक्सर उम्मीद की जाती है. मैच दर मैच, सीजन दर सीजन हर बार सबसे दबाव वाले लम्हों में खुद को ना सिर्फ साबित करना बल्कि हर बार ये दिखाना कि वो अपनी क्रिकेट को लेकर काफी गंभीर हैं, आसान नहीं होता है.
ओह, हो सकता है कई लोगों को ये लगे कि पांड्या और गंभीर शब्द एक साथ सही नहीं जंचते हैं! लेकिन, ऐसा नहीं है. पांड्या ने कमोबेश क्रिस गेल के अंदाज में ही पूरी दुनिया के सामने अपनी एक कूल और बेफिक्र क्रिकेटर वाली छवि बनाई है, लेकिन हकीकत में वह बेहद सुलझे हुए खिलाड़ी हैं.
मैच के हालात के मुताबिक अपने खेल को ढालना जिसे जानकार मौजूदा दौर में match awareness का नाम देते हैं, पांड्या के पास भरपूर मात्रा में मौजूद है.
17 से 20 वें ओवर के बीच राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ 14 गेंदों में पांड्या ने 54 रन बनाए, लेकिन जो एक बात आंकड़ों में शायद छिपी रह जाए लेकिन उनकी टीम के स्पोर्ट स्टाफ को बखूबी पता है कि पांड्या शेर की तरह अपने शिकार का चयन काफी सोच समझकर करते हैं. यही वजह है कि उन 14 गेंदों में से 13 गेंद अंकित राजपूत और कार्तिक त्यागी जैसे युवा और कम अनुभवी गेंदबाजों पर बनाए गए.
यानी कि विरोधी को पूरी तरह से पस्त करने के लिए उसकी सबसे कमजोर कड़ी पर सबसे जोरदार प्रहार करना टी20 फॉर्मेट की एक बेहद कारगार नीति है जिसे महेंद्र सिंह धोनी, क्रिस गेल, एबी डिविलियर्स बखूबी आजमाते आ रहे हैं.
पांड्या से मेरी पहली मुलाकात कभी ना भूलने वाली मुलाकात रही है जबकि मैं दरअसल उनसे नहीं किसी और खिलाड़ी से मिलने गया था. कुछ साल पहले जब पांड्या आईपीएल भी नहीं खेले थे तो वो वडोदरा रणजी टीम के लिए दिल्ली आए थे और मैं इरफान पठान का इंटरव्यू करने उनके होटल पहुंचा था.
पांड्या टीवी कैमरे की लाइट और पूरे सेट-अप को देखते हुए मुस्करा रहे थे और उन्होंने मुझसे खुद पूछा कि मैं उनका इंटरव्यू क्यों नहीं ले सकता! मैंने सवाल को नम्रतापूर्वक यह कहकर मोड़ा कि मैं एक राष्ट्रीय टीवी न्यूज चैनल के लिए काम करता हूं जहां पर रणजी मैचों के खिलाड़ियों के इंटरव्यू संपादक प्रसारित होने नहीं देते हैं. उसी वक्त पठान आए और कहा कि भाई साहब, इस लड़के का नाम याद रख लो, आगे इंडिया खेलेगा!
उस मुलाकात के बाद पांड्या से कई मुलाकातें हुईं और जो कभी नहीं बदला वो था पांड्या का खुद पर भरोसा. वो आत्म-विश्वास जिसने उन्हें शायद पहले से कह दिया था कि वह आने वाले दिनों के स्टार होंगे. पांड्या के आंकड़े भारत के लिए खेलते हुए ना तो कपिल देव के आसपास हैं और ना ही इरफान पठान के . लेकिन, कम समय में ही पांड्या ने जिस तरह से कई निर्णायक लम्हों में मैच का रुख बदला है उसी के चलते विराट कोहली और रवि शास्त्री के लिए वह तुरुप के इक्के बने हैं.
रोहित शर्मा ने मुंबई इंडियंस के लिए ये कर दिखाया है कि अगर पांड्या गेंदबाजी ना भी करें तब भी वह काफी हैं. अगले महीने ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए जब टीम इंडिया चुनी जाएगी तब भी क्या भारतीय चयनकर्ताओं और कप्तान-कोच की राय रोहित जैसी रहेगी?
(20 साल से अधिक समय से क्रिकेट कवर करने वाले लेखक की सचिन तेंदुलकर पर पुस्तक ‘क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी’ बेस्ट सेलर रही है. ट्विटर पर @Vimalwa पर आप उनसे संपर्क कर सकते हैं.)
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