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‘आर्टिकल 15’ का विरोध कर रही करणी सेना के लिए बेहतर करियर के सुझाव

क्या फिल्मों का विरोध करने के अलावा भी करणी सेना कोई और काम करती है?

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'स्किल इंडिया' से रोजगार पाने के लिए देश के युवाओं को कितनी स्किल मिली, ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन दो 'स्किल' ऐसी भी हैं, जो हम भारतीयों के अंदर कूट-कूट कर भरी है. पहला, बिन मांगे मुफ्त की सलाह देना, और दूसरा, बात-बिन बात विरोध करना. बात अगर फिल्मों के विरोध की हो, तो पिछले कुछ सालों में बिना सोचे-समझे इसमें कूद पड़ने का एक फैशन सा बन गया है. इस बार निशाना है 'आर्टिकल-15'.

फिल्म विरोध को ही अपना 'धरम-करम-ईमान' मानने वाली जमात में सबसे ऊपर जो नाम आता है, वो है करणी सेना. यकबयक जेहन में सवाल आया कि क्या विरोध के अलावा भी करणी सेना कोई और काम करती है? विरोध करने लायक फिल्में तो कभी-कभार ही आती हैं, तो ऐसे में बाकी बचे खाली समय में करणी सेना के सदस्यों को बोरियत नहीं होती? सवाल ने परेशान किया तो दिल ने समाधान सुझाया- क्यों न करणी सेना के लिए करिअर के दूसरे ऑप्शन पर भी गौर किया जाए?

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इन दिनों फिल्म ‘आर्टिकल 15’ को लेकर देश में विरोध हो रहा है. इस विरोध में पहले तो परशुराम सेना और कई ब्राह्मण संगठन शामिल थे, लेकिन किसी फिल्म का विरोध हो, और उसमें करणी सेना का नाम न हो, भला ऐसा कैसे हो सकता था? लिहाजा, देर-सवेर ही सही, करणी सेना भी कूद पड़ी.

'बरसाती मेंढक' क्यों बन जाती है करणी सेना?

साल 2017 की शुरुआत में 'पद्मावत' फिल्म की शूटिंग जब चल रही थी, तो उससे पहले इस संगठन का वजूद तो था, लेकिन कोई पहचानता नहीं था. सेट पर तोड़फोड़ की गई, आग लगाई गई, यूनिट के लोगों को धमकाया गया. बस, फिर क्या था? आ गया नाम सुर्खियों में और मिल गई पहचान. अगले एक साल तक, यानी जब तक फिल्म रिलीज नहीं हो गई, करणी सेना का विरोध भी चलता रहा, और साथ ही चलती रही उनकी 'दुकान'!

फिल्म फिर 'मणिकर्णिका' को लेकर भी इन्होने खूब हंगामा मचाया. वो फिल्म भी रिलीज हुई. और अब इस कड़ी में करणी सेना के निशाने पर आई 'आर्टिकल 15'.

ये भी पढ़ें - Review: Article-15 जातिवाद और ऊंच-नीच की मानसिकता पर सीधी चोट करती है

वैसे साल 2008 में जब आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा-अकबर आयी थी, तब भी इसी करणी सेना ने फिल्म का विरोध किया था, और राजस्थान में फिल्म की रिलीज रुकवा दी थी. लेकिन तब सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्यादा नहीं था, तो इन्हें ढंग की पब्लिसिटी मिल नहीं पायी.

अब लाख टके का सवाल ये उठता है कि क्या ये संगठन फिल्मों का विरोध करने के अलावा कुछ और भी करता है? या सिर्फ 'बरसाती मेंढक' की तरह 'विरोध का मौसम' आने पर ही अपने बिल से बाहर निकलता है, और मौसम जाते ही फिर से गायब हो जाता है. इसका जवाब हमें मिले न मिले, लेकिन करणी सेना को कुछ और 'बेहतर' करने की बिन मांगी मुफ्त की सलाह तो दी ही जा सकती है.

तो पेश-ए-खिदमत है करणी सेना के लिए अल्टरनेटिव करियर ऑप्शन के चंद बेशकीमती सुझाव-

फिल्म मेकिंग इंस्टिट्यूट

करणी सेना को जब नुक्स निकालकर और 'सभ्यता-संस्कृति-संस्कार' की दुहाई देकर फिल्मों में विरोध करने का इतना ही जूनून है, तो क्यों न अपना एक फिल्म मेकिंग इंस्टीट्यूट खोल लें. ये कोई ऐसा-वैसा इंस्टीट्यूट नहीं होगा, इसमें स्टोरी से लेकर स्क्रीनप्ले, कॉस्ट्यूम से लेकर मेकअप और प्रोडक्शन से लेकर डायरेक्शन तक के कोर्स चलाये जाएंगे. इस इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने के लिए सबसे पहले छात्रों को करणी सेना की सदस्यता लेना अनिवार्य होगा, ताकि उनके सिद्धांतों और आदर्शों को पहले अपने अंदर शामिल कर सकें.

हर कोर्स में बारीकियों का इतना खयाल रखा जाएगा कि इस इंस्टीट्यूट से निकलने वाले स्टूडेंट जब आगे चलकर फिल्में बनाएंगे, तो उनमें किसी भी तरह के विरोध की गुंजाइश नहीं रहेगी.
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जॉब कंसल्टेंसी

देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. ऐसे में करणी सेना अगर एक जॉब कंसल्टेंसी खोल ले, तो उनके साथ-साथ बेरोजगार युवाओं का भी भला हो जाएगा. यहां से रजिस्ट्रेशन करवाकर बेरोजगार युवकों को भाड़े पर फिल्म के विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए पार्ट टाइम जॉब मुहैया करवायी जाएगी. काम बड़ा आसान होगा. सिर्फ थोड़ी गुंडागर्दी करनी है, थोड़ी मारपीट करनी है, थोड़ा डराना-धमकाना है, और जितना हो सके बवाल मचाना है.

इस कंसल्टेंसी के जरिये काम मिलने के बाद बेरोजगार युवकों को एक स्टांप पेपर पर साइन करना होगा. इसमें लिखा होगा कि, ‘मुझे इतिहास-भूगोल का कुछ नहीं पता, न ही मुझे ये पता है, कि फिल्म में दिखाया क्या गया है, उसका कंटेंट क्या है, लेकिन मुझे ये जरूर पता है कि फिल्म का विरोध करना है’.
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राजनीतिक पार्टी

पैसा-पोजीशन-पावर...अगर ये तीनों चीजें हासिल करनी हो, तो राजनीति से बेहतर और कुछ नहीं. अगर करणी सेना एक राजनीतिक पार्टी बन जाए, तो उसे भी ये सब नसीब होंगे. लेकिन उसके लिए तो सत्ता हासिल करना भी जरूरी है. अरे तो इसमें कौन सी बड़ी बात है? किसी ने कहा भी है कि आप एक दिन रेलवे ट्रैक पर बैठ जाइए, सड़क जाम कर दीजिए और ऐसा लगातार करते रहिए, लोग आपको नेता मानने लगेंगे..और नेता बन गए तो सत्ता भी मिल ही जाएगी

हां ये सच है कि सत्ता हासिल करने में वक्त तगता है. कभी-कभी उम्मीद से ज्यादा. तो आज अगर करणी सेना एक राजनीतिक पार्टी बनाती है, तो उसका भी ‘अपना टाइम आएगा’...भले ही इसके लिए 100-150 साल इंतजार क्यों न करना पड़े.

तो मान लीजिए कि अगर भविष्य में करणी सेना केंद्र में अपनी सरकार बनाती है, और लोकसभा के साथ राज्यसभा में भी उनका बहुमत होता है, तो वे मन मुताबिक बिल पास करवा सकेगी. ये लोग अपने हिसाब से नये-नये कानून बना सकेंगे. और सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा कि फिल्म सेंसर बोर्ड उनकी मुट्ठी में आ जाएगा, और वे भी अपनी उंगली के इशारों पर सेंसर बोर्ड को नचा सकेंगे...

फिर होगी किसी की मजाल, कि भारत में कोई ऐसी फिल्म बनाए, जो करणी सेना को पसंद न आए?

देखें वीडियो - ‘करणी सेना रोजगार एजेंसी’- बेरोजगारों के लिए काम ही काम

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