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‘टहलती हुई पोर्न’: IPL चीयरलीडर्स की चकाचौंध का काला पहलू

सच्चाई ये है कि भारत में पहले दिन से चीयरलीडर के शरीर के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है

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2011

“लोगों के लिए हम टहलते हुए पोर्न हैं. आप पर हर वक्त लोगों की निगाहें टिकी रहती हैं. उनकी आंखों में सिर्फ कामुकता होती है. महिलाएं आपको बार-बार देखती हैं, फिर दिखावा करती हैं कि उन्हें आपमें कोई दिलचस्पी नहीं. पुरुष आपके चेहरे को देखते हैं, फिर आपके स्तनों को, आपके नितम्बों को और फिर दोबारा आपके स्तनों को देखते हैं! जब हम टहलते हैं तो कानों में आवाज आती है, “IPL, IPL!” उस आवाज में एक प्रकार की झनझनाहट छिपी होती है!” 
गैब्रियेल पास्कुलोट्टो, IPL चीयरलीडर
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वो इंडियन प्रीमियर लीग का चौथा सीजन था. दक्षिण अफ्रीकी चीयरलीडर गैब्रियेल पास्कुलोट्टो के बयान ने तहलका मचा दिया. क्रिकेटर हमें मांस के जिंदा टुकड़ों की तरह इस्तेमाल करते हैं, उसने कहा था. उसे जल्द ही बर्खास्त कर दिया जाता हैा और IPL बदस्तूर चलता रहता है. कम से कम सात और सीजन तक.

इस दौरान बॉलीवुड के सुपरस्टार और टॉप विज्ञापनदाताओं के साथ मेलजोल बढ़ाया जाता है. IPL पर कई लोग चकाचौंध का उत्सव होने के आरोप लगाते हैं. क्रिकेट की आड़ में ये ‘मनोरंजन का बाप’ बन जाता है.

2015

“संगीत काफी तेज है और उसका लहजा विभत्स है. मैं ज्यादातर शब्दों से बेखबर हूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं नहीं कह सकती कि मेरे पीछे मुझपर कीचड़ उछाले जा रहे हैं. मेरी पूरी कोशिश है कि उनपर ध्यान न दूं”
अंजान IPL चीयरलीडर

लीग का ये आठवां सीजन है. उम्र बढ़ने के साथ अजीबोगरीब आक्रोश भर रहा है. BCCI ने ‘विवादों’ से दूर रहने के लिए क्रिकेटरों तथा चीयरलीडर्स के बीच किसी भी तरह की बातचीत पर रोक लगा दी है. वो अलग होटलों में रहते हैं और यात्रा भी अलग करते हैं. इस बार एक अमेरिकी चीयरलीडर ने गड़ा मुर्दा उखाड़ा है. नाम न बताने की शर्त पर उसने बताया कि IPL में अंदर क्या चल रहा है.

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2019

IPL का 12वां साल है.

हवा में तेज आवाज गूंज रही है. साथ में उत्साही और उन्मत्त चीयरलीडर्स की एक टीम लाउडस्पीकर से निकले संगीत की लय पर थिरक रही है. मेरी आंखें स्क्रीन पर जा टिकती हैं. वहां एक लड़की खड़ी है. उसके चेहरे पर मुस्कान है. एक मुस्कान, जो मानो, इस्तीफे के बाद जम गई हो.

जब भी कोई खिलाड़ी शॉट लगाता है, दर्शकों की वाहवाही गूंज उठती है. तेज संगीत बजने लगता है और चीयरलीडर थिरकने लगती हैं. जब कोई खिलाड़ी शॉट नहीं लगाता, तो सन्नाटा छा जाता है. ये स्पष्ट है कि मैदान में अदम्य ऊर्जा देखने को मिलती है. ये ऊर्जा गलत दिशा में नहीं जानी चाहिए.

लेकिन...

अगर ऐसा हो तो?

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“कभी-कभार हमपर गंदगी फेंकी जाती है. मैं उसे नजरंदाज कर देती हूं...”
अंजान IPL चीयरलीडर

ऊर्जा प्रदर्शन का ये रूप हास्यास्पद है. उग्र भावनाओं के प्रदर्शन अक्सर क्रूरता की हदों को छू जाते हैं. खेल को प्रोत्साहन देने के लिए आईं ‘चीयरलीडर्स’ के लिए क्या ऐसी भावनाओं का प्रदर्शन बदतर नहीं है? ‘चीयरलीडर्स’ के जिस्म बिना किसी वजह के, अर्थहीन आनंद बनकर रह जाते हैं.

क्या आप इनका साथ देंगे?

“वहां कई गंदे लोग हैं जो चुंबन के आकार का चेहरा बनाते हैं, मेरी तस्वीर लेते हैं. मैं इन सबको ब्लॉक कर देना चाहती हूं”
अंजान IPL चीयरलीडर

दुखद सच्चाई ये है कि भारत में पहले दिन से चीयरलीडर के शरीर के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है.

“कम वस्त्रों में चीयरलीडर्स, महिलाओं की मर्यादा कम कर रही हैं, उनपर रोक लगनी चाहिए,” बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने 2008 में ही ये कहा था. शायद चीयरलीडर्स को नसीहत देने में उनकी अधिक रुचि थी, बजाय वास्तविक समस्या का समाधान तलाशने के.

क्या होता है, जब कार्य स्थल पर शरीर एक बोझ बन जाता है?
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इतिहास के पन्नों से...

जो भी हो, थोड़ा पीछे चलते हैं. एक खेल और एथलीट के कौशल के रूप में चीयरलीडिंग का इतिहास 19वीं सदी के अमेरिका में तलाशा जा सकता है. उस वक्त की कल्पना कीजिये. चीयरलीडिंग की शुरुआत हुई तो खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने के लिए प्रिंसटन में सभी पुरुष पेप क्लब थे.

द्वितीय विश्व युद्ध के समय तस्वीर बदली और अधिक से अधिक महिलाएं इस काम में लग गई, क्योंकि अधिकांश पुरुष युद्ध लड़ रहे थे. 

इससे क्या पता चलता है?

उस समय से अब तक ‘चीयरलीडिंग’ की पवित्रता और मकसद डरावना होता जा रहा है. घरेलू IPL इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है.

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घरेलू IPL में क्या है?

मैच में अधिकतर गोरी महिलाएं होती हैं, जिन्हें भूरे वर्ण वाले लोग कामुकता भरी निगाहों से देखते हैं, जिन्हें पोडियम पर शायद ये महिलाएं देखने को नहीं मिलतीं – वो उन महिलाओं को वासनात्मक नजरिये से देखते हैं, जबकि वो सिर्फ अपने लिए तय काम कर रही होती हैं.

निश्चित रूप से ये महिलाएं यहां अपनी इच्छा से आई हैं. ‘काम सिर्फ काम होता है,’ ठीक उसी प्रकार, जैसे एक क्रिकेटर का काम खेलना होता है, उसके अलावा और कुछ भी नहीं. सिर्फ काम का प्रकार बदलता है. ठीक है?
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‘क्रिकेट’ Vs ‘चीयरलीडिंग’?

इसके बारे में सोचें. प्रत्यक्ष रूप से हम क्रिकेट को एक पौरुष भरे खेल के रूप में देखते हैं, जिसमें भारी ऊर्जा का इस्तेमाल होता है, और परोक्ष रूप से ‘चीयरलीडिंग’ और ‘चीयरलीडर्स’ उन भावनाओं को उत्साहित करने की भूमिका में हैं. क्या आप मुस्कुराते चेहरों के पीछे छिपी उन भावनाओं को समझ सकते हैं जिन्हें आप एड ब्रेक के ठीक पहले या जब कोई खिलाड़ी छक्का लगाता है, उस वक्त देखते हैं?

कभी नहीं, जब मैच तनावपूर्ण हो जाता है, तो भावनाओं के पीछे छिपे दर्द की वास्तविकता कोई नहीं समझ सकता.

IPL का ‘एकलिंगी शासन’ चौंकाने वाले अतीत की ओर ले जाता है. आप एक स्टेडियम के बारे में सोच सकते हैं, जो कट्टर समर्थकों से भरा हुआ हो, जिनमें एक प्रकार का जुनून सवार हो, मैच के दौरान खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने के लिए वो पर्याप्त है, लेकिन...

उफ.

लोगों की आंखें ‘मनोरंजन के बाप’ पर टिकी रहे, इसके लिए और भी कुछ करने की जरुरत है. अंजाम चाहे जो भी हो.

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