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बैंक तो कह रहे हैं-आओ हमारी तिजोरी से पैसा अपनी तिजोरी में ले जाओ!

अब वक्त आ गया है बैंकों की टैगलाइन बदलने का!

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घोटालों और बैंकों के 10 लाख करोड़ के बर्बाद हो चुके लोन (NPA) वाली खबरों के बीच जब आप इन बैंकों की टैगलाइन देखते हैं तो चेहरे पर बरबस मुस्कुराहट आ जाती है. जैसे, पीएनबी की टैगलाइन है- भरोसे का प्रतीक! नजर डालते हैं ऐसी ही कुछ बैंक और इस दौर में उनसे जुड़ी गुदगुदाती पंचलाइन पर.

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पंजाब नेशनल बैंक- भरोसे का प्रतीक

पंजाब नेशनल बैंक, ‘भरोसे का प्रतीक’ है. नहीं, नहीं, आप गलत समझ रहे हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे. बैंक खुद चीख-चीख कर सारे विज्ञापनों, सारे दरों-दीवारों पर बड़े शान से ये बात अपने logo के साथ लिखती है. ये अलग बात है कि इन दिनों भरोसे के नाम पर हाल ये है कि लोग लाइन लगाकर पूछ रहे हैं कि भाई पीएनबी में खाता है, कुछ होगा तो नहीं न. लेकिन ये बेचारे लोग हैं, आम लोग हैं. वैसे आम लोग बेचारे ही होते हैं. जो बेचारे नहीं थे वो चारा डालकर बैंक को बेचारा कर गए.

अब वक्त आ गया है बैंकों की टैगलाइन बदलने का!

नीरव मोदी ने 'भरोसे के प्रतीक' को सीरियसली ले लिया. उन्हें बैंक पर पूरा भरोसा था. मुंबई की ब्रैडी ब्रांच में कुछ लोगों को अपनी काबिलियत पर भरोसा था. जब दोनों को एक-दूसरे पर पूरा भरोसा हो गया तो बैंक रामभरोसे हो गया और धीमे-धीमे 11 हजार 400 करोड़ सफाचट हो गए. नीरव मोदी अकेले नहीं हैं. जिन-जिन को पीएनबी पर भरोसा था, वो दिसंबर 2017 तक बैंक को करीब 55 हजार करोड़ का चूना लगा चुके हैं.

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इंडियन ओवरसीज बैंक- आपकी प्रगति का सच्चा साथी

कुछ बैंकों के बारे में सुनकर आप सोचने लगते हैं कि, हैं! ये बैंक भी है. IOB, ऐसी ही एक बैंक है. अब जरा बैंक की टैगलाइन को गौर से पढ़िए. लिखा है- आपकी प्रगति का सच्चा साथी. आपकी? पता नहीं. मेरी? अरे नहीं. तो फिर किसकी? रोटोमैक वाले विक्रम कोठारी साहब की प्रगति का सच्चा साथी. कोठारी साहब ने लोन अग्रीमेंट पर रोटोमैक के पेन से दस्तखत किए होंगे, आईओबी के अफसर साहब मुस्कुराए होंगे और कुल 771 करोड़ रोटोमैक के खाते में जा गिरे होंगे.

अब वक्त आ गया है बैंकों की टैगलाइन बदलने का!

रोटोमैक की प्रगति कितनी हुई पता नहीं पर कोठारी साहब का बंगला देखकर लगता है कि उनकी प्रगति ठीक-ठाक हुई है. प्रगति के ऐसे सच्चे साथी को कौन सलाम नहीं करना चाहेगा. तो कुल 33 हजार करोड़ रुपये, सच्चे साथियों ने डकार लिए हैं. पूछते हैं क्यों? अरे, प्रगति के नाम पर.

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बैंक ऑफ इंडिया- Relationships Beyond Banking

इस बैंक की टैगलाइन तो इनविटेशन वाली है. बाकायदा आपको आमंत्रित कर रही है कि आओ, हम बैंकिंग के अलावा बाकी रिश्ते भी निभाते हैं. फिर भी आप सिर्फ नेटबैंकिंग करके काम चलाएं, ये तो ज्यादती होगी न. अब वही रोटोमैक वाले साहब यहां भी पहुंच गए. बैंकिंग के परे, रिश्ते निभाने को. रिश्तों की गर्माहट में 754 करोड़ के नोट पिघल गए.

अब वक्त आ गया है बैंकों की टैगलाइन बदलने का!

बैंक ऑफ इंडिया की तिजोरी से निकले और कोठारी साहब की तिजोरी तक पहुंच गए. रिश्ते निभाने के चक्कर में सितंबर तक बैंक करीब 50 हजार करोड़ बांट चुकी है जो लौटकर नहीं आए यानी NPA हो गए.

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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया- अच्छे लोग,अच्छा बैंक

कौन होगा, जो एक अच्छा बैंक नहीं चाहेगा. यूनियन बैंक तो चिल्ला-चिल्ला कर कहता है- अच्छे लोग, अच्छा बैंक. अब लो कर लो बात. बैंक में 'लंच टाइम के बाद आना' जुमला सुन-सुनकर अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा गुजार देने वाले एक आम उपभोक्ता को जब पता चलता है कि ये बैंक वाले अच्छे लोग हैं और इनका बैंक भी अच्छा है तो क्यों नहीं जाएगा यहां. सितंबर 2017 तक कुल 38, 286 करोड़ रुपये इन अच्छे लोगों ने कुछ और अच्छे लोगों को बांट दिए.

अब वक्त आ गया है बैंकों की टैगलाइन बदलने का!

अब आप खुद को 'अच्छा' भी कहें और दरवाजे से बैरंग लौटा दें तो ये खराब बात हुई न. सो, रुपये बंट तो गए पर इन अच्छे लोगों से वसूले नहीं गए. सब NPA हो गया. यानी 'अच्छे लोगों' का पैसा बुरा बन गया. रोटोमैक वाले भाईजान भी यहां से 459 करोड़ निकाल कर ले गए. अच्छे लोग से इनकार कैसे निकलता.

ये अकेले भले बैंक नहीं है. हिंदुस्तान में तो खोज-खोजकर टैगलाइन रखी गई हैं. इलाहाबाद बैंक कहता है- हर कदम आपके साथ, केनरा बैंक कहता है- Together We Can. देश का सबसे बड़ा बैंक SBI खुद को ‘हर भारतीय का बैंक’ बताता है और अब तक 1 लाख 80 करोड़ से ज्यादा की रकम NPA खाते में डाल चुका है.

*PNB और IOB के NPA आंकड़े दिसंबर 2017 तक के हैं और बाकी बैंकों के सितंबर 2017 तक.

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