सर्जिकल स्ट्राइक या पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई लोगों का ध्यान आकर्षित करती है. लेकिन विदेशी जमीन पर हुए अन्य भारतीय सैन्य ऑपरेशंस के बारे में कई ऐसी कहानियां हैं, जो अनकही हैं. ऐसे ही 3 ऑपरेशंस को सुशांत सिंह ने किताब के जरिए सामने रखा है.
187 पेज की इस किताब में ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन पवन और ऑपरेशन खुकरी के पूरे विवरण के साथ उस दौरान के सैन्य-राजनीतिक तालमेल के बारे में भी बताया गया है. दो दशकों तक बतौर सैन्य अधिकारी काम कर चुके सुशांत सिंह का अनुभव भी इस किताब में झलकता है.
सैन्य बारीकियों को समझाने में वो कामयाब रहे हैं, साथ ही अपने नेटवर्क के जरिए उन्होंने कई किस्सों को ऑपरेशन से जुड़े लोगों की जुबानी ही बताया है, जो पहले कभी नहीं सुने गए हैं.
किताब के पहले भाग की शुरुआत ऑपरेशन कैक्टस से होती है. साल 1988 में श्रीलंकाई विद्रोहियों ने मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को अपदस्थ करने की कोशिश की. ऐसे में मालदीव की तरफ से मदद मांगे जाने पर किसी दूसरे देश की प्रतिक्रिया से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने पैराट्रूपर भेजे थे. इसी ऑपरेशन का नाम कैक्टस रखा गया था.
सुशांत इस ऑपरेशन के बारे में लिखते हैं:
ये एक त्वरित, छोटी और सर्जिकल कार्रवाई थी. ऑपरेशन के नतीजे सटीक रहे लेकिन इसकी तैयारी अच्छी नहीं थी.
इस ऑपरेशन की तैयारियों के बारे में वो बताते हैं-
अगर आप टूरिस्ट मानचित्र, कॉफी टेबल बुक और दूसरे विश्व युद्ध की खुफिया जानकारी के आधार पर विदेशी जमीन पर सैन्य कार्रवाई करते हैं तो ऐसे में अच्छी किस्मत होना अहम है.
मतलब साफ था कि इस पूरे ऑपरेशन के दौरान कई चीजों पर अमल नहीं किया गया था, लेकिन ऑपरेशन को सही-सलामत पूरा कर लिया गया.
ऑपरेशन कैक्टस की तारीफ श्रीलंका के भाड़े के सैनिकों के नेता लुतूफी ने भी की, जब उससे पूछा गया कि इस तरह के लापरवाही भरे अभियान के सफल होने की उम्मीद थी, उसने तपाक से दुस्साहसिकअंदाज में जवाब दिया, क्यों नहीं, कोई भी इस तरह के देश का राष्ट्रपति हो सकता है सिर्फ कुछ और घंटों तक भारतीय फौजें वहां नहीं पहुंचती.
वैसे तो श्रीलंका में एलटीटीई के खिलाफ भारतीय शांति रक्षक बल (IPKF) की 30 महीने लंबी कार्रवाई पर कई विस्तृत किताबें लिखी जा चुकी हैं. लेकिन फिर भी मिशन ओवरसीज के दूसरे भाग में इस ऑपरेशन से जुड़े कई अनजाने किस्सों को जाना जा सकता है.
सुशांत सिंह ने ऑपरेशन पवन, जाफना का नरसंहार भाग में कई पूर्व भारतीय सैन्य अधिकारियों के हवाले से ऑपरेशन पर सवाल उठाए हैं. किताब में कहा गया है कि गलत आकलन की वजह से भारतीय सैनिकों को जाफना में एलटीटीई के गढ़ में हेलिकॉप्टरों से उतारा गया, वहां कई सैनिक शहीद हुए.
सुशांत लिखते हैं:
‘ऑपरेशन पवन’ की शुरुआत ही खूनी संघर्ष के साथ हुई, जिसमें तीस महीनों के दौरान भारतीय सेना के करीब 1200 जवान शहीद हो गए. देश समझ ही नहीं सका कि आखिर एक सीमा से आगे हमारे सैनिक एक दूसरे देश में क्यों हैं?
उन 37 घंटों का भी सिलसिलेवार जिक्र है, जब पैरा कमांडोज की टीम को एलटीटीई के लड़ाकों ने जाफना विश्वविद्यालय के नजदीक ही एक बस्ती में घेर लिया, सेना के टैंक ध्वस्त कर दिए गए, कई कमांडोज को मार गिराया गया.
किताब के तीसरे भाग में सियेरा लियोन गए 200 सौ से ज्यादा भारतीय सैनिकों को विद्रोहियों से छुड़ाने के लिए किया गए ऑपरेशन खुकरी का जिक्र है.
यूएन के शांतिरक्षक अभियान पर गए इन सैनिकों को विद्रोहियों ने बंधक बना लिया था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसकी तफ से आंखें मूंद लीं. तब भारत से 10 हजार किमी दूर, पश्चिमी अफ्रीका के ट्रॉपिकल जंगल में ऑपरेशन खुकरी की शुरुआत हुई.
सुशांत सिंह लिखते हैं:
वो लोग जो भारतीय सेना के लिए यूएन के झंडे तले बहुराष्ट्रीय सेना की वकालत करते हैं, उन्हें ऑपरेशन खुकरी को जरूर पढ़ना चाहिए. इसी ऑपरेशन से सबक सीखते भारत सरकार ने 2001 में इराज में सेना भेजे जाने की स्थिति में भारतीय सेना को अकेले ही एक अलग कुर्द के प्रभाव वाले क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपे जाने की मांग की थी.
किताब में इतने सारे किस्से, इतनी गहराई से लिखे गए हैं कि आपको ऐसा लग सकता है कि आप खुद ही इन ऑपरेशन्स को देख रहे हैं.
किताब मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई है, जिसका अनुवाद अनुप कुमार भटनागर ने किया है. किताब का अनुवाद ही इसकी कमजोर कड़ी है. किताब की प्रस्तावना में ही अनुवाद की गलतियां नजर आ रही हैं. कई जगह ऐसा लगता है कि अंग्रेजी की लाइन का मतलब न समझकर जस का तस अनुवाद कर दिया गया हो. अगर अनुवाद की इन गलतियों को आप नजरंदाज कर सकते हैं, तो ये किताब आपके लिए भारतीय सेना के 3 बेमिसाल ऑपरेशंस का संग्रह बन जाएगी.
किताब: मिशन ओवरसीज
लेखक: सुशांत सिंह
अनुवादक: अनूप कुमार भटनागर
प्रकाशक: जगरनॉट बुक्स
कीमत: 250 रुपये
लेखक : सुशांत सिंह द इंडियन एक्सप्रेस में एसोसिएट एडिटर हैं. भारतीय सेना में रहते हुए उन्होंने जम्मू-कश्मीर में दो दशक तक काम किया है. वे संयुक्त राष्ट्र में सैन्य पर्यवेक्षक रह चुके हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)